सत्य और आनंद स्वरूप के कारण ही परमेष्वर सच्चिदानंद हैं

RaviKrishna shashtriKatha Sunte Shrdhaluविदिषा /स्थानीय मेघदूत टॉकीज में श्रीमद् भागवत ज्ञानयज्ञ कथा का श्री गणेष जानी-मानी नन्ही सी भजन गायिका कु. सौम्या शर्मा के दो मधुर भजनों से हुआ। तत्पष्चात व्यासपीठ पर विराजमान भागवताचार्य पं. रविकृष्ण शास्त्री ने प्रथम दिवस की कथा का विधिवत शुभारंभ करते हुए कहा कि परमेष्वर साक्षात् सत्य और आनंद स्वरूप होने के कारण सच्चिदानंद कहलाते हैं। प्रेमी बनकर ही भगवान की श्री चरण-षरण प्राप्त हो सकती है। वैराग्य और ज्ञान की तुलना में प्रेम-भक्ति कहीं अधिक सरल पर सुनिष्चित फलदायी होती है।
प्रारंभ में भजन-गायिका बालिका कुमारी सौम्या के ‘‘ओ माँ’’ तथा भगवान श्री कृष्ण को समर्पित भजनों पर अनेक श्रद्धालुओं के नयनों से आंसू टपकते देखे गए। सौम्या ने सबको आनंदित और भाव-विभोर कर दिया। वहीं, कथा में पं. रविकृष्ण शास्त्री ने कहा कि भगवान श्री विष्णु सदैव शेषनाग पर विराजमान होने के बाद भी सर्वथा शांत चित्त रहते हैं, जबकि साधारण नाग दिखने पर ही कोई भी अषांत और भयभीत हो जाता है। उन्होंने इस अवसर पर संत महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि संत बड़े परमार्थी-परोपकारी होते हैं, जो दूसरों के कष्टों-संकटों को भी अपने ऊपर ले लेते हैं। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण-जरासंध युद्ध के संदर्भ में ब्राह्मणों की विषिष्ट महिमा सहित गौ, गंगा, गणेष, गायत्री की विषिष्ट गरिमा-महत्ता पर भी प्रकाष डाला। उन्होंने गौ-माता को जूठन और पतित-पावनी गंगा में गंदगी डालकर प्रदूषित करने पर कठोर रोक का आह्वान करते हुए गौ और गंगा संरक्षण पर विषेष बल दिया।

-अमिताभ शर्मा
मीडिया प्रभारी
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