कोख उजाड़ने में सर्वोपरि नीतीश का नालंदा

ग़रीब दलित परिवार की युवती रंजन देवी के गर्भाशय में कोई ख़राबी नहीं थी. फिर भी एक निजी नर्सिंग होम में एक साल पहले सर्जरी करके उसकी बच्चेदानी निकाल दी गई.

रंजन देवी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िला नालंदा में बिहारशरीफ के पास मेघी गाँव की रहने वाली है. पति का नाम है पप्पू पासवान.

कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी, इसलिए 25 -26 साल की उम्र होते-होते उसके तीन बच्चे हो गए. और बच्चा नहीं हो, इसलिए कुछ नादानी और कुछ ग़लत सलाह में फंसकर उसने नसबंदी के बजाय अपनी बच्चेदानी को ही निकलवा लिया.

यहाँ ख़ास बात ये है कि संबंधित डॉक्टर ने इस केस में अपेक्षित नसबंदी की जगह बिना ज़रुरत गर्भाशय निकाल देने में बकौल रंजन देवी, ज़्यादा रूचि क्यों दिखाई.

इसी ‘क्यों’ का जवाब है बिहार का ‘गर्भाशय घोटाला.’

नालंदा में सबसे अधिक मामले

ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार बच्चेदानी ऑपरेशन के सबसे अधिक मामले (6,653) नालंदा ज़िले में हुए और क्लेम का सबसे ज़्यादा भुगतान भी (लगभग 25 करोड़ रूपए ) इसी नालंदा ज़िले में हुआ.

और ये आंकड़े तब हैं, जब राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) के तहत बीपीएल परिवारों को हेल्थ बीमा स्मार्ट कार्ड देने का काम बीते एक साल में इस ज़िले में ठप रहा है.

लेकिन मीडिया में इस घोटाले की अबतक हुई चर्चा में नालंदा का शायद ही कहीं ज़िक्र आया हो. तो आइए, पहले चलते हैं मेघी गाँव और बात करते है रंजन देवी और उनकी सास से.

कहानी रंजन देवी की

सबसे पहले रंजन देवी ने हमें ये बताकर चौंकाया कि मामूली पेट दर्द की शिकायत लेकर जब वह डॉक्टर के पास गई थी तो वहाँ एक डाक्टर ने अपेंडिक्स का ऑपरेशन करा लेने को कहा.

यहाँ बता दें कि आरएसबीवाई जबसे लागू हुई है, तब से बीमा कंपनियों की सूची वाले अस्पतालों में एपेंटिस-सायटिस यानी अपेंडिक्स के भी ऑपरेशन बड़ी तादाद में होने लगे हैं.

ख़ैर, बातचीत आगे बढी तो रंजन देवी ने कहना शुरू किया, ” मर्दाना (पति) हमारा ज़रा लोफरई (आवारा गर्दी) में रहता है और दारु भी पी लेता है. तो हम सोचे कि जब दो बेटा, एक बेटी हो गया है, तो नसबंदी करा लेते हैं. कम परिवार रहेगा तो ठीक से कमा-खा सकेंगे. मगर हमारे पति और सास को और बच्चा चाहिए था, इसलिए खीस में आकर हम सीधे बड़ा अपरेसन (बच्चेदानी का ) करवा लिए. छोटा अपरेसन (नसबंदी) से काम चल जाता लेकिन सब डरा दिया कि पेट में दाग हो जाएगा और मोटी भी हो जाओगी. इसलिए जब खुसबू अस्पताल की डाक्टरनी को बताया तो बच्चेदानी निकलवाने के नाम पर वो भी खुश हो गई. बोली कि बहुत अच्छा सोची हो. बच्चेदानी निकलवा लो, यही ठीक है. हमको क्या मालूम कि उसके बाद और भी बीमारी और कमजोरी में फंस जाएंगे.”

वहीं बगल में रंजन देवी की सास खड़ी थी और वो अपनी बहू पर आँखें तरेरने लगी. वो थोड़ी दबंग स्वभाव की दिख रही थीं.

