वक्त का फेर: मुशर्रफ की और बढ़ेगी मुश्किल

mushraffनई दिल्ली। शायद इसे ही वक्त का फेर कहते हैं। पाकिस्तान में चुनाव जीतकर एक तरफ नवाज शरीफ वहां की सत्ता संभालने जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कभी अपनी हनक और हेकड़ी से सबको खामोश करने वाले पूर्व सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ अपने किए की सजा भुगत रहे हैं।

सत्ता की बिसात में मुशर्रफ हार चुके हैं। विश्लेषकों के अनुसार नवाज शरीफ के सत्ता में लौटने के साथ ही इनकी दुश्वारियां और बढ़ सकती हैं। परवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ के बीच शह और मात के इस खेल पर एक नजर।

1997 के आम चुनावों में नवाज शरीफ की शानदार जीत हुई। लिहाजा वे देश के प्रधानमंत्री बने। अपने इस कार्यकाल में उन्होंने कई संवैधानिक सुधार किए जिसके चलते सेना और न्यायपालिका से उनका टकराव होता रहा।

सैन्य प्रमुख से विवाद

अक्टूबर, 1998 में तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल जहांगीर करामात से नवाज शरीफ का विवाद हो गया। करामात चाहते थे कि सिविल मिलिट्री विवादों के समाधान के लिए एक नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल का गठन किया जाए। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इसके खिलाफ थे। लिहाजा सैन्य प्रमुख को हटना पड़ा।

मुशर्रफ पर मेहरबानी

नए सैन्य प्रमुख की खोज शुरू हुई। दौड़ में चार लोग शामिल थे। मुशर्रफ वरिष्ठता और योग्यता में तीसरे पायदान पर थे, लेकिन नवाज शरीफ ने सभी उम्मीदवारों को खारिज करते हुए इन्हें सैन्य प्रमुख नियुक्त किया।

तख्तापलट

कारगिल विवाद के बाद दोनों के बीच बढ़ती तनातनी ने गंभीर रूप धारण कर लिया। इसी बीच मुशर्रफ किसी सैन्य समारोह में शिरकत करने श्रीलंका गए। वहां से वापस लौटने पर उनके विमान को कराची हवाई अड्डे पर उतरने नहीं दिया गया। यह आदेश प्रधानमंत्री कार्यालय से आया था। मुशर्रफ को हटाकर ख्वाजा जियाउद्दीन को नया सैन्य प्रमुख बनाए जाने संबंधी खबर को सुनकर भड़की सेना ने शरीफ को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया। 12 अक्टूबर, 1999 को परवेज मुशर्रफ ने शरीफ का तख्तापलट कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली।

आरोप

नवाज शरीफ पर श्रीलंका से आ रहे मुशर्रफ के विमान का अपहरण करने और आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि बाहरी दबाव के चलते सरकार के साथ हुए एक कथित समझौते के बाद उन्हें परिवार के 40 सदस्यों के साथ सउदी अरब निर्वासित कर दिया गया। यहां से नवाज शरीफ 2007 में स्वदेश लौटे।

मुशर्रफ का पलायन

देश में अपने खिलाफ दुरुह होती स्थितियों पर काबू करने में मुशर्रफ लगातार कमजोर साबित होते जा रहे थे। 2007 में नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो की वापसी ने नई मुश्किलें खड़ी कर दीं। मुख्य न्यायाधीश को हटाना, लाल मस्जिद प्रकरण, बुगती हत्याकांड, संविधान भंग कर आपातकाल थोपने जैसे मामले इन पर भारी पड़ने लगे थे। 2008 के आम चुनावों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने शानदार जीत दर्ज कर सत्तासीन हुई। अब मुशर्रफ पर महाभियोग चलाने की कवायद शुरू हुई। 18 अगस्त, 2008 को इन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया और 23 नवंबर, 2008 को स्वनिर्वसन में लंदन चले गए। 2013 के आम चुनाव में शिरकत करने लौटे।

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