दूर नहीं हुई उमा और शिवराज के दिलों की दूरी

5विनोद अग्रवाल– छतरपुर। प्रदेश में जहां-जहां से भाजपा से अलग होने के बाद उमाभारती द्वारा बनाई गई भारतीय जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार विधायक बने थे, उन विधानसभा क्षेत्रों के प्रति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बेरूखी सामने आने लगी है तथा वहां की जनसमस्याओं के समाधान के प्रति उन पर गंभीर नहीं होने के आरोप लगने लगे हैं। उमाभारती की जनशक्ति का भाजपा में विलय होने से उनके विधायक भी भाजपाई बन गये हैं। लेकिन शिवराज की सत्ता में उनको अभी भी पराया और ‘अछूतÓ माना जा रहा है। इसी कारण उन विधायकों की बातों को सत्ता केंद्र गंभीरता से नहीं लेता और उनके विधानसभा क्षेत्रों के प्रति मुख्यमंत्री का नजरिया उदासीन बना हुआ है। जिसकी शिकायत सम्बंधित विधायक अपनी नेता उमा भारती के सामने भी दर्ज करा चुके हैं। लेकिन वह भी क्या करें? भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बावजूद मध्य प्रदेश के सत्ता और संगठन द्वारा खुद उनको ही अभी तक दरकिनार रखा जा रहा है। उमाभारती के स्वभाव के अनुसार वह ज्यादा समय तक सहनशीलता का परिचय नहीं देतीं। ऐेसे में आगत विधानसभा चुनाव के पूर्व अहमियत न मिलने की दशा में वह किसी राजनीतिक तूफान के संकेत दे सकती हैं।
हालांकि टीकमगढ़ के कार्यक्रम में उमाभारती के साथ मंच साझा कर तथा उनके आवास में एक घंटे तक गुफ्तगू कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने यह संदेश देने का प्रयास किया था कि हम एक हैं, उमा जी मेरी बहन हैं और उमा जी ने भी उनको अपना भाई बताया था। इस मुलाकात से ङ्गवालियर पालक संयोजक सम्मेलन के महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आमंत्रित न किये जाने से उमाभारती के मन में उपजा गुस्सा कुछ शांत भी हुआ था। लेकिन यदा-कदा उस शांत हुई क्रोधाङ्गिन पर शिवराज के लोग घी डालकर भड़काने का काम कर ही देते हैं। जिससे सुधरते हालात फिर बिगडऩे लगते हैं।
बीते रोज भाजपा के भोपाल में आयोजित एक प्रादेशिक कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने वहां उपस्थित सभी नेताओं का सम्बोधन में नाम लिया। लेकिन बहैसियत राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उसमें शिरकत कर रही उमा दीदी का नाम तक लेना बेहतर नहीं समझा। इसी तरह के बहुतेरे उजागर और आंतरिक कारण सामने आये हैं। जिससे प्रतीत होता है कि उनका ‘उबालÓ ज्यादा दिनों तक थमने वाला नहीं है। गाहे-बजाहे उनकी जनशक्ति से जुड़े कार्यकर्ता भी जिले की राजनीति में सम्मान न मिलने तथा उपेक्षा की शिकायतें उनसे करते रहते हैं। जिससे समय-असमय दीदी का पारा चढ़ता ही रहता है।
नरेन्द्र मोदी को लेकर गोवा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में शामिल न होकर लालकृष्ण आडवाणी द्वारा व्यक्त की गई नाराजगी को ठंडा करने में सक्रिय हुई उमाभारती की भूमिका से मध्य प्रदेश के भाजपाई नेता और सशंकित हो गये हैं। क्योंकि उमाभारती की संघ से नजदीकी तथा राष्ट्रीय भूमिका नकारा नहीं जा सकता है। इसके बावजूद पदलोलुपता तथा अज्ञात भय से ग्रस्त म.प्र. की सत्ता और संगठन के लोग उमाभारती तथा उनके गुट को यथोचित सम्मान नहीं दे पा रहे हैं। जबकि आगत विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उमाभारती का सम्मान जनक तरीके से उपयोग आवश्यक हो गया है। क्योंकि शिवराज की घोषणाओं तथा रटे-रटाये भाषण का लाभ वोटों के रूप में भाजपा को न मिलना कई सर्वेक्षणों में साबित हो चुका है। यह हकीकत जानते हुये भी शिवराज तथा उनके लोग उमाभारती की प्रदेश में सक्रियता तथा उपयोगिता को भावी खतरा मान कर चल रहे हैं।
बुन्देलखण्ड के छतरपुर में बड़ामलहरा से जनशक्ति पार्टी से रेखा यादव तथा टीकमगढ़ की खरगापुर विधानसभा क्षेत्र से अजय यादव विधायक बने थे। उनके उमा भारती जुड़े होने के कारण सत्ता में उनकी आवाज को गंभीरता से नहीं लिया गया और क्षेत्र के विकास तथा जनसमस्याओं के समाधान हेतु शिवराज सरकार द्वारा कतई गंभीर प्रयास नहीं किये गये। प्रदेश की अन्य विधानसभाओं में शिवराज सिंह जितने सक्रिय नजर आये हैं, उतने इन विधानसभा क्षेत्रों में नहीं। जिसका आम जनता में भी गलत मैसेज जा रहा है।
6तिरंगा फहराने पर हुबली के मामले में मुख्यमंत्री पद छोडऩे वाली उमाभारती द्वारा भाजपा की वादाखिलाफी से आक्रोशित हो बड़ामलहरा विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के बाद हुये उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपनी नाक बचाने भाजपा को जिताने हेतु बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र को गोद लिया था। लेकिन उनकी असंवेदनशीलता जाहिर हो गई और वहां जनसमस्याओं का अम्बार लगता गया। अपने द्वारा घोषित शासकीय डिग्री कालेज को ही वह विकासात्मक स्वरूप कई वर्षो में नहीं दे पाये। अब क्षेत्र की जनता मुख्यमंत्री द्वारा कही गई बातों को कोरी लफ्फाजी करार देने लगी है।
बड़ामलहरा विधानसभा क्षेत्र के बकस्वाहा में 4 वर्षो के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीन बार अपना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर चुके हैं। कार्यक्रम तय करने के बावजूद उनका वहां न जाना, अब कई तरह के कयासों को जन्म देने लगा है। गत 27 जून को वहां अन्त्योदय मेला में उनकी शिरकत का निर्धारित कार्यक्रम फिर स्थगित हो गया है। ऐसे में आम जनता मानने लगी है कि मुख्यमंत्री, उमाभारती से जुड़े विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों के प्रति गंभीर नहीं हैं। तभी वह वहां घोषित कार्यक्रमों से मुंह मोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं।
ऐसे हालात का खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को अवश्य भोगना पड़ सकता है। शिवराज, उमाभारती तथा भाजपा के प्रांतीय सत्ता और संगठन को एकता के संदेश जनता में देने ही पड़ेंगे। अन्यथा मन और मत भेद की खबरों से भाजपा की क्षति अवश्यंभावी है। भाजपा ” अनेकता में एकता, हिन्द की कहानीÓÓ का गीत तो गाती है, पर उससे कोई सबक नहीं सीखना चाहती।

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