अब मान रहे हैं कि लांबा कमजोर प्रत्याशी थे

अजमेर सीट के लिए हुए लोकसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भले ही भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप लांबा को भोला मगर सच्चा इंसान बता कर तारीफ की हो, मगर हारने के बाद अब भाजपा नेता ही अपने फीड बैक में उन्हें कमजोर प्रत्याशी बता रहे हैं। कानाफूसी है कि हारने के अनेक कारणों में भाजपा विधायक एक कारण ये भी गिना रहे हैं। उनका कहना है कि लांबा भले ही साफ सुथरी छवि के हैं, मगर जातीय समीकरण के लिहाज से वे कमजोर साबित हुए। उनकी बात सही भी है।
यह बात सच है कि लांबा की हार में केन्द्र व राज्य सरकार के प्रति जनता की नाराजगी ने अपना पूरा असर दिखाया, मगर यह भी सच ही है कि जातीय समीकरण लांबा के पक्ष में नहीं बन पाया। एक ओर जहां ब्राह्मण पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रघु शर्मा के पक्ष में लामबंद हुए, वहीं राजपूत भी आनंदपाल प्रकरण के कारण भाजपा के खिलाफ चले गए। ये दोनों भाजपा के वोट बैंक थे। जब इनमें ही सेंध पड़ गई तो भला लांबा जीत कैसे सकते थे। हालांकि लांबा को प्रत्याशी बनाते वक्त ऐसा समीकरण बनने की आशंका भाजपा हाईकमान को थी, मगर वह जाटों के सबसे बड़े वोट बैंक को खोना नहीं चाहती थी। नतीजा सामने है। असल में भाजपा के लिए लांबा मजबूरी बन गए थे। एक तो किसी जाट को ही टिकट देना जरूरी था, दूसरा उसमें भी लांबा का पलड़ा अन्य जाटों के मुकाबले भारी था। यानि भाजपा ने यह चाल मजबूरी में चली, मगर इसी मात मिलनी थी और मिली भी।

error: Content is protected !!