सबके सिर के ऊपर से निकल गया पानी…

lord-shiva-विजय शर्मा- हमारी सरकार उस निठल्ले पति की तरह है जो सारे दिन घर में सोता रहता है।
बीवी सरीखी जनता जब किचेन से आवाज देकर बताती है कि खाने को कुछ नहीं है
तब भी ये करवट लेकर फिर सो जाता है।
लेकिन उत्तराखंड में जो कुछ हुआ है उसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता भी
जिम्मेदार है। बिजली-बिजली चिल्लाते रहते हैं हम। सरकार ने कोयला तो पहले
ही दलालों के हाथों बेंच दिया था इसलिए हर 5-7 किलोमीटर पर बांध बना
दिया। सरकार सोचती है कि गंगा पाप धोती है, इस पाप को भी माफ कर देगी।
बात यही तक नहीं रुकती है। हम अभी तक उत्तराखंड को पर्यटन के लिए
प्रसिद्ध राज्य के नाम से ही जानते आए हैं। सूबे की और केंद्र की सरकार
भी यही चाहती है कि राज्य के आर्थिक विकास के लिए इसे बढ़ावा दिया जाता
रहा। अब सरकार ने इसे इतना बढ़ावा दे दिया कि सारे होटल, गेस्ट हाउस
नदियों के एकदम किनारे आ गए। याद कीजिए कि आप ही ने उत्ताखंड जाने के बाद
‘रिवर व्यू’ वाले कमरे की मांग की थी। आप ही ने कहा था कि कमरे की खिड़की
से नदी दिखनी चाहिए। आपको नदी दिखाने के लिए होटलों ने धीरे-धीरे नदी की
ओर खिसकना शुरू कर दिया था।
होटल नदी की ओर इसलिए खिसक रहे थे क्योंकि गंगा दिन-प्रतिदिन पतली होती
जा रही थी। नदी इसलिए पतली होती जा रही थी क्योंकि उस पर ढेर सारे बांध
बना दिए गए थे ताकी आपको निरंतर बिजली मिलती रहे। और आप चुनावों में
बिजली देने वाली सरकार को चुन सके।
ये कहने का बिल्कुल ये मतलब नहीं है कि बादल फटने और बाढ़ के बाद किसी
प्रकार की क्षति नहीं होती लेकिन थोड़ी समझदारी से इसकी व्यापकता को कम
जरूर किया जा सकता था।
विकास के इन मायनों को भी हमें समझना होगा। उत्तराखंड में जो कुछ हुआ उसे
विकास का भयावह पक्ष कहा जा सकता है।
जो लोग आल्प्स घूमकर आए हैं और जिन्होंने पश्चिम के पहाड़ों के फोटो देखे
हैं और कह रहे हैं कि वहां तो वादियों में बेहद सुंदर सड़क बनाए गए है।
तो उनके लिए जवाब ये है कि हमारे हिमालय नए हैं। ये नए पहाड़ हैं। ये अभी
अपना स्वरूप तैयार ही कर रहे हैं। इस बदलाव में वो कई बार अपना रुख
बदलेंगे, कई बार ढहेंगे तो कई बार बनेंगे।
क्या आपने आज तक किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव प्रचार के दौरान इस बात को
लोगों को समझाते हुए देखा है। नहीं ना। वो कभी नहीं समझाएगी और आप कभी
समझोगे भी नहीं।
आपको बात तब समझ में आएगी जब आपको कोई उत्तराखंड में फंसा होगा और आप उसी
सरकार के आगे प्रदर्शन कर रहे होगे।
हिंदू धर्म के तीर्थ स्थानों को समझने की भी जरूरत है। क्या आपने ये कभी
सोचा है कि इनमें से अधिकतर इतने दुर्गम स्थानों पर क्यों हैं ? अगर
धार्मिक पक्ष को देखें तो कहीं ना कहीं ये श्रद्धालुओं की भक्ति और आस्था
की परीक्षा होती है। अगर गंभीरता से विचार करें तो ये देशाटन का भी पक्ष
उजागर करते हैं। आप भीड़-भाड़ से निकलकर कुछ नया अनुभव करने की इच्छा
रखते हैं। आप यात्रा में होते हैं तो कई बार नए स्थानों के साथ अपने अंदर
की नई बातों से रूबरू होते हो।
क्या तीर्थस्थानों का वहीं महत्व रह गया है? निश्चित रूप से देशाटन अब
पर्यटन में बदल चुका है। अब जोखिम भरे रास्तों की जगह सुंदर सड़कों की
मांग बढ़ी है। आप यात्रा भी करें और आपकों कठिनाई भी हो, ये आपको
बर्दाश्त नहीं होता है। आखिरकार आप राज्य की ‘आर्थिक प्रगति’ में योगदान
जो कर रहे हो। अब आप ये तय कर लो कि इस यात्रा से आप कितने पाप धोते हो
और कितने अपने सिर पर चढ़ाते हो।
दुनिया सुविधाजनक होती जा रही है और इसका खामियाजा हर किसी को भुगतना भी
पड़ रहा है। आप पेड़ काटकर हेलीपैड बनाते हो ताकि लोग आसानी से केदारनाथ
में दर्शन कर सकें। आज उस हेलीपैड का इस्तेमाल लाशों को ढोने के लिए किया
जा रहा है।
हम नासमझ है इसलिए हमारी सरकार निठल्ले पति की तरह सोती है। वो कितनी
निठल्ली है उसको अगर तथ्यों के माध्यम से समझाया जाए तो ऐसा कहा जाएगा।
दिन – गुरुवार
तारीख – 13 जून 2013
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में जोरदार बारिश हुई। पिछले कई दिनों से
लोगों को बारिश का बेसब्री से इंतजार था। बारिश के आने से मौसम सुहावना
हो गया था। राजधानी देहरादून में करीब एक घंटे बारिश हुई। जानकारी मिली
की रुद्रप्रयाग, श्रीनगर और कर्णप्रयाग में पिछले 24 घंटे से ये बारिश हो
रही है।
मौसम विभाग ने बस कोरम पूरा करने के लिए एक अलर्ट जारी कर दिया। मौसम
विभाग ने बताया कि ऊंचे इलाकों में लैंडस्लाइड आ सकता है। मौसम विभाग ने
अपने अंदेशे को राज्य आपदा विभाग के साथ साझा किया।
दिन – शनिवार
तारीख – 15 जून 2013
बाढ़ से बेखबर उत्तराखंड सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए 39 करोड़ रूपए
जारी कर दिए। जिसमें से राज्य के 13 जिलों को 3-3 करोड़ मिलना था। सरकार
ने ये कदम पिछले साल से सबक सिखते हुए उठाया था। क्योंकि पिछले साल भी
उत्तरकाशी और रुद्रकाशी में बादल फटने के कारण लोगों को जान गंवानी पड़ी
थी।
दिन –  शनिवार
तारीख – 15 जून 2013
ऋषिकेश में एम्स इमारत की निर्माण में लगे तीन मजदूर गंगा में नहाने गए
और डूब गए। वो दिन में लगभग 3 बजे नहाने के लिए गए थे। गंगा उसी वक्स
उफान पर थी। सरकार बेखबर थी। मौतों का सिलसिला आगे बढ़ने वाला था।
दिन – रविवार
तारीख – 16 जून 2013
उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में पिछले 24 घंटे से लगातार बारिश हो रही थी।
दुर्घटना की कोई सूचना न सरकार के पास थी और न ही मीडिया के पास। इन्हीं
24 घंटों में लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की जरूरत थी पर मौसम
और आपदा विभाग असफल रहा।
दिन – सोमवार
तारीख – 17 जून 2013
देशभर ने उत्तरकाशी में गिरती इमारत को देखा और इसके आगे का सिलसिला अभी
भी जारी है।

