बिना सैन्य समर्थन भारत से संबंध सुधार नहीं पाएंगे नवाज

military-nawaz-not-likely-to-do-much-on-indiaवाशिंगटन। तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने जा रहे नवाज शरीफ भले ही भारत के साथ संबंध सुधारने को लेकर गंभीर दिख रहे हो, लेकिन शक्तिशाली सेना के समर्थन के बिना वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकेंगे। यह बात पाकिस्तान में अमेरिका के पूर्व राजदूत कैमरन मंटेर ने कही है।

भारत-पाकिस्तान संबंधों को सुधारने के लिए लाहौर से मिल रहे सकारात्मक संकेतों के बारे में पूछने पर मंटेर ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शरीफ सेना के साथ कैसे संबंध बनाते हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि ऐतिहासिक कारणों के चलते कई भारतीयों के मन में पाकिस्तानी सेना को लेकर संदेह है। मगर सेना शरीफ के साथ सकारात्मक तरीके से काम करते हुए इन आशंकाओं को दूर कर सकती है।’ उन्होंने यह बात वाशिंगटन के प्रख्यात थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस द्वारा आयोजित कांफ्रेंस में कही।

मंटेर ने कहा कि जब तब शरीफ और सेना भारत के प्रति व्यापक पहल नहीं करते तब तक उनके लिए सीमाएं बनी रह सकती हैं। मंटेर 2010 से जुलाई, 2012 तक इस्लामाबाद में कार्यरत रहे। उस दौरान रेमंड डेविस मामले, ओसामा बिन लादेन को मारने जैसी घटनाओं के कारण दोनों देशों के संबंधों में कई बार खटास आई थी।

काउंसिल ऑन फारेन रिलेशन में भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ फेलो डेनियल मर्की ने कहा कि शरीफ और उनके गठबंधन को दो अलग-अलग दो दिशाओं में खींचा जा रहा है। एक ओर वह भारत के साथ रिश्ते सुधारने, स्थिरता और व्यापारिक संबंधों को सुधारने की बात करते हैं। यह शरीफ और उनकी पार्टी का सकारात्मक पहलू है। वहीं दूसरी ओर शरीफ पंजाब में कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले समूहों से जुड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वह जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा के कारण पैदा हो रही समस्याओं से वाकई निपटने की कोशिश करेंगे या फिर 1990 के दौर की उस छवि से दूर होंगे जब उन्होंने परमाणु परीक्षण कर डाला था। मर्की ने कहा कि दोनों में संतुलन बना पाना निश्चित रूप से मुश्किल होगा।

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