इन दिनों केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के एनजीओ की ओर से किए गए फर्जीवाड़े को लेकर बड़ा हंगामा हो रहा है। एक ओर जहां न्यूज चैनल आज तक व खुर्शीद के बीच सीधी टक्कर हो गई है, वहीं अरविंद केजरवाली ने भी खुर्शीद को निशाने पर ले रखा है। मीडिया भी जम कर चस्के ले रहा है, मगर कानाफूसी है कि जिस प्रकार का फर्जीवाड़ा उजागर किया गया है, वह तो लगभग सारे एनजीओ में एक सामान्य बात हो गई है। सच तो ये है कि इस प्रकार की फर्जीवाड़ा किए बिना एनजीओ चलाना कोई आसान काम नहीं है। अधिकतर एनजीओ में फर्जी आंकड़े ही प्रस्तुत किए जाते हैं। हां, इतना फर्क हो सकता है कि कहीं बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कर के बंगले बनाए जाते हैं तो कहीं आटे में नमक जितना फर्जीवाड़ा किया जाता है। यदि देश के सारे एनजीओ की बारीकी से ईमानदारी के साथ जांच की जाए तो यह सच सामने आ जाएगा कि दूध को धुला कोई भी नहीं है। चूंकि अरविंद केजरीवाल एनजीओ की कार्यप्रणाली से अच्छी तरह से वाकिफ हैं, इस कारण उन्हें न केवल फर्जीवाड़े की बारीकी आसानी से समझ में आ गई, अपितु हमले बोलने के कई सूत्र हाथ में आ गए। इसी सिलसिले में यह बताना प्रासंगिक होगा कि पिछले दिनों टीम अन्ना लोकपाल के लिए आंदोलन कर रही थी तो उसका जोर इस बात पर था कि एनजीओ को उसके दायरे में नहीं होना चाहिए, वो इसलिए कि टीम अन्ना जानती थी कि एनजीओ चलते ही फर्जी आंकड़ों से हैं। हालांकि एनजीओ के जरिए जनसेवा भी होती है, मगर कागजात की बात करें तो फंड हासिल करने के लिए हेराफेरी की ही जाती है, जो कि है तो गलत मगर है अपरिहार्य।