शिक्षा एवं स्वालम्बन से होगा महिला विकास

kiran4-किरण माहेश्वरी- महिलाओं की समस्याऐं एकाकी नहीं है। वे समग्र समाज की समस्याऐं है। मध्यकाल महिलाओं की दृष्टि से भारतीय इतिहास का काला कालखण्ड है। इस काल में महिलाओं को शिक्षा, सम्मान एंव स्वतंत्रता से वंचित कर दिया गया था। उन पर विवेक शून्य एवं अमानुषिक प्रतिबंध लगा दिए गए थे। घर परिवार में उन पर अत्याचार एक सामान्य परिपाटी बन गई थी। महिलाओं का सम्मान मात्र ग्रंथों में सीमित होकर रह गया। इस कालखण्ड की अमानूषिक परम्मपराओं का प्रभाव आज भी यत्र तत्र देखने को मिल जाता है। कई परिवारों में महिलाओं के एक आर्थिक उपार्जन वाली सदस्या होने पर भी उसे सम्मान नहीं दिया जाता है। वो शारिरिक, मानसिक एवं सामाजिक प्रताड़ना का शिकार बनती रहती है। उनके स्वाभिमान और स्वतन्त्र चेतना को सदियों तक कुचला गया था । आज भी सामाजिक सोच में इसका प्रभाव दिखता है। महिलाओं को समानता का, सम्मान का एवं स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संस्कृति में अन्तर्निहित है। भारतीय धर्म ग्रंथों में नारी – पुरूष भेदभाव नहीं है। महिला को सरस्वती, लक्ष्मी एवं दुर्गा स्वरूपा माना गया है। किन्तु सामाजिक चलन में शास्त्रों के इन संदेशों की पालना दिखती नहीं है। घर परिवार में महिलाओं की स्थिति सरस्वती, लक्ष्मी एवं दुर्गा के समान सम्मानीय नहीं हो पाई है। महिलाओं को सम्मान एवं स्वाभिमान की योजनाओं की देश में घटता लिंगानुपात हंसी उड़ा रहा है।
महिला की परिस्थितियों एवं समस्याओं के मूल में शिक्षा एवं स्वालम्बन का अभाव एक बड़ा कारण हे।
शिक्षा से मानव मन में विवेक एवं चिंतन की आधार भूमि तैयार होती है। वह अपने साथ किए जा रहे व्यवहार के गुण दोषों पर स्वतन्त्र अभिमत बनाने मे सक्षम बनता है। शिक्षा से सामाजिक प्रतिष्ठा एवं आर्थिक सम्बलता भी बढ़ती है।
women at Karedi Villageदेश की सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखनें में सर्वाधिक योगदान महिलाओं का ही रहा है। शिक्षित महिला इन परम्पराओं में युगानुकूल परिवर्तन कर इन्हें अधिक स्वीकार्य एवं उपयोगी बना सकती है। परिवार की धुरि महिला ही होती है। महिलाओं को शिक्षित बनाकर परिवार संस्था को उन्नत बनाया जा सकता है। सामाजिक समारोहों में अपव्यय, क्षमता से अधिक व्यय एवं प्रदर्शन की भावना परिवारों की आर्थिक स्थिति को चरमरा देती है। इन पर अंकुश महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से ही लग सकता है। राजकीय नीतियों में महिलाओं को शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए विशेष प्रोत्साहन होने चाहिए। महिला शिक्षा को बढावा देने के लिए सभी शिक्षा संस्थानों में न्युनतम एक तिहाई महिला शिक्षक होनी चाहिए। महिलाओं को उच्च एवं व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में विशेष आरक्षण दिया जाना चाहिए। महिला स्वालम्बन से जहां महिलाओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी, वहीं वह समाज के जीवन स्तर को भी उन्नत बनाने में सहायक होगा। राजकीय नियुक्तियों में महिलाओं की भागीदारी 40: से कम नहीं होनी चाहिए। शीर्ष न्यायपालिका, अन्य संवैधानिक संस्थाओं एवं उच्च प्रशासनिक नियुक्तियों में भी 40: महिलाओं का चयन अनिवार्य किया जाना चाहिए
महिलाओं सशक्तिकरण के लिए यह एक सार्थक एवं प्रभावी पहल होगी। आर्थिक रूप से स्वालम्बी, शिक्षित एवं विवेक शील महिला सामाजिक एवं राजनीतिक जगत में अपना स्थान स्वयं बना लेगी।
महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देना राज्य का दायित्व है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को महिला उद्यमिता के लिए विशेष प्रोत्साहन समुच्चय घोषित करने चाहिए । महिला उद्यमियों को 5 करोड़ रूपये तक की ऋण सहायता बिना किसी प्रतिभूति के दी जाए। राज्य की खरीद में महिला उपक्रमों को विशेष समर्थन दिया जाए। महिला उपक्रमों को भूमि आवंटन मे प्राथमिकता दी जाए। महिला उद्यमियों के लिए प्रशिक्षण एवं तकनीकी समर्थन की विशेष व्यवस्था की जाए। जिन उपक्रमों में 40: से अधिक महिलाएं नियोजित हो, उन्हें विशेष प्रोत्साहन दिया जाए। राजकीय परियोजनाओ की संविदाओं में महिला उद्यमों को विशेष प्राथमिकता प्रावधान किया जाए। महिला सशक्तिकरण के लिए छोटे, एवं खुदरा व्यापार करने वाली महिलाओं के संरक्षण के लिए विशेष निधि बनाई जाए। उन्हे जीवन वृति, बीमा, आकस्मिक ऋण सहायता, राज्यकर्मियों द्वारा अनावश्यक प्रताड़ना से बचाने एवं असामाजिक तत्वों द्वारा उत्पीडन की सूचनाओं पर त्वरित एवं प्रभावी कार्यवाही करने की आवश्यकता है। राज्य की महिला नीती का उद्धेश्य महिलाओ को शिक्षा एवं स्वालम्बन के विशेष अवसर उपलब्ध करवाना होना चाहिए।
महिला सशक्तिकरण वस्तुतः समग्र समाज का सशक्तिकरण है। महिला उत्थान से विकास की गति तिव्र होगी, देश सशक्त बनेगा, समाज उध्वगमी होगा। आवश्यकता है उन्हें आगे बढ़ने के अवसर देने की।

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