मुम्बई में शुरू हुआ था लिज्जत, मोदी का कोई योगदान नहीं

शेष नारायण सिंह
शेष नारायण सिंह

-शेष नारायण सिंह- नई दिल्ली में फिक्की लेडीज़ संगठन के अपने भाषण में नरेन्द्र मोदी ने लिज्जत पापड़ पर भी अपनी दावेदारी ठोंक दी और बताया कि गुजरात की आदिवासी महिलायें यह पापड़ बनाती हैं। लेकिन जो लोग लिज्जत पापड़ के आन्दोलन को समझते हैं उनको जो मालूम है वह मोदी जी के दावे से बिलकुल अलग है। इस बात में सच्चाई हो सकती है कि गुजरात में भी लिज्जत पापड़ बनता हो क्योंकि अब उसकी शाखाएं पूरे देश में हैं लेकिन उस आन्दोलन की शुरुआत गुजरात से तो बिलकुल  नहीं हुयी थी। मुम्बई के गिरगांव इलाके की एक बिल्डिंग में रहने वाली सात महिलाओं ने पापड़ बनाना शुरू किया था। वे सब गुजराती थीं। उन्होंने सर्वेंट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी के सदस्य छगनलाल पारेख से अस्सी रूपये उधार लेकर 1959 में पापड़ बनाने का कम शुरू किया था। 15 मार्च को वे अपनी बिल्डिंग की छत पर इकठ्ठा हुयीं और पापड़ बनाया। मुम्बई के भुलेश्वर में एक सेठ जी की दूकान पर वे पापड़ बेच दिया करती थीं। इन महिलाओं ने तय कर लिया था कि किसी से दान नहीं लेगीं। वे नुक्सान के लिये भी तैयार थीं लेकिन किसी से भी मदद माँगने को तैयार नहीं थीं।

लिज्जत पापड़ का जो उदाहरण है उससे यह बात तो बहुत ही बुलन्दी से साबित हो जाती है कि वह महिलाओं के उद्यम की सफलता का नतीजा है लेकिन यह कहीं नहीं साबित होता कि  उसमें मोदी के गुजरात मॉडल का कोई योगदान है या मोदी जी ने कोई बहादुरी करके लिज्जत पापड़ उद्योग को सफल कराने में कोई काम किया है। लेकिन जिस तरीके से नरेन्द्र मोदी ने अपनी बात कही उससे उन्होंने यह सन्देश देने की कोशिश की कि उसमें उनके तथाकथित गुजरात मॉडल का योगदान है। 1959 में मुम्बई में शुरू होकर लिज्जत पापड़ का काम बहुत वर्षों तक मुम्बई केन्द्रित ही रहा। बाद में कई राज्यों में शाखाएं खुलीं और महिला गृह उद्योग पापड़ के नाम से यह संगठन आज पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस उद्यम में सीधे-सीधे कभी किसी नेता से मदद नहीं ली गयी। हाँ यह सम्भव है कि खादी और विलेज इण्डस्ट्रीज़ कमीशन में जिन लोगों ने शुरुआती दौर में संगठन की मदद की हो वे कांग्रेस  पार्टी के सदस्य भी रहें हों लेकिन उन्होंने जो भी सहयोग किया वह कांग्रेसी होने की वजह से नहीं किया। दिल्ली में लिज्जत पापड़ की पहली यूनिट लाजपत नगर के पास  सर्वेंट्स ऑफ इण्डिया के कार्यालय में खुली थी। अब तो पूरे देश में और विदेशों में भी लिज्जत पापड़ की शाखाएं हैं।

लिज्जत पापड़ की कहानी में संघर्ष चारों तरफ है। अपने आपको राजनीति से दूर रखकर लिज्जत पापड़ चलाने वाली बहनों ने यह तो साबित कर दिया कि महिलायें वास्तव में पुरुषों से सुपीरियर होती हैं लेकिन उसमें मोदी जी या उनकी पार्टी का शामिल होना कहीं से नहीं साबित होता। लिज्जत पापड़ के उद्योग को हर क़दम पर संघर्ष करना पड़ा है। 1961 में मुम्बई के ही मलाड़ में एक दफ्तर खोलने की कोशिश की गयी लेकिन सफलता हाथ नहीं आयी। तीसरे साल तक सदस्यों की संख्या 300 तक पहुँच गयी थी। जगह थी नहीं इसलिए पापड़ का आटा गूँध कर बहनों को दे दिया जाता था और वे अपने घर से पापड़ बनाकर लाती थीं।
जुलाई 1966 में लिज्जत का पंजीकरण सोसाइटी एक्ट के तहत हो गया और लिज्जत उद्योग एक कोऑपरेटिव सोसाइटी बन गयी। उसी महीने खादी और विलेज इण्डस्ट्रीज़ कमीशन के अध्यक्ष यू एन देवधर ने प्रक्रिया शुरू करवा दी और और उसी साल खादी की ओर से लिज्जत को आठ लाख रूपये की वर्किंग कैपिटल की ग्रान्ट मिली और सरकार ने टैक्स में राहत की घोषणा की। अब तो लिज्जत में गृह उपयोग की बहुत सारी सामग्री बनती है। 15 मार्च 2013 को लिज्जत की बुलन्दी के 54 साल पूरे हुये और इसमें न तो मोदी का कोई योगदान है और न ही भाजपा का लेकिन नरेन्द्र मोदी ने एक मंच पर उसकी सफलता को अपने आप से जोड़ दिया।

दरअसल नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने इस तरह के राजनीतिक प्रयोग भी किये जब उन्होंने महात्मा गांधी और सरदार पटेल को अपनाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुये। यह देखना दिलचस्प होगा कि लिज्जत की सफलता को अपनी सफलता बताने में नरेन्द्र मोदी सफल होते हैं कि नहीं। हालाँकि अब तक का तो लिज्जत का रिकॉर्ड ऐसा है कि उन्होंने नेताओं को बहुत तवज्जो नहीं दी है।
शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार है। इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट।

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