आरएसएस ने परमाणु प्रोग्राम / निति में परिवर्तन के लिए कहा

indresh kumarराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा फोरम फोर इंटीग्रेटेड नैशनल सिक्यॉरिटी (एफआईएनएस) जोर लगा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार दूसरे देशों से युद्ध की स्थिति में परमाणु हथियारों का ‘पहले इस्तेमाल नहीं करने’ की भारत की नीति बदल दे। आरएसएस लीडर और इस थिंक टैंक के मुख्य संरक्षक इंद्रेश कुमार ने ईटी को बताया, ‘मोदी सरकार भारत के परमाणु सिद्धांत पर नए सिरे से विचार करने का मन बना रही है। हम इस बात के लिए अपने राजनीतिक की प्रशंसा कर रहे हैं कि इस जरूरत पर उसका ध्यान है और इस दिशा में वह बढ़ रही है।’
पिछले शनिवार को एफआईएनएस की नैशनल एग्जेक्युटिव की छत्तीसगढ़ में हुई मीटिंग में प्रस्ताव रखा गया था कि भारत अपनी परमाणु नीति पर नए सिरे से विचार करे, खासतौर से परमाणु हथियार ‘पहले इस्तेमाल नहीं करने’ की नीति पर। साथ ही, यह प्रस्ताव भी रखा गया था कि चीन की ओर से घुसपैठ के मामलों में सरकार को ज्यादा सक्रियता दिखानी चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि इस विषय पर क्या पीएम और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से बातचीत हुई है, इंद्रेश कुमार ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि परमाणु शक्ति का उपयोग कल्याण और विश्व शांति में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि परमाणु शक्ति से लैस होना किसी भी महाशक्ति का विशेषाधिकार नहीं हो सकता है।
एफआईएनएस के पदाधिकारियों के लिए बनाई गई एक बुकलेट ईटी के पास भी है। इसमें एफआईएनएस के प्रेजिडेंट लेफ्टिनेंट जनरल डी. बी. शेकाटकर का कहना है कि ‘केंद्र की नई सरकार को न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि इस नीति में ही कहा गया है कि जरूरी हो तो संभावित बदलावों पर विचार करें और देश के सामरिक और रणनीतिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करें।’
बुकलेट के आमुख यानी प्रीफेस में लेफ्टिनेंट जनरल शेकाटकर ने कहा है, ‘क्या हमें अब भी पहले इस्तेमाल नहीं करने के वादे से बंधा रहना चाहिए? शत्रुता का भाव रखने वाले हमारे पड़ोसी को हमारा क्या जवाब होना चाहिए, जिसके पास परमाणु हथियार हैं और जिसकी घोषित नीति ही यही है कि उसके पास मौजूद परमाणु बम/मिसाइल केवल भारत के खिलाफ इस्तेमाल के लिए हैं?
क्या हमें अपने ऊपर पहले हमले का इंतजार करना चाहिए या हमें ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे हम ऐसे हमलों को हर कीमत पर रोक सकें? हमें 21वीं सदी में सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट की सोच की जगह सर्वाइवल ऑफ फास्टेस्ट को अपनाना चाहिए।’ इस साल अप्रैल में बीजेपी ने अपने मैनिफेस्टो में कहा था कि वह ‘भारत के न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन का विस्तृत अध्ययन करेगी और वर्तमान दौर की चुनौतियों के मुताबिक इसे प्रासंगिक बनाने के लिए इसमें बदलाव करेगी।’
एफआईएनएस, दिल्ली के जनरल सेक्रेटरी और नेशनल एग्जिेक्युटिव मीटिंग में हिस्सा लेने वाले प्रवेश खन्ना ने बताया, ‘हमने आठ मुद्दे चुने हैं और विशेष प्रकोष्ठ बनाए हैं। इन मुद्दों पर सरकार से बात की जाएगी। ये परमाणु नीति, भारत के रक्षा कार्यक्रम, भारत-चीन संबंध, नक्सल समस्या, आईएसआईएस, आतंकवादी संगठन, मेरीटाइम सिक्योरिटी, पड़ोसी देश और विदेश नीति से जुड़े हैं।’

error: Content is protected !!