बांग्लादेशी मुसलमानों को जाना होगा: बोडो प्रमुख

जातीय हिंसा से झुलसे असम के बोडो इलाक़ों पर शासन करने वाली बोडोलैंड स्वायत्तशासी परिषद् के अध्यक्ष हाग्रमा मोहिलयारी का कहना है कि “बांग्लादेशी मुसलमानों को तो हम यहाँ रहने नहीं देंगे”.

असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भले ही कहते रहे हों कि राज्य के कोकराझार व आस-पास के इलाकों में हुई जातीय हिंसा गरीबी और अभाव के कारण हुई है लेकिन मोहिलयारी बिना लाग लपेट के कहते हैं कि “हिंसा का कारण बांग्लादेशी मुसलमान हैं.”

‘असम के मोदी’

असम में हाग्रमा मोहिलयारी को नापसंद करने वाले उन्हें ‘असम का मोदी’ कहते हैं तो उन्हें चाहने वाले उन्हें ‘चीफ’ कह कर पुकारते हैं. कोकराझार का बोडो समुदाय उनके साथ पूरी तरह खड़ा दिखाई पड़ते हैं.

साल 2003 तक भारत के ख़िलाफ़ काम करने वाले चरमपंथी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर या बीएलटी के प्रमुख रहे हाग्रामा ने अपने साथियों के साथ 2003 में हथियार डाल दिए और शांति प्रक्रिया में भाग ले कर बोडो पीपल्स फ्रंट या बीपीएफ़ की शुरुआत की.

बीपीएफ़ इन दिनों असम और केंद्र में यूपीए की साथी है और इसके राज्य विधान सभा में 12 सदस्य हैं और एक मंत्री है. इसके अलावा इसका लोक सभा में एक सदस्य भी है.

हाग्रामा ने जंगलों और चरमपंथ को भले ही छोड़ दिया हो लेकिन उनके तेवर आज भी शायद आज उतने ही तीखे हैं.

कोकराझार में बीबीसी से ख़ास बातचीत कहते हुए हाग्रामा कहते हैं बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोगो को स्वायत्त बोडो इलाकों में नहीं रहने देंगे.

दबाव दे कर पूछने पर हाग्रामा कहते हैं कि वो हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएगें लेकिन वो बांग्लादेशