अजमेर बंद ने दिए साफ साफ इशारे

clock tower 4मैं क्लॉक टावर हूूं। मैने आजादी से लेकर अब तक अजमेर के हर उतार चढ़ाव को देखा है। बीते दिन यहां एक ऐसा वाकया हुआ कि अपने मन की बात कहने को जी कर कर गया।
जो संगठन मृतप्राय: माना जा रहा हो, जिसके अध्यक्ष को नियुक्ति के एक साल बाद भी कार्यकारिणी गठित नहीं पाने के कारण कमजोर माना जा रहा हो, जिस संगठन की गुटबाजी के चर्चे हों, अगर उसके आह्वान पर अगर शहर ऐतिहासिक बंद हो जाता हो, तो समझा जाना चाहिए कि उसका आकलन गलत किया जा रहा है। शायद ऐसे ही अनुमान के कारण शहर जिला भाजपा ने शहर जिला कांग्रेस के अजमेर बंद के आह्वान को चुनौती देने की हिमाकत कर ली और मुंह की खायी। कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए तो यह घटना संजीवनी के समान है, जो हनुमान जी की भांति अपनी शक्ति विस्मृत कर बैठा था।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों शहर कांग्रेस के अध्यक्ष विजय जैन इस कारण मीडिया के निशाने पर थे कि वे एक साल बाद भी अपनी टीम घोषित नहीं करवा पाए हैं। माना ये जा रहा था कि वे दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को एक जाजम पर लाने में नाकामयाब हैं, इस कारण कार्यकारिणी नहीं बन पा रही। संयोग से चंद दिन बाद ही अजमेर बंद जैसा बड़ा चुनौती भरा प्रसंग आ गया। मीडिया वाले भी यही मान रहे थे कि शायद बंद सफल नहीं हो पाएगा, क्यों कि वे सीधे सादे हैं। मगर हुआ उलटा। अपेक्षाकृत कम बहिर्मुखी व्यक्तिव वाले विजय जैन के नेतृत्व में एक चमत्कारिक घटना घटित हो गई। लगातार तीन बार दोनों विधानसभा चुनाव हारने और वर्तमान में सत्तारूढ़ दल के दो-दो राज्यमंत्रियों के होते हुए भी बंद सफल हो गया। वो भी भाजपा के बंद को विफल करने के ऐलान के बाद।
इस वारदात ने साबित कर दिया है कि भाजपा के इस गढ़ में कांग्रेस का वजूद बरकरार है, बस फर्क उसके संगठनात्मक प्रयास में है। वैसे कांग्रेस खत्म नहीं हुई है, इसका सबूत निगम चुनाव में अजमेर दक्षिण में साफ दिखाई दिया था। पिछला विधानसभा चुनाव हारे हेमंत भाटी ने अपने इलाके में हार का जो बदला लिया, उससे यह आभास हो गया था कि जमीन पर आज भी कांग्रेस जिंदा है। अजमेर उत्तर में चूंकि कमान ठीक से नहीं संभाली गई, इस कारण भाजपा बाजी मार गई।
बहरहाल, अजमेर बंद राजनीति का वह मोड़ है, जहां आ कर भाजपा को यह अहसास हो गया होगा कि जिस मोदी लहर पर सवार हो कर पिछली बार कांग्रेस को पटखनी दी थी, उसकी रफ्तार थम चुकी है। वसुंधरा के जिस चमकदार चेहरे की लोग दुहाई देते थे, वह अब फीका पडऩे लगा। दो मंत्रियों की गुटबाजी से बुरी तरह से त्रस्त भाजपा के कर्ताधर्ता समझें तो उनके लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। दूसरी ओर कांग्रेस को स्पष्ट संदेश है कि वह चाहे तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकती है। बस शर्त सिर्फ इतनी है कि निजी स्वार्थ साइड में रख कर पहले सत्ता पर काबिज होने का लक्ष्य हासिल करने का जज्बा पैदा करना होगा। अब देखना ये है कि इस घटना से दोनों दल क्या सबक लेते हैं।

error: Content is protected !!