इंसानी दिमाग में छुपी है दुर्दात अपराधियों की पहचान

 

 

किसी हत्यारे, दुष्कर्मी और लुटेरे की पहचान उसके दिमाग से की जा सकती है। एक ताजा अध्ययन के अनुसार इंसानी दिमाग का वह बिंदु ढूंढ लिया गया है जिस पर शैतानी छाप होती है। यानी दिमाग के सेंट्रल लोब में एक काला धब्बा उस व्यक्ति की आपराधिक प्रवृत्ति दर्शाता है। जर्मनी के एक न्यूरोलॉजिस्ट ने अपनी ताजा खोज में बताया है कि खूंखार आपराधियों में यह भावना जन्मजात ही नहीं होती बल्कि उनके दिमाग पर इसकी छाप भी देखी जा सकती है।

जर्मनी के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. गेरहार्ड रॉथ ने एक एक्सरे के जरिए इंसान के दिमाग के सेंट्रल लोब के ऊपरी हिस्से में एक काले धब्बे को दर्शाते हुए अपने इस दावे की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि इंसान के दिमाग के अगले हिस्से में यह काले रंग का धब्बा ही उसकी हिंसक प्रवृत्ति को दर्शाता है। रॉथ ने यह शोध कई सालों तक सरकारी आपराधिक दस्तावेजों में मौजूद खूंखार अपराधियों के दिमाग के स्कैन के गहन अध्ययन के आधार पर किया है।

डेली मेल में प्रकाशित खबर के अनुसार आपराधिक पृष्ठभूमि के सभी लोगों के दिमाग के अग्र भाग पर यह काला धब्बा देखा गया। इस शोध में आपराधिक ग्राफ वाले लोगों को लघु फिल्में दिखाई गईं और उस दौरान उनकी मस्तिष्क की तरंगों का अध्ययन किया गया है। जब भी फिल्म में खूंखार और भयानक दृश्य दिखाए गए उनकी मस्तिष्क के तरंगों में कोई गतिविधि नहीं हुई। दिमाग के जिस हिस्से में लगाव, दुख और अन्य भावनाएं दर्ज होती हैं वहां भी कुछ नहीं हुआ। इस अनुसंधान से साफ हो गया है कि कई अपराधियों के दिमाग में एक आनुवांशिक वंचन होता है, जो कि एक्सरे और ब्रेन स्केन में एक धब्बे के रूप में नजर आता है। यह हिंसात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि अनुसंधान में यह भी देखा गया कि दिमाग के सेंट्रल लोब के ऊपरी मध्य भाग में कोई चोट लगने या फिर ट्यूमर होने के बाद भी लोग आपराधिक और हिंसात्मक प्रवृत्ति के बन गए। लेकिन उन लोगों के दिमाग के ट्यूमर का इलाज होने के बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गए। साथ ही उनकी हिंसात्मक प्रवृत्ति भी जाती रही। उन्होंने बताया कि इंसानी दिमाग का यह हिस्सा निश्चित रूप से शैतानी गतिविधियों का जनक है।

यहीं पर लोगों में बुरे बर्ताव और अपराध की प्रवृत्ति भी फलती-फूलती है। उन्होंने इस धब्बे की पहचान वाले अपराधियों के अपराध करने के मकसद की भी तीन श्रेणियां बनाई हैं। उनके मुताबिक पहली श्रेणी में वह लोग आते हैं जो मानसिक रूप से स्वस्थ हैं और ऐसे माहौल में पलते हैं जहां किसी की हत्या करना, चोरी-लूटपाट में कोई हर्ज नहीं। दूसरी श्रेणी के लोग वह हैं जो मानसिक रूप से विचलित हैं और इसलिए अपराध करते हैं। उन्हें अपने आसपास की दुनिया अपने लिए खतरा लगती है इसलिए वह अपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। तीसरी श्रेणी में वह लोग आते हैं पूरी तरह से साइकोपैथ यानी मनोरोगी हैं। इसमें उन्होंने हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाहों को शामिल किया है।

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