अजमेर नगर निगम में लिफाफा सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा

कानाफूसी है कि नगर निगम में वर्षों से कथित रूप से चल रहा लिफाफा सिस्टम इस बार के बोर्ड में ठीक से इम्प्लीमेंट नहीं हो पाया है। स्वाभाविक रूप से व्यवस्था बदलने पर नई व्यवस्था को सेट होने में थोड़ा टाइम तो लगता ही है। वैसे भी मौजूदा मेयर श्रीमती बृजलता हाड़ा राजनीति में नई-नई हैं। इस कारण उन्हें सिस्टम को समझने में टाइम लग रहा है। वे फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। उनके पतिदेव डॉ. प्रियशील हाड़ा भी कुल मिला कर सीधे-सादे व ईमानदार हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि इस दंपति को लिफाफा संस्कृति व सिस्टम की ठीक से जानकारी नहीं है। अगर जानकारी है भी तो अनुभव की कमी है। ऐसे में घाघ अधिकारियों से इस बारे में चर्चा करना खतरे से खाली नहीं है। राजनीतिक रूप से भी खतरा कम नहीं है। श्रीमती हाड़ा के आगामी विधानसभा चुनाव में प्रमुख दावेदार बनने की पूरी संभावना है। जाहिर तौर पर उनका एक नया शक्ति केन्द्र बनना जिनको नागवार गुजर रहा है, वे घात लगा कर बैठे हैं कि कहीं चूक हो तो फिश प्लेट गायब करवा दें। उससे भी बड़ी बात ये कि राज्य में सरकार कांग्रेस की है। ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की रिस्क नहीं ली जा सकती।
हालांकि जानकारी है कि कुछ एक अनुभवी व तेज-तर्रार ने अपना हिसाब-किताब बना लिया है, लेकिन कई अभी वंचित हैं। सिस्टम सेट नहीं हो पा रहा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से वंचित वर्ग में असंतोष व निराशा व्याप्त है। उन्हें उम्मीद है कि कभी तो सिस्टम सेट होगा। ज्ञातव्य है कि पिछले बोर्ड में सभी संतुष्ट थे। किसी को कोई शिकायत नहीं थी। बिना किसी राजनीतिक भेद के सभी तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पैर छूते थे।
खैर, असल में समस्या ये भी है कि कोटा तो पहले जितना ही है, जबकि हिस्सेदारों की संख्या बढ़ गई है। अगर राजनीतिक नियुक्तियां हुईं तो यह संख्या और बढ़ जाएगी। ऐसे में लिफाफे का वजन कम हो जाएगा।
वैसे शहर वासियों के लिए यह सुखद है कि लिफाफा सिस्टम कायम नहीं हो पा रहा। हालांकि समझा जाता है कि देर-सवेर सिस्टम लागू तो हो जाएगा, मगर यदि वह लागू नहीं हो पाता तो हाड़ा दंपति की साफ-सुथरी छवि पर कोई कीचड़ नहीं उछाल पाएगा। फिलहाल उनके लिए यही अच्छा है। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि अगर उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो कहीं निचले स्तर पर सेटिंग न शुरू हो जाए, वह और भी घातक होगी।

-तेजवानी गिरधर
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