गरीबी मुद्दा तो बनती है,लेकिन मिटती नहीं

-अब्दुल रशीद सिंगरौली (मध्य प्रदेश) – “जन आशीर्वाद के हक़दार,शिवराज आपके द्वार”॥ यही स्लोगन लिखा फ्लेक्सी बैनर सिंगरौली जिला में चारो तरफ लगा हुआ है,जो इस बात की तस्दीक करता है कि चुनाव अब करीब है और संभवतः मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने सिंगरौली में अपनी पहली चुनावी यात्रा की शूरूआत कर दिया है। चुनावी यात्रा का आगाज़ महिनों पहले कांग्रेस ने भी अपनी परिवर्तन यात्रा के नाम से कर दी है। यानी वोट के लिए खेल शूरू हो गया है और विस्थापन का दंश झेलने वाली सिंगरौली की जनता का वोट महज लुभावने वादों के दम पर दोनों राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी हासिल करने के जुगत में लग गई है। क्योंकि सिंगरौली वासियों को वादों के सिवा कुछ भी राजनैतिक पार्टी देना भी नहीं चाहती क्योंकि सिंगरौली मध्य प्रदेश के कमाऊ जिला में से एक है,जो जीतने के बाद बेहद उपजाऊ है। यदि इनसान से दिखने वाले सिंगरौली कि आम जनता को जागरुक और सक्षम बना देंगे तो फिर बेवकूफ बनाकर कार्पोरेट राजनीति करना शायद ही संभव हो सके।

अब्दुल रशीद
अब्दुल रशीद

24 मई 2008 को मध्य प्रदेश के 50वां जिले के रूप में सिंगरौली जिला अस्तित्त्व में आया जिसकी घोषणा मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की और सिंगरौली को सिंगापुर बनाने का वायदा भी किया। लेकिन सिंगरौली कि आमजनता का विकास तो दूर उन्हें इस बात का भी श्रेय नहीं दिया गया की विस्थापन दंश, प्रदूषण कि मार और अंधकारमय जीवन जीते हुए भी देश के विकास के लिए बिजली आपूर्ति करने में सहयोग देते रहे। दुनियां में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहां लोगों ने विस्थापन को इतनी आसानी से स्वीकार्य किया हो। विस्थापन महज़ लोगो को यहां से हटा कर वहां करना नहीं होता बल्कि उनकी संस्कृति और रहन सहन का भी विस्थापन होता है जो महज चन्द सिक्कों कि बदौलत नहीं खरीदा जा सकता। सिंगरौली में कई जाति तो ऐसी है जो संरक्षित जाती में शुमार है जैसे खैरवार,बैगा जाति आदि। यह बेहद कष्टदायक बात है की सरकारें विकास के नाम पर इन लोगों का विस्थापन तो कर रही है लेकिन कोई इस ओर ध्यान नहीं देना चाहता के आखिर इनका विकास क्यों रुक गया है? कहीं ऐसा न हो के आने वाले समय में जब हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे हों तो सिंगरौली से बने सिंगापुर में सिंगरौली के मूल निवासी दुर्लभ जाति में शुमार हो जाए ? जिन्हें बस झांकियों में देखना नसीब हो? क्या हमारे देश की राजनीति में इतनी भी संवेदना नहीं बची कि हम इंसान को इंसान के रूप में देखें न कि वोट के रूप में। सत्ता के लिए हम गरीबी को मुद्दा तो बनाते हैं,लेकिन कभी उस गरीब को हक़ नहीं देते, जो आज भी अपनी फकीरी और गुर्बत भरी जिंदगी में भारतीयता को बचाए रखा है। चाय और शीतल पेय पीने के दौड़ में माड़ का स्वाद आपको गरीब के घर ही मिल सकता है और गुदड़ी में लाल की कहावत भी वहीं चरितार्थ होती हैं।

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