क्या भारत की उम्मीदों पर भी खरे उतरेंगे ओबामा

विश्व के सर्वशक्तिमान राष्ट्र अमेरिका ने अपना राष्ट्रपति चुन लिया है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार मिट रोमनी और डेमोक्रेटिक पार्टी के ओबामा के बीच कांटे की टक्कर थी। लेकिन एक बार फिर जीत उसी कर्मठ इंसान की हुई है जिसने आज से चार साल पहले जर्रे को आफताब बनाने की ठान ली थी। एक बार फिर ओबामा ने इतिहास रच दिया। ओबामा जैसे राष्ट्रपति से न सिर्फ अमेरिका को ही उम्मीदें हैं बल्कि भारत को भी ओबामा से काफी उम्मीदें हैं। इन दिनों जिस तरह से दोनों देशों के बीच आपसी समझ और रिश्ते पनपे हैं ऐसे में भारत की उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गई है।

ओबामा ने अपने देश के लिए जो कूटनीति बनाई है वो भारत के लिए काफी लाभदायक होगी। अमेरिका विकासशील राष्ट्र की दौड़ में सबसे आगे है। ऐसे में जिन नीतियों के साथ ओबामा अमेरिका को इतना आगे लाए हैं भारत को उन नीतियों पर अमल करना चाहिए। ओबामा हमेशा ही कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप के खिलाफ रहे हैं। आउटसोर्सिग की अगर बात करें तो ओबामा ने इसका भी तगड़ा विरोध किया था लेकिन क्योंकि बाहर के देशों में चीजें सस्ती होती हैं इसलिए अमेरिका आउटसोर्सिग करता है। लेकिन ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा की अब यूएस में भारतीयों के लिए कितना रोजगार पैदा होता है। हालांकि ओबामा से भारत का उम्मीद का दामन काफी बड़ा है।

दूसरी ओर ईरान जिस तरह से अपने आपको परमाणु हथियार बनाकर सक्रिय कर रहा है ऐसे में वो पूरे विश्व के लिए एक खतरा बनता जा रहा है। अमेरिका ईरान का विरोध करके भारत का समर्थन कर रहा है। यही नहीं अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस बुलाने पर भी अमेरिका अगले साल विचार कर सकता है। अमेरिकी सुरक्षा या युद्ध जैसे मुद्दे दुनिया के लिहाज से भी ओबामा का जीतना काफी बेहद महत्वपूर्ण हैं। ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और शाति की स्थापना, मध्य-पूर्व में बन रहे नए समीकरणों का शातिपूर्ण ढंग से समाधान तथा चीन के साथ सीधे टकराव से बचना आदि आज की जरूरतें हैं। हालाकि अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की पहली पीढ़ी खुद को डेमोक्रेटिक पार्टी के ही ज्यादा करीब पाती हैं, लेकिन अब वहा भारतीय समुदाय की राजनीतिक सोच में धीरे-धीरे बदलाव के संकेत दिख रहे हैं।

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