आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव – एक राजनैतिक अनुमान

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

पहली बार आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में त्रिकोणीय संघर्ष काँग्रेस, भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) और आआपा (आम आदमी पार्टी) के बीच देखने को मिलेगा. दिल्ली में मतदाता काँग्रेस से नाराज दिखते प्रतीत होते हैं, कारण बहुत से हैं -भ्रष्टाचार, कुशासन, महँगाई आदि. भाजपा के बारे में भी मतदाताओं की राय फिलहाल अच्छी नहीं है. भ्रष्टाचार में डूबी इस पार्टी की नैय्या तभी पार लग सकती है, जब दिल्ली प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में आमूल चूल परिवर्तन किया जाए और ऐसे लोगो को स्थान दिया जाए जिनकी छवि साफ़ हो. मतदाताओं के बीच वर्तमान दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की छवि साफ़ नहीं दिखाई पड़ती. आआपा ने अपना फोकस भ्रष्टाचार से बदल दिया है और अब पार्टी इस कोशिश में लग गई है कि मुस्लिम वोटों को कैसे लुभाया जाए. हालाँकि इस प्रयास से आआपा को कुछ मुस्लिम वोट मिल सकेंगे, पर पार्टी बहुत से धर्मनिरपेक्ष हिंदू वोट खो देगी, क्योंकि धर्मनिरपेक्ष हिंदू वोटों के लिए हिंदू सांप्रदायिकता, मुस्लिम सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण को स्वीकार नहीं करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि  आआपा का गठन शीला दीक्षित और उसके बेटे संदीप दीक्षित के कहने पर भाजपा वोटों को बाँटने के लिए किया गया है. आआपा ने विद्युत दरों के मुद्दे पर गरीबों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा विरोध के कारण ‘आम आदमी पार्टी’ की छवि ‘भाजपा विरोधी पार्टी’ बन गई है. वैसे आआपा दिल्ली में ही चुनावों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. इसके लिए पार्टी ने पूरे देश से स्वयंसेवक आमंत्रित किए हैं और देश-विदेश से डोनेशन (चन्दा) एकत्रित कर रही है. अभी हाल ही में आआपा द्वारा उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया से नाराज पार्टी के कुछ सदस्यों ने ‘भारतीय आम आदमी परिवार’ (बीएएपी – बाप) बना ली है, जिनका आरोप है कि आआपा अब एक आलीशान आमदनी पार्टी बन गई है, जिसके पास करोड़ों का चन्दा देश-विदेश से आता है. यह तो अब दिखने भी लगा है कि राजनैतिक क्रांति का वादा करनेवाली आआपा में लोकतांत्रिक व्यवस्था का अभाव है और बहुत से कार्यकर्ताओं ने आआपा की सदस्यता छोडनी शुरू कर दी है. खाने के दाँत कुछ और है  दिखाने के कुछ और, तभी तो जो कहा जाता है वह् किया जाता नहीं. घर में जिला कार्यालय चल रहे हैं, जबकि आआपा के राष्ट्रीय संयोजक ने मिशन बुनियाद कार्यक्रम में यह स्पष्ट कर दिया था कि हर जिला मुख्यालय पर पार्टी का एक फंक्शनरी कार्यालय खोला जाना चाहिये, जो किसी के घर पर नहीं हो. इन सब बातों का प्रभाव आगामी दिल्ली विधान सभा चुनावों में अवश्य देखने को मिलेगा. जहाँ एक ओर दिल्ली का मतदाता काँग्रेस और भाजपा से नाराज है,वहीं आआपा से बहुत उत्साहित भी नहीं है. और यही कारण होगा कि आगामी दिल्ली विधान सभा चुनावों में किसी भी एक पार्टी को बहुमत मिलने की संभावना नहीं है. फिर भी ऐसी संभावना है कि दिल्ली में 70 सीटों वाली विधानसभा में आआपा को 20 तक सीटें मिल सकेंगी, काँग्रेस 20 सीटों तक सिमट जाएगी, भाजपा 25 सीटों तक आ पाएगी और बाकी सीटों पर अन्य दल या निर्दली जीतेंगे. गठजोड़ की राजनीति में सरकार कौन बनाएगा और मुख्यमन्त्री कौन होगा, यह अभी कहना मुश्किल है. इसका आकलन करने के लिए कुछ और समय लगेगा.
– केशव राम सिंघल

error: Content is protected !!