नशा …

नरेश राघानी मधुकर
नरेश राघानी मधुकर

इक रोज वक्त
अपने शिखर से उतर कर
मेरे सामने बैठ गया
कुछ देर वो बैठा
मुझे देखता रहा
मैंने गिलास खत्म किया
फिर भरने लगा
तो वक्त
हंस दिया
मैंने उसकी और देखा
वो चुप हो गया
जैसे कह रहा हो
अरे भाई … मैं आ गया
जब मैं नहीं था
तो भी पीते थे
मेरे इन्तेज़ार में
आज मैं आ गया हूँ
तो मुझसे बात करने की बजाये
आज भी पी रहे हो
शायद
वक्त को ये मालूम
नहीं है
की ऐसे कई हमदर्द आये
और चले गए
मधुकर वहीँ का वहीँ है
वैसा का वैसा
अकेला …

जय श्री कृष्ण …
-नरेश राघानी मधुकर

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