अनुभवों की सुरभि को सलाम

मोहन थानवी
मोहन थानवी

सम्माननीय वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी श्री लक्ष्मण भंभाणी साहब के संपादन में 14 वर्ष से प्रकाशित हो रही अर्द्धवार्षिक पत्रिका सिंधी साहित्य सुरभि सिंधी का उत्कृष्ट साहित्य सिंधी में उपलब्ध करवा रही है। सुरभि का अप्रैल 2013 का अंक हिंदी सिनेमा में सिंधी फनकारों के फन को, उनके परिश्रम को, उनकी प्रतिभा को पाठकों के सम्मुख रखता है। खुद भंभाणी साहब का विशेष आलेख सिनेमा के सौ साल सिंधियों का योगदान बेमिसाल ऐसा शोध पत्र है जो युवा पीढ़ी के लिए आने वाले समय में प्रेरणादायी दस्तावेज माना जाएगा। साधुवाद। इस अंक में सुंदरी उत्तमचंदानी, गुनो सामनाणी, गोवर्धन भारती, लखमी खिलाणी, प्रो नामदेव ताराचंदाणी, इंदिरा वासवाणी, वीना टहिल्याणी की कथाएं भी पाठकों के लिए नायाब तोहफा है। एक कवि कालम में डा प्रेम प्रकाश और लघु कथाएं में राजेंद्र रिझवाणी की लेखनी मन मोह लेती है। साथ ही डा मेठाराम थधाणी का आलेख सिंधी लोक गीत-संगीत एवं नृत्य कला – दशा और दिशा एक संग्रहणीय शोध पत्र सी महत्ता रखता है। सबसे खास महत्व रखने वाला खुद भंभाणी साहब का कालम … और अंत में … है। वे लिखते हैं – अंग्रेजी भाषा के एक विद्वान विलियम ए वार्ड ने एक जगह लिखा है, अगर आप मेरी खुशामद करें तो हो सकता है कि मैं आपका विश्वास न करूं। अगर आप मेरी आलोचना करें तो हो सकता है कि मैं आपको पसंद न करूं। अगर आप मेरी उपेक्षा करते हैं तो हो सकता है कि मैं आपको कभी माफ न करूं। परंतु आप मुझे प्रोत्साहित करें तो मैं आपको कभी नहीं भूल पाउंगा। सुरभि पत्रिका निरंतर आपके पास पहुंच रही है। यह पत्रिका का 28 वां अंक है। क्या आप नहीं चाहेंगे कि मैं आपको कभी भूलूं नहीं । – मोहन थानवी
( मूल रचना सिंधी में )
घणा मानवारा वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी श्री लक्ष्मण भंभाणी साहिब जे संपादन में 14 सालनि खां साया थिंदड़ सिंधी का उत्कृष्ट साहित्य हिंदी में…. सिंधी साहित्य सुरभि जो अप्रैल 2013 जो अंक हिंदी सिनेमा में सिंधी फनकारनि जे फन खे, उननिजी मेहनत खे, उननि जी प्रतिभा खे पाठकनि जे साम्हूं रखे थो। खुद भंभाणी साहिब जो खासु आलेख सिनेमा के सौ साल सिंधियों का योगदान बेमिसाल ऐहिड़ो शोध पत्र आहे जहिंखे नई टेहीअ लाइ इन्दड़ सवनि सालनि तांई प्रेरणादायी दस्तावेज मंञबो। साधुवाद। इनि अंक में सुंदरी उत्तमचंदाणी, गुनो सामनाणी, गोवर्धन भारती, लखमी खिलाणी, प्रो नामदेव ताराचंदाणी, इंदिरा वासवाणी, वीना टहिल्याणी जियूं कथाउं बि पाठकनि लाइ नायाब तोहफो आहे। एक कवि कालम में डा प्रेम प्रकाश ऐं लघु कथाएं में राजेंद्र रिझवाणी साहिब जी लेखनी मन मोहे थी। गडोगडु डा मेठाराम थधाणी साहिब जो आलेख सिंधी लोक गीत-संगीत एवं नृत्यकला – दशा और दिशा हिकु संग्रहणीय शोध पत्र जो महताव रखे थो। सभिनी खां खास ऐं महताव वारो लेखु बि खुद भंभाणी साहिब जो आहे, उवे लिखनि था … अंग्रेजी भाषा जे हिक विद्वान विलियम ए वार्ड हिक जाइ ते लिखियो आहे – जे कडहिं तव्हां मुहिंजी खुशामद कंदव त थी सघंदो आहे कि मां तव्हांजो विश्वास न कयां। जे कडहिं तव्हां मुहिंजी आलोचना बि कयो था त थी सघंदो आहे कि मां तव्हांखे नापसंद कयां। तव्हां मुहिंजे वजूद जी अणडिठी थ कयो त थी सघंदो आहे मां तव्हांखे कडहिं मुआफ न कयां पिणु तव्हां मूखे हिमथायो था त मां तव्हांखे कडहिं बि वेसारे कीन सघंदुसि। सुरभि पत्रिका लगातार तव्हां वटि पहुंची रही आहे। पत्रिका जो ही 28 हों अंक आहे। छा तव्हां इयो न चाहिंदा कि मां तव्हांखे कडहिं वेसारियां न । – मोहन थानवी
( यह रचना सिंधु केसरी जोधपुर, सुजागु सिंधी बीकानेर सहित चुनिंदा सिंधी पत्र-पत्रिकाओं में सिंधी में प्रकाशित हो चुकी है )

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