बंदूकों के साए में ईद मना रहे हैं बेघर

असम के शरणार्थी शिविरों में रह रहें हजारों लोगों की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. जातीय हिंसा और उसके बाद तेज़ी से फैले अफवाहों की वजह से लोग शिविर में बंदूकों के साए में ईद मनाने को मजबूर है.


बांग्लाभाषी मुसलमानों और बोडो आदिवासियों के बीच हाल ही में हुई झड़पों में करीब 80 लोगों की मौत हो चुकी है. जातीय हिंसा में करीब चार लाख लोग विस्थापित हुए हैं. भारत में अंदरूनी विस्थापन की ये एक बड़ी घटना है.

असम में मौजूद बीबीसी संवादादाता संजॉय मजूमदार का कहना है कि राज्य में बंगलौर और अन्य शहरों से पलायन कर रहे लोगों का आना जारी है.

ट्रेनों में भारत के विभिन्न शहरों से लौट रहे ये लोग आम तौर पर निजी सुरक्षागार्ड, बेयरा या रोजमर्रा के श्रमिकों का काम करते थे.

असम लौट रहे ज्यादातर लोग ऐसे है जिनपर हमले तो नहीं हुए लेकिन अफवाहों और डर के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ रहा है.

हिंसा

गत 19 जुलाई को दो अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र नेताओं पर हुए हमले के बाद से असम के बोड़ो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के कोकराझाड़ जिले में जो हिंसा शुरू हुई थी जिसके बाद कई लोगों को घर छोड़कर शिविरों में रहने पर मजबूर होना पड़ा है.

कोकराझार ज़िले में इन शरणार्थी शिविरों में पहुँचे बीबीसी संवाददाता विवेक राज ने पाया है कि इन कैंपों में मुसलमान कड़ी सुरक्षा के साए में ईद मना रहे हैं.

कोकराझार के पासुगांव के कैंप में विवेक राज ने पाया, “गांव के उच्च माध्यमिक विद्यालय में लोगों के लिए सामुदायिक रसोई में सेवइयां बन रही हैं. लोगों ने इंटों से छोटे-छोटे चूल्हे भी बना रखे हैं जिनपर वो आलू और दूसरी सब्ज़ियां पका रहे हैं. इस कैंप में लगभग 7000 लोग हैं. इस कैंप में लोगों की संख्या ज्यादा है इसलिए दो बार नमाज़ पढने का इंतज़ाम किया गया है – भारतीय समयानुसार सुबह नौ बजे और फिर साढ़े दस बजे.”

बीबीसी संवाददाता के अनुसार कैंप में सफाई का पूरा इंतज़ाम नहीं है. बच्चे खुले में नहा रहे हैं और थोड़ा पानी भी फैल गया है.

जिन भी लोगों से बात होती है, वो ईद के समय इन कैंपो में अपने होने पर दुख जताते हैं. वो चाहते हैं कि ईद घर में ही मनाई जाती तो अच्छा रहता.

बाहर ‘असुरक्षित’

कैंप में रह रहे कुछ लोगों का कहना है कि सरकार उन्हें अपने घर लौटने को कह रही है लेकिन असुरक्षा के भाव में वह कही नहीं जाना चाहते.

कोकराझाड़ के राहत शिविर पर मौजूद बीबीसी संवाददाता से शरणार्थी ज़ुबीना बीबी ने कहा, “सरकार कह रही है कि हम अपने घर लौट जाए, यहां रहना भी कौन चाहता है. ना रहने की समुचित व्यवस्था है ना ही तन पर कपड़े, लेकिन बाहर हम असुरक्षित महसूस करते है तो बच्चों को लेकर कैसे जाए.”

उधर भारत ने रविवार को पाकिस्तान से लोगों के बीच नफ़रत फैलाने का मामला आधिकारिक तौर पर उठाया था.

भारत के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक से फोन पर बात की है.

गृह मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक शिंदे ने कहा,”पाकिस्तान से चिंता जताई की पाकिस्तान के कुछ तत्व सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर झूठी तस्वीरें और कहानियां फैला रहे हैं जिससे भारत में सामुदायिक तनाव बढ़े.”

उधर रहमान मलिक ने बाद में बयान जारी कर कहा कि पाकिस्तान के बारे में लगाए गए इन आरोपों पर भारत सबूत पेश करे और पाकिस्तान भारत को इस बारे में पूरा सहयोग देगा.

 

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