विलासिता की हौड़ में दौड़ने वाले, मौत सब कुछ छीन लेगा

मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
मुनि डॉ. वैभवरत्न विजय
जगत के सुख सुविधा विलासिता के सामग्री के पीछे दौड़ने वाला इंसान इतना
पागल हो जाता है की वो खुद के देह को तक कोसता रहता है ना उसे खाने की
होश रहता है ना सोने की फ़िक्र वो उस दौड़ का इतना बड़ा हिस्सा बन जाता है
की उसका जूनून उसके सर पर पागलो की तरह चढ़ जाता है और इस कारण उसका खाना,
पीना, सोना या यूँ कहे व्यक्तिगत जीवन ही ख़त्म हो जाता है बस विलासिता के
साधां को इकट्ठा करने में लगा है. देह साथ ना देने के बाद भी शारीरिक
शक्ति ख़त्म होने के बावजूद भी विलासिता के सुखो के लालच में शरीर को कष्ट
देते हुए धन इकठ्ठा करने में लगा है बस उसके जहनो जातां में एक ही बात
चलती रहती है की कितना ज्यादा से ज्यादा मुझे इस संसार में मिल सकता है
यानि की सिकंदर की दौड़ में वो पागलपन है. उक्त वाक्य राष्ट्र संत जयंतसेन
सुरिश्वर जी म.सा. के शिष्यरत्न मुनि वैभवरत्न विजय जी म.सा. ने मुंबई
सात रास्ता जैन संघ को सम्बोधित करते हुए कहा.
मुनि श्री ने आगे कहा की विशेष बात तो यह है सदियों से सदियों तक मनुष्य
जीवन का लोभ ग्रस्त रहकर विलासिका के सुखो को भोगने की खोज जारी ही रही
आज भी वो खोज पूर्ण नहीं हो सका और पूर्ण हुआ तो भी वो अधूरा के सामान ही
है. मुनि श्री के अनुसार जब तक मनुष्य को संसार को देखने का ढंग पता नहीं
तब तक संसार की रख पर ही श्रंगार रचा रहा है. इस पृथ्वी का शाश्वत
सौंदर्य बलिदान है व्यक्ति सबकुछ पाने की दौड़ में सबकुछ प् कर भी सुखी
नहीं हो सका. हर पल लूटता रहा लूटता ही रहा. जिस तरह खाली हाथ आये उसी
तरह खाली हाथ जाना है फिर भी संसार में हर पल हर दर- दर पर लुटेरे डेरा
डाले तांक में बैठे है सिकन्दरो की यात्रा कभी भी पूरी नहीं होती है
लेकिन दुसरो को कुछ अर्पण करना दूसरों को मुस्कान प्रदान करना या अर्पण
करके जो अनद प्राप्त होता है वो विलासिता के सुखो से कई बड़ा है वही सफल
जीवन का विस्तार है. मनुष्य ने जो पुरे जीवन विलासिता की हौद में दौड़ लगा
कर प्राप्त किया वो अंतिम क्षणों में उसका साथ छोड़ देती है उसका स्वयं का
देह भी तो उसके लिए परया बन जाती है चारो तरफ से पीड़ा ग्रस्त देह भी मौत
के सामने समर्पित हो जाता है यदि सारा संसार भी मौत छीन ले तो उसमे
आश्चर्य क्या है नया क्या है देह के त्यागने के बाद के सुखो का ज्ञान एक
साधक ही देख सकता है जो साथ नहीं जाएगी ऐसी विलासिता की हौड़ में दौर के
बजाये साथ जाने वाले कर्मो के लिए साधना तपश्या की हौड़ में दौड़ लगाना
ज्यादा सुखकारी होगा जो मौत के बाद भी मनुष्य के साथ जायेगा.

अशोक लुनिया
9424812103

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