विजय शर्मा
विजय शर्मा

हमारी सरकारें निठल्ली होने के साथ-साथ नौटंकीबाज भी है। दुख है कि वो
लाशों के ऊपर भी नौटंकी करती है। राज्य सरकार के पास इस बात का आंकड़ा
होता है कि कितने लोग किस-किस तीर्थ स्थान पर दर्शन के लिए गए हैं। फिर
क्यों नहीं तत्परता से कार्रवाई की गई? फिर क्यों सरकार ने तेजी से कदम
नहीं उठाया ? क्यों सरकार को मीडिया की खबरों का इंतजार करना पड़ा ये
समझने के लिए कि त्रासदी कितनी बड़ी है ? फोन टैपिंग के जरिए अपने
विरोधियों की हर खबर रखने वाली सरकार का सूचना तंत्र इतना लचर है कि हजार
लोगों की मौत की खबर उसके पास नहीं पहुंची। अगर पहुंची भी तो उसने
कार्रवाई नहीं की क्योंकि उसे डर था कि कहीं लोगों के बीच अफरातफरी ना मच
जाए और उसे विरोध-प्रदर्शनों का सामना करना पड़ जाए।
हमारा मौसम विभाग, उसके तो क्या कहने। कहने को हमारे देश ने एक से एक
वैज्ञानिक पैदा किए हैं। हर साल यूनिवर्सिटिज में साइंस के कोर्सेज में
एडमिशन लेने के लिए मारामारी होती है फिर भी ये विभाग हर समय कमी का रोना
रोती है। इससे मौतों की भविष्यवाणी की अपेक्षा नहीं की जा रही है लेकिन
ये कम से कम इतना तो बता ही सकती है कि कहां कितनी बारिश होने वाली है।
हमारे देश में विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल की भी कमी है। जैसा
की इस मामले में हुआ है। आपदा और मौसम विभाग एक दूसरे से सूचना को लेकर
लड़ रहे हैं। ऐसी आपदाओं को रोकने के लिए कुछ छोटे कदम हमें उठाने होंगे।
बिजली की बर्बादी होने से रोकिए। ताकि कई जिंदगियां रोशन ही रहे।
इस आपदा में पानी सबके सिर के ऊपर से निकल गया था, शिव के, सरकार के और
जनता के। सबको अलग-अलग नुकसान हुआ है। सब अलग-अलग तरह से इसकी भरपाई करने
की कोशिश करेंगे।

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