टीआरपी के चक्‍कर में गुमराह कर रहे हैं कई टीवी चैनल!

उत्तराखंड में कुदरत का कहर, दहशत में देवभूमि, दर्द में देवभूमि, आफत में उत्तराखंड ऐसे ही जाने कितने नाम देकर न्यूज चैनल वाले अपने अपने तरीके से प्रोग्राम प्रसारित कर रहे हैं। अलग अलग तरीके से स्टोरी बनाई जा रही है। कोई कुदरत की विनाशलीला का जिक्र कर रहा है, तो कोई चला रहा है अनाथ हो गए केदारनाथ। न्यूज चैनल वाले ऐसे ऐसे शब्द ढूंढकर ला रहे हैं, जिसे देखकर ही एक पल के लिए दर्शक टीवी पर चिपककर रह जाए। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पत्रकार का धर्म है कि दुनिया जहान की खबरें देश दुनिया तक पहुंचाना। लेकिन सवाल ये है कि क्या मौजूदा वक्त में मीडिया वो सब दिखा रहा है जो उसे दिखाना चाहिए था। खबरें देखकर ऐसा लगता है मानो न्यूज चैनल हकीकत ना दिखाकर डरा रहे हैं। कई बार तो न्यूज चैनल पर चलने वाली कोई स्टोरी देखकर डर लगने लगता है। लेकिन क्या कभी आपने खबरों को इस तरह प्रसारित करने के पीछे न्यूज चैनलों की पॉलिसी जानने की कोशिश की है। क्या कभी आपने सोचा है कि दर्शकों के मन में सस्पेंस पैदा करने वाले इस तरह के प्रोग्राम के पीछे का असली खेल क्या है। क्या कभी आपने सोचा है कि न्यूज चैनल अब असली हकीकत से दूर क्यों हटते जा रहे है। क्या आपके जहन में कभी ये आया है कि एक खबर को आखिरकार एक फिल्म की शक्ल देकर क्यों पेश किया जाता है।

दरअसल ये पूरा खेल टीआरपी है। हर बडे से लेकर छोटे न्यूज चैनल की कोशिश होती है कि वो टीआरपी में नंबर वन रहे। अब न्यूज चैनल इतने सारे हो गए है कि नंबर वन बन पाना चुनौती साबित होने लगा है। इस कंडिशन में न्यूज चैनल में हर दिन मीटिंग की जाती है ताकी कुछ हटकर किया जाए जिसके बाद उनका चैनल नंबर वन की पॉजिशन पर बना रहे। टीआरपी से ही दरअसल चैनल की हैसियत का अंदाजा लगता है, इसी से तय होता है कि चैनल को पास कितना विज्ञापन आएगा और टीआरपी से ही कोई चैनल बड़ा ये छोटा बनता है। न्यूज चैनल का एक फंडा है। कहा जाता है कि कोई भी दर्शक चैनल ऑन करते ही मैक्सीमम 15 सेंकड तक किसी चैनल पर रूका रह सकता है। दर्शक को अपने चैनल पर चिपकाए रखने के लिए ही हर चैनल की कोशिश होती है कि वो इस तरह के कार्यक्रम बनाए जिससे कि दर्शक उसके साथ बंधे रहे। किसी भी चैनल के साथ जैसे जैसे दर्शकों की तादात बढेगी उसकी टीआरपी भी हाई होती चली जाएगी।

टीआरपी में नंबर वन बने रहने के लिए अब न्यूज चैनल ने अपने कार्यक्रम को सनसनीखेज बनाना शुरू कर दिया है। उत्तराखंड में आई आपदा को भी कुछ इसी अंदाज में पेश किया जा रहा है। मैंने देखा कि आईबीएन 7 न्यूज चैनल दिखा रहा है कि वो हर पल एनडीआरएफ के साथ साथ चल रहा है और राहत बचाव काम की उसे पल पल की जानकारी है। इस चैनल के रिपोर्टर इस तरह से रिपोर्टिंग कर रहे हैं मानो खबर नहीं जनता के दिलों में दहशत पैदा कर रहे हों। उधर दिल्ली में भी आईबीएन7 का यही रूप देखने को मिला। यमुना में बाढ़ तीन दिन बाद आई लेकिन उन्होंने पहले से ही दहशत फैला दी कि डूब जाएगी दिल्ली।
आज तक न्यूज चैनल ने तो केदारनाथ को ही अनाथ कर दिया। आज तक ने चलाया कि केदारनाथ में सिर्फ भगवान बचे हैं। आपदा उत्तराखंड में आई लेकिन इंडिया न्यूज चैनल के सलाखें प्रोग्राम में सुनामी से लेकर पिछली कई आपदा की कहानी का बखान कर दिया गया। न्यूज 24 तो सबका बाप निकला। करीब 7 मिनट की एक स्टोरी बनाई और उसमें एक ही बात को सौ बार घुमा फिराकर पेश कर दिया। इसी तरह का हाल जी न्यूज, न्यूज एक्सप्रेस तमाम दूसरे चैनलों का है।
0kd1अब आप केदारनाथ की इस तस्वीर को ही देखिए। ये तस्वीर केदारनाथ में हेलीकाप्टर से ली गई थी। सब चैनल की माई बाप एएनआई के पास कहीं से ये तस्वीर हाथ लग गई। एएनआई ने एक एक कर सब न्यूज चैनल को इस फोटो को बांट दिया। जिसके बाद तो हद हो गई। शायद ही कोई ऐसा चैनल बचा हो जिसने इस तस्वीर को एक्सक्लूसिव करके ना चलाया हो। जिस चैनल को देखो वही इस तस्वीर को इस तरह से एक्सक्लूसिव बना दिया जैसे उनके घर का माल हो। ऐसे में वक्त में न्यूज चैनल सारे मानक तक भूल जाते हैं। उन्‍हें सही खबर देने की बजाय बस टीआरपी की फिक्र होती है। http://bhadas4media.com

1 thought on “टीआरपी के चक्‍कर में गुमराह कर रहे हैं कई टीवी चैनल!”

  1. बड़ा अजीब लगा टी वी चैनलों की होड देख कर कि कौन सबसे पहले केदारनाथ त्रासदी के विडियो दिखाता है। अच्छा लगता यदि हम देखते की वहां मलबा हटाने का काम शुरू हो गया होता। कैमरामैनों की जगह वहां मजदूरों को कुदाल और फावड़े लेकर भेजने की आवश्यकता है। शायद मलबे में किसी के जिन्दा निकले की संभावना हो। सेना के हेलीकॉप्टरों का उपयोग फ़िलहाल नेताओं व पत्रकारों के लिए रोक दिया जाना चाहिए।

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