सास कहने लगीं, “हम मना कर रहे थे कि जब बच्चेदानी में कोई ख़राबी नहीं है तो मत निकलवाओ. लेकिन ये तो गई डाक्टरनी से पूछने. डाक्टरनी तो पैसा के लोभ में खुश होके कह दिया कि जल्दी से बच्चेदानी निकलवा लो. सब जानते हैं कि डाक्टर लोगों को अपनी कमाई से मतलब होता है. इसी चक्कर में रहता है कि चीरा (ऑपरेशन) के लिए रोज़ कम से कम 10-15 मरीज़ आ जाए. इसलिए तो मेरी बहू को भी पटिया के उसका कोख उजाड़ दिया.”

‘लिकोरिया हुआ था लेकिन गर्भाशय निकाल दिया’

इतने में मेघी गाँव की कई औरतें वहाँ जुट गई. एक अधेड़ महिला चंद्रावती भी सामने आकर बोलने लगी, “मेरा जहाँ से बच्चेदानी निकाला गया है, वहाँ बहुत जोर से दरद के साथ भक-भक और टिस-टिस होता रहता है. बच्चेदानी निकलवाने के बाद से और बीमार हो गए हैं, दवा पर ही जी रहे हैं.”

एक औरत जब अपना हाल बताने से शर्मा रही थी तो उसके पति ने कहा, ”इसको लिकोरिया हो गया था इसलिए डाक्टर ने गर्भाशय निकाल दिया.”

जिन एजेंटों के ज़रिए देहात के लोगों को ऑपरेशन के लिए पटाकर निजी नर्सिंग होम तक पहुँचाया जाता है, उन एजेंटों को कम-से कम पांच सौ रूपए की दलाली मिल जाती है.

नालंदा के ज़िलाधिकारी संजय अग्रवाल ने अबतक आरएसबीवाई के तहत अपने ज़िले में किसी गंभीर शिकायत की बात क़बूल नहीं की. लेकिन उन्होंने जितना कुछ बताया, उससे मामले की जांच ज़रूरी होने के संकेत भी मिल जाते हैं.

सरकार का पक्ष

ज़िलाधिकारी ने बताया, ”नालंदा ज़िले में 29 हज़ार ऑपरेशन किए गये. इनमें 6,653 ऑपरेशन गर्भाशय निकाले जाने के थे. चूँकि राज्य के कुछ ज़िलों से शिकायतें आ रही हैं, इसलिए हमलोग भी टेस्ट-चेक करवा रहे हैं. ख़ासकर ऐसे अस्पतालों का, जिनमें 25 प्रतिशत से ज़्यादा सर्जरी गर्भाशय की हुई है. कुल 44 (वेबसाइट पर ये संख्या 64 ) अस्पताल इस ज़िले में लिस्टेड थे. इनमें 25 अस्पताल ऐसे पाए गए, जिनमें 25 प्रतिशत से अधिक ऑपरेशन गर्भाशय के थे. इसलिए जांच के लिए टीम गठित कर दी गई है.”

उधर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की बिहार शाखा के अध्यक्ष डॉ अरुण ठाकुर ने बीबीसी से कहा, ”सूचीबद्ध सभी निजी अस्पतालों पर ये आरोप लगाना ग़लत है कि वे सब इस घोटाले में लिप्त हैं. पर हाँ, जो फ़र्ज़ी अस्पताल खोलकर या मरीज़ों को धोखे में रखकर बीमा का नाजायज़ लाभ लिए होंगे, उनके बारे में ठोस सबूत अगर हमारी जांच टीम को मिलेगा, तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होकर रहेगी. लेकिन मेरा ख़याल है कि ऐसे क्रिमिनल दिमाग के डाक्टर अगर होंगे भी तो एक परसेंट से ज़्यादा नहीं होंगे. ”

नालंदा के जिन गांवों में हम इस खबर के सिलसिले में गए थे, उसी इलाक़े में विश्व प्रसिद्ध प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का खंडहर है. वहाँ अब अरबों रूपए की लागत से एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की निर्माण-प्रक्रिया जारी है.

वहीं दूसरी तरफ़ नालंदा में ही शिक्षा से वंचित दलित बस्तियों की कोख उजाड़ने वाले निजी अस्पताल कुकुरमुत्तों की तरह जहाँ-तहाँ उग आए हैं. इस ज़िले में कई लोग ये शिकायत करते हुए मिले कि लगता है ग़रीबों के हित में बनी इस योजना में भी लूट और शेयर बांटने की छूट मिली हुई है.

 

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