स्वच्छ एवं सन्तुलित पर्यावरण के लिए पौधारोपण जरुरी

ashok lodhaसोशल मीडिया व्हाट्सप्प, फेसबुक एवं अन्य सोशल साइड पर पिछले कुछ दिनों से बढ़ता तापमान, सूर्य देव का प्रकोप एवं एक प्राचीन लघु कथा जिसमे हनुमान जी से उगते हुये सूर्य को लाल फल समझकर उसे पकड़ने और गर्मी के प्रकोप से राहत दिलाने की विनती इत्यादि पोस्ट अनवरत चल रही हैं । कारण देश के कई स्थानों में तापमान 45 डिग्री या और अधिक चल रहा हैं । लोग इस भीषण गर्मी से बेहाल हैं । दिन में बाजार सुनसान पड़े रहते हैं । आसमान से बरसने वाली आग ने लोगों को घरों और दफ्तरों में कैद कर दिया और इस साल इस मौसम में मरने वालो का आकड़ा 2000 के लगभग हैं । भारत में भीषण गर्मी से हर साल सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं । लेकिन पिछले दो दशक में गर्मी से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है । नई दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र का कहना है कि अचानक बढ़ी गर्मी मौतों का कारण हो सकती है । इस बढ़ती गर्मी का मुख्य कारण हैं वायु प्रदुषण ।

पृथ्वी पर जीवन को पनपने के लिए करोडो वर्षो तक संघर्ष करना पड़ा है । भूगोल के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए काफी लंबा समय तय करना पड़ा है । लेकिन जो वस्तु इंसान को प्राकृतिक एवं पूर्वजो की कड़ी मेहनत से मिली है । उसे आज खुद इंसान ही मिटाने पर लगा हुआ है । लगातार प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप कर इंसान खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा हैं । इंसान अपने फायदे के लिए ऐसे- ऐसे काम कर रहा हैं जहाँ प्रकृति उसका विनाश कर सकती है । जंगलों, वनों की कटाई कर असंतुलन पैदा किया जा रहा है । मोटरयानो, आधुनिक कल कारखानो से निकलता हुआ जहरीला धुँआ वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है वहीं उस जल को भी इंसान ने नहीं बख्शा, जिसकी वजह से धरती पर जीवन संचालित होता है। विकास के नाम पर नदियों में कारखानो का जहरीला कूड़ा- करकट एवं पानी छोड़ा जा रहा हैं । इंसान अपने स्वार्थ के लिए नदी, नालो, झीलों, तालाबों इत्यादि के जल के आवक मार्ग एवं भराव क्षेत्र पर अतिक्रमण कर प्रकृति को ललकार रहा हैं ।

988545_1004729366227833_6556143970483097961_nवायु प्रदुषण के कारण दिनों- दिन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, क्योंकि सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइ आक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव बढ़ रहा है, जो सभी जीवो के लिए घातक हैं। हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पंछियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे बढ़ती गर्मी के साथ साथ दमा, खाँसी, अंधपन, श्रवण शक्ति का कमजोर होना आदि जैसी बीमारियाँ पैदा होती हैं। वायु प्रदुषण के कारण जिन अपरिवर्तन, अनुवाशंकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं। लम्बे समय के बाद इससे अनुवाशंकीय विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और अपनी चरमसीमा पर यह घातक भी हो सकती है। वायु प्रदूषण से अम्लीय वर्षा के खतरे बढ़े हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साईड आदि जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है। इससे फसलों, पेड़ों, भवनों तथा ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँच सकता है। सर्दियों में कई जगहों पर कोहरा छाया रहता है, वायु प्रदुषण के कारण धूएँ तथा मिट्टी के कण कोहरे में मिल जाते है। इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है, आखों में जलन होती है और साँस लेने में कठिनाई होती है।

अभी कुछ दिन पूर्व चित्तौड़गढ जिले के चंदेरिया में स्थित हिन्दुस्तान जिंक द्वारा फैलाये जा रहे वायु प्रदूषण की खबर सुर्ख़ियो में रही । इस जिंक संयंत्र द्वारा फैलाये जा रहे वायु प्रदूषण से हो रही तेजाबी बरसात के कारण आसपास के कई गांवों की उपजाऊ भूमि नष्ट होकर बंजर हो गई । जो विगत 10 वर्षों से वीरान पडी है। जिस जगह जिंक के संयंत्र की स्थापना की गई थी। वह जगह घना हरा-भरा होकर प्राकृतिक वनस्पति व कृषि से परिपूर्ण क्षेत्र था। वर्तमान में हिंदुस्तान जिंक के कारखाने की स्थापना के बाद संयंत्र द्वारा वायुमण्डल में सल्फर के प्रदूषण से जिंक के द्वारा फैलाई जा रही इस हाइड्रोलिक एसिड से तेजाबी बरसात हो रही है। जिससे पुठोली के आसपास के कई गांव तेजाबी बरसात से प्रभावी हो गये । इस कारण क्षेत्र में गंभीर बीमारियां फैल रही है जिससे कई लोग मौत के शिकार हो गये है। जिंक के प्रदूषण से हो रही तेजाबी बरसात से इस क्षेत्र में 6-7 किलोमीटर की परिधि में वनस्पति नष्ट होकर बडे-बडे पीपल व बर के वृक्ष सूख कर राख हो गये है। प्रदूषण नियंत्रण के लिये यहाँ पर कोई कारगर उपाय नहीं किये गये । ऐसा यह कोई एक उदहारण नहीं है। देश और दुनिया से हर दिन इस तरह की खबरे आती रहती हैं लेकिन फिर भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये नहीं जाते ।

ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारो ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है। जो हमें हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से, जो कि सूर्य से आती हैं, से बचाती है। ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमे ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91 % से अधिक ओजोन यहां मौजूद है। यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के उपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यधपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है । ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस है । यह गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी-बी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है और महज दो से तीन फीसदी हिस्सा ही पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाता है । वैज्ञानिकों का कहना है कि ओजोन परत के नष्ट होने से सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी किरणों के चलते धरती बंजर और वीरान हो सकती है । सूर्य की पराबैंगनी किरणों से धरती को बचाने वाली ओजोन परत में काफी बड़ा छेद हो चुका है । नासा के उपग्रह से प्राप्त आंकड़े के अनुसार, ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को अपने चरम पर कोई 97 लाख वर्ग मील के बराबर पहुंच गया था, यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक है। वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रदूषण और मौसमी बदलावों की वजह से ओजोन परत को और ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है । ऐसी स्थिति में दक्षिणी ध्रुव की बर्फ तेजी से गलने लगेगी । इससे तापमान बढ़ने के साथ साथ समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा । तटीय इलाकों के डूबने से करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है।

स्वच्छ पर्यावरण और शुद्ध ऑक्सीजन के लिए धरती पर हरियाली और पेड़-पौधों का होना बहुत जरूरी है । पर्यावरण का स्वच्छ एवं सन्तुलित होना मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। प्रथम पेड़-पौधे विशेषकर जल, कार्बन और नाइट्रोजन के चक्रों के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं । इनका स्थानीय और विश्व ऊर्जा संतुलन में भी भारी महत्व होता है। ऐसे चक्र न केवल वनस्पति के वैश्विक, बल्कि जलवायु के भी स्वरूपों के लिये महत्वपूर्ण होते हैं। दूसरे, पेड़-पौधे मिट्टी के गुणों को भी प्रबल रूप से प्रभावित करते हैं, जिनमें मिट्टी का आयतन, रसायनिकता और बनावट शामिल हैं, जो बदले में उत्पादकता और रचना सहित विभिन्न वनस्पति गुणों को प्रभावित करती है। तीसरे, पेड़-पौधे इस ग्रह पर मौजूद जन्तुओं की विशाल सारणी के लिये वन्यजीवन आवास और ऊर्जा के स्रोत का काम करते हैं। संभवतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वैश्विक वनस्पति वातावरण में आक्सीजन का प्रमुख स्रोत है । पेड़-पौधे वर्षा को अपनी और आकर्षित करते हैं । वर्षा होने के कारण तापमान में कमी आती है । पेड़ और जंगलो की अंधाधुंध कटाई होने के कारण दिनों-दिन सूर्य की गर्मी बढ़ती जा रही हैं।

पेडों-पौधे धरती के आभूषण के साथ-साथ मानव जीवन के लिए भी अति महत्वपूर्ण हैं। इनके बिना जीवन सम्भव नहीं है। पेड़-पौधे नष्ट होते हैं तो बाढ़, सूखा, आग, अकाल व महामारी फैलती है। पेड़-पौधे प्रकृति के ऐसे वरदान हैं, जो हमें हरियाली और फल-फूल देने के साथ ही हमारे बेहतर स्वास्थ्य में भी सहयोग करते हैं। ना सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में पेडों का महत्व है बल्कि इनका महत्व धर्म और वास्तु से भी जुड़ा है। पर्यावरण और पेडों के बीच काफी गहरा रिश्ता है। वैसे तो ये चीज़ हम अपने अनुभव से भी महसूस कर सकते हैं, पर अब तो वैज्ञानिक शोध ने भी ये साबित कर दिया है कि पेड़ लगाने से कई सारे लाभ होते हैं । कारखानो से निकली कार्बन डाई आक्साइड गैस को पेड़ सोख लेते हैं और हमारे लिए आक्सीजन देते हैं। पेडों की जड़ मिट्टी को बांध कर रखती हैं । जिससे कि मिट्टी का कटाव कम होता है और खासतौर से इसका फायदा बारिश में होता है। पेडों से आसपास का तापमान कम रहता है,पेडों के रहने से धूल भी कम उड़ती है, पेडों के रहने से तरह तरह के पक्षी भी आते है जो कि पर्यावरण को हमारे अनुकूल बनाते हैं । पर्यावरण की दृष्टि से हमारा परम रक्षक और मित्र पेड़-पौधे है। यह पेड़-पौधे हमें अमृत प्रदान करते है। हमारी दूषित वायु को स्वयं ग्रहण करके हमें प्राण वायु देते है, मरूस्थल पर नियंत्रण करते हैं, नदियों की बाढ़ो की रोकथाम करते हैं, जलवायु को स्वच्छ रखते हैं, समय पर वर्षा लाने में सहायक होते हैं, धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। पेड़ हमारा दाता है जो हमें निरन्तर सुख ही देते रहते है ।

हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि प्रकृति जीवन का स्त्रोत है और पर्यावरण के समृद्ध और स्वस्थ होने से ही जीवन समृद्ध और सुखी होता है। केवल इतना ही नहीं वे तो प्रकृति की देव शक्ति के रूप में अर्चना उपासना करते थे और प्रकृति को ‘परमेश्वरी ’ भी कहते थे। जहां एक ओर हमारे दूर- दृष्टा मुनियों ने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष पर चिन्तन किया, पर्यावरण पर भी उतना ही ध्यान दिया। जो कुछ पर्यावरण के लिए हानिकारक था उसे आसुरी प्रवृत्ति कहा और हितकर को दैवी प्रवृत्ति माना। मानव समाज और प्रकृति में घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। मानव के प्रकृति से संबंध केवल गहरे ही नहीं, भावुक एंव मार्मिक भी है। प्रकृति हमारी माता है। पेड़, वनस्पतियां, नदियां, झीले पर्यावरण संतुलन के बहुत ही महत्वपूर्ण स्तंभ है। ये पर्यावरण के सजग प्रहरी के समान है। हमारे आदिकाव्य रामायण और महाभारत में पेड़ों, वनों का चित्रण पृथ्वी के रक्षक वस्त्रों के समान पाया जाता है। पेड़ों, वनों को ऋषियों द्वारा पुत्रवत परिपालित करते वर्णन किया है। अपने किसी स्वार्थसिद्धि के हरे-भरे पेड़ों को काटना पाप माना गया है। मनुस्मृति में बताया गया है कि बिना कारण पेड़ों को काटने पर दंड का विधान है। जो पेड़ अपना लाभ प्राणियों को व पर्यावरण को दे चुके होते है केवल उसे ही काटा जा सकता है। हम यह समझते रहे हैं कि समस्त प्राकृतिक सम्पदा पर एकमात्र हमारा ही आधिपत्य है। हम जैसा चाहें, इसका उपभोग करें। इसी हमारी भोगवादी प्रवृति के कारण हमने इसका इस हद तक शोषण कर दिया है कि हमारा अपना अस्तित्व ही संकटग्रस्त होने लगा है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे है कि प्रकृति, पर्यावरण और परिस्थिति की रक्षा करो, अन्यथा हम भी नहीं बच सकेंगे।

सरकार को चाहिए कि वो लोगों के बीच सभी स्तरों पर जागरूकता का प्रचार करने वाले गैर-सरकारी संगठनों, जन मीडिया और अन्य संबंधित संगठनों को प्रोत्साहित करे। मौजूदा शैक्षणिक, वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से पर्यावरण संबंधी शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करे। ताकि पर्यावरण के परिरक्षण और संरक्षण के लिए लोगों को जागरूकता बढ़े । पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार और जनता दोनों को ही निस्वार्थ इस दिशा में काम करना होगा । सरकार को चाहिए पर्यावरण की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर देश की आम जनता में जागरूकता लाये। सरकार हर सड़क के किनारे घने पेड़ लगवाये, आबादी वाले क्षेत्रों और कालोनियों में जहाँ पर भी संभव हो, पौधारोपण करवाये । पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार कल-कारखानो को आबादी से बहुत दूर लगाने की अनुमति दे । कारखानो और शहरों का प्रदूषित जल-मल व कूड़ा-कचरा नदियों में गिरने से रोका जाये । प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रखना ही धरती पर प्रलयकारी स्थिति से बचने का एकमात्र उपाय है । पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए पौधारोपण जरूरी है। पेड़ की रक्षा हम लोगों को संतान की भांति करनी चाहिए। फलदार पेड़ छाया देने के साथ-साथ समय पर फल भी देता है। देश के हर नागरिक को संकल्प लेना चाहिए कि वे अपने जीवन काल में कम से कम एक पेड़ जरूर लगायेगे।

अशोक लोढ़ा नसीराबाद

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