प्रभु कैसे हनीमून की बात कर सकते हैं ?

modi 1-मधुवन दत्त चतुर्वेदी- ‘महिमा मृगी कौन सुकृति की खल बच बिसिखन बाची ? सुदामा, कौन सुकृत ऐसा है जिसकी महिमा रूपी मृगी दुष्टों के वचन रूपी वाणों से बची हो ?’ प्रभु के वचन आज भी गूंजते हैं सुदामा के कानों में। सारी दुनिया चीखती चिल्लाती रहीअटल के राजधर्म का उपदेश भी सुना पर प्रभु मेरे चुप रहे। वे आलोचना की परवाह किये बिना विकास के लालन पालन में लगे ही रहते हैं। ये दुष्ट प्रजा जन तो अभ्यस्त हो गए हैं कोसने के। इनका क्या है ! पर इस बार प्रभु को खल बच बिसखन में से शायद कुछ चुभ गए हैं। पीड़ा कुछ विशेष है, तभी आर्तनाद हुआ है-हनीमून मनाने का भी समय नहीं दिया !

पर ये हनीमून है क्या ? जरूर कोई आनंददायी चीज होगी। शायद समर की थकान उतरने का कोई प्रबंध हो।विजेता तो हैं ही प्रभु ! समर भी कोई यूँ ही होता है। महासमर तक की प्रेरणा यही थी-हतो वा प्राप्यसी स्वर्गं जित्वो वा भोक्क्षस्ये महीम। शायद यह कोई भोग विलास है ! नहीं ! भोगी कहाँ हैं प्रभु। भामिनी तो कब की छोड़ दी है। नहीं कुछ और ही है। पर क्या चकराने लगा सुदामा।

नहीं शायद यह सुख की वस्तु नहीं है।अगर सुख होता तो प्रभु जनता के साथ न मनाते हनीमून ! प्रभु भी प्रसन्न और प्रजा भी। शब्द कोष खोला पाणिनि की व्याकरण देखी। पर शब्द न मिला। निराश सुदामा ने अंततः पूछना उचित समझा। अपने हिंदी संस्कृत ज्ञान का दंभ छोड़ कर पूछ ही बैठा एक अंग्रेजीदां से। सुना और सुनकर सन्न रह गया सुदामा। प्रभु कैसे हनीमून की बात कर सकते हैं हनीमून का आनंद तो द्विपक्षीय होता है। किसको खुश करके खुश होना चाहते थे ? प्रजा को तो पक्का नहीं अन्यथा प्रजा से अवसर न देने की शिकायत क्यों करते ?

मन में ईशनिंदा का भय उठा। रोम रोम कांप उठा। सिर झटका और सुदामा निकल पड़ा भिक्षाटन को।
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