सुरेश टाक का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?

किषनगढ से एक बार निर्दलीय रूप में जीते सुरेष टाक इस बार चुनाव हार गए। मुकाबला भी उन्होंने मजबूती के साथ किया। कांग्रेस के विकास चौधरी को 83 हजार 645 मत मिले। दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय सुरेश टाक को 80 हजार 25 मत मिले, जबकि भाजपा के भागीरथ चौधरी 37 हजार 534 मत मत लेकर तीसरे स्थान पर खिसक गए। अब जब कि टाक हार गए हैं तो यह सवाल स्वाभाविक है कि उनका राजनीतिक भविश्य क्या होगा?
चुनाव से पहले एक पत्रकार मित्र से चर्चा हो रही थी तो मैने कहा था कि काठ की हांडी एक बार ही चढती है। आम तौर पर पाया गया है कि निर्दलीय को लगातार दूसरी बार भी निर्दलीय के रूप में जीतना कठिन होता है। उसकी वजह ये है कि परिस्थिति विषेश में ही त्रिकोणीय या चतुश्कोणीय मुकाबले में कोई निर्दलीय जीत कर आता है, लेकिन हर बार पहले जैसी स्थिति ही बने, यह जरूरी नहीं है। सुरेष टाक के साथ भी यही हुआ। हालांकि उनकी परफोरमेंस बहुत दमदार रही और भाजपा के दिग्गज सांसद भागीरथ चौधरी तीसरे स्थान पर पहुंच गए। ऐसे में स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है कि हारने के बाद भी उनका राजनीतिक भविश्य बरकरार है। जितना जनसमर्थन उनके साथ है, भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें अपनी ओर खींचने की कोषिष जरूर करेगी। वे मूलतः भाजपा मानसिकता के हैं, और उनका वोटर भी अधिसंख्य भाजपा विचारधारा का षहरी है। किषनगढ के विकास के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को समर्थन दिया, मगर कांग्रेस में षामिल नहीं हुए, अपना राजनीतिक भविश्य सुरक्षित रखने के लिए। उनका यह निर्णय उनकी राजनीतिक सूझबूझ का परिचायक है। कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई, इस कारण अब उनकी रूचि भाजपा में होगी। अगर भाजपा उनको कोई ठीक ठाक ऑफर देती है, तो वे सहर्श स्वीकार कर लेंगे। लोगों ने तो कयास लगाना भी षुरू कर दिया है। टाक को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष पद दिया जा सकता है। विकास के प्रति उनका रूझान किसी से छिपा नहीं है। निर्दलीय होते हुए भी उन्होंने खूब विकास करवाया। कोई और पद भी ऑफर किया जा सकता है।

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