भगवान शिव ने ज्ञान दिया था मनु पुत्र नभग को

shivji 7 bमनु के सबसे छोटे पुत्र का नाम नभग था। भगवान शिव ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया था। मनु पुत्र नभग बड़े ही बुद्धिमान थे। जिस समय नभग गुरुकुल में निवास कर रहे थे, उसी बीच उनके इक्ष्वाकु आदि भाइयों ने नभग के लिए कोई भाग न देकर पिता की सारी सम्पत्ति आपस में बांट ली और अपना-अपना भाग लेकर राज्य का संचालन करने लगे। कुछ काल के बाद ब्रम्हाचारी नभग गुरुकुल से वेदों का अध्ययन करके वहां आये। उन्होंने देखा कि सब भाई सारी सम्पत्ति का बंटवारा करके अपना-अपना भाग ले चुके हैं। नभग ने अपने भाइयों से कहा कि आप लोगों ने मेरे लिये हिस्सा दिये बिना आपस में पिता की सारी सम्पत्ति का बंटवारा कर लिया। अत: अब प्रसन्नतापूर्वक मुझे भी हिस्सा दीजिये। मैं अपना भाग प्राप्त करने के लिए यहां आया हूं। नभग के भाइयों ने कहा कि जब सम्पत्ति का बंटवारा हो रहा था उस समय हम तुम्हारे लिये हिस्सा देना भूल गये। अब हम पिताजी को ही तुम्हारे हिस्से में देते हैं।
भाइयों का यह वचन सुनकर नभग को बड़ा विस्मय हुआ। वे पिता के पास गये और उन्हें भाइयों के साथ हुई सारी बातों की जानकारी दी। श्राद्धदेव ने कहा कि बेटा तुम्हारे भाइयों ने ये बातें तुम्हें ठगने के लिए कही हैं। फिर भी मैं तुम्हारी जीविका का एक उपाय बताता हूं। इस समय आंगिरस गोत्रीय ब्राह्मण एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं। प्रत्येक छठे दिन के यज्ञ में उनसे भूल हो जाती है। तुम वहां जाओ और उन ब्राम्हणों को विश्वेदेव संबंधी दो सूक्त बतला दो। यज्ञ समाप्त होने पर जब वे ब्राह्मण स्वर्ग जाने लगेंगे, तब तुम्हें यज्ञ से बचा हुआ सारा धन दे देंगे। पिता के आदेश से सत्यवादी नभग बड़ी प्रसन्नता के साथ उस उत्तम यज्ञ में गये और छठे दिन के यज्ञ कर्म में उन्होंने विष्वेदेव संबंधी दोनों सूक्तों का स्पष्ट रूप से उच्चारण किया। यज्ञकर्म समाप्त होने पर वे आंगिरस ब्राह्मण यज्ञ से अवशेष अपना-अपना धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गये। यज्ञशिष्ट धन को जब नभग ग्रहण करने लगे, उस समय सुंदर लीला करने वाले भगवान शिव कृष्ण दर्शन रूप में प्रकट हो गये। उन्होंने नभग से पूछा कि तुम इस धन को क्यों ले रहे हो? यह तो मेरी सम्पत्ति है। नभग ने कहा कि यह यज्ञशेष धन मुझे ऋषियों ने दिया है। तुम मुझे रोकने वाले कौन होते हो?
कृष्ण दर्शन ने कहा कि तात! हम दोनों के इस झगड़े के तुम्हारे पिता ही पंच रहेंगे, वही बताएंगे कि यह सम्पत्ति किसकी है। जाकर उनसे पूछो और जो निर्णय दें, उसे ठीक-ठीक बताओ। नभग ने जब अपने पिता से पूछा तो उन्होंने कहा कि पुत्र वे साक्षात भगवान शिव हैं। यों तो संसार की सभी वस्तुएं ही उनकी हैं, किन्तु यज्ञशेष धन पर केवल भगवान रुद्र का ही अधिकार है। वे तुम पर विशेष करने के लिये यहां आये हैं। तुम उनकी स्तुति करके उन्हें प्रसन्न करो और अपने अपराध के लिए उनसे क्षमा मांगो।
नभग पिता की आज्ञा से वहां गये और हाथ जोड़कर बोले- महेश्वर, यह सारी त्रिलोकी आपकी है। फिर यज्ञ से बचे हुए धन के लिए तो कहना ही क्या है। निश्चय ही इस पर आपका ही अधिकार है। यही मेरे पिता का निर्णय है। नाथ मैंने यथार्थ न जानने के कारण जो कुछ कहा है, उसके लिए आप मुझे क्षमा करें।
भगवान कृष्ण दर्शन बोले कि नभग, तुम्हारे पिता के धर्मानुकूल निर्णय एवं तुम्हारी सत्यवादिता से मैं परम प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें सनातन ब्रह्मतत्व के उपदेश के साथ इस यज्ञ का सारा धन देता हूं। ऐसा कहकर भगवान रुद्र अन्तध्र्यान हो गये।

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