दुआ की आड़ में बद्दुआ

रासबिहारी गौड
रासबिहारी गौड

वजीरे पाक गरीब नवाज़ की दरगाह पर दुआ की आड़ में बद्दुआ बटोरने आये ……
उन्हें मिली भी …वे जानते है उनके मुल्क को दुआ की नहीं बद्दुआ की ज़रुरत है..इससे पहले उनके आका जरदारी आये थे उन्होंने भाईचारा माँगा था ..भाई को चारा समझ लिया था और भाई ने उन्हें बेचारा समझ लिया था.उन्होंने अमन माँगा था बदले में अ मन ले गए थे.
इस बार वजीर-ऐ-आलम आये हैं ,हम सांकेतिक स्वागत कर रहे है ,हम सांकेतिक विरोध कर रहे है.वो भी संकेत मे हमसे कह रहे है कि वे अपनी सरकार और देश की तरह थोड़ी देर के ही मेहमान है. हमे सांकेतिक विरोध में काले झंडे दिखाने थे ,सांकेतिक स्वागत में काले झंडे नहीं दिखाने थे, हमने तीसरा रास्ता निकाला काले झंडे छोड़ काले -काले कोट वाले कानून के रखवाले सड़क पर ऐसे उतार दिए जैसे सड़क की पूरी कालिख चलते फिरते उनको आईना दिखा रही हो. वो तो अच्छा हुआ उन्होंने रास्ता बदल दिया , ..बेहतर होता वो रास्ता छोड़ देते…हाँ अगर यहाँ आकर उसी रास्ते पर चलते तो तह था काले कोट वाले अपने कोट की चादर बना कर उनके चादर चढाने से पहेले उन पर चढ़ा देते..
ऐसा नहीं की खाकी वर्दी को गुस्सा नहीं था ..वो उन्हें सर सर कह रही थी .दरअसल वो अपने उस फोजी का सर याद कर रही थी जो कट गया पर झुका नहीं .तभी तो सर बने वजीर बार बार अपनी टोपी संभाल रहे थे. हम और हमारे फर्ज से बंधे पुलिस के जवान जानते हैं कि जो सर ख्वाजा के दर पे झुकने आया हो उसे ख्वाजा ही उसके कर्मो की सजा देंगे .हमारी वर्दी , हमारे कोट , हमारे आवरण, हमारे आचरण, दुशमनी को भी दिलेरी से निभाते है ,.शायद इसीलिए नवाज़ देवबंदी ये शेर कहते है….
देने को हम भी दे सकते है तुम्हे गाली
हमारी तहज़ीब मगर इसकी इज़ाज़त नहीं देती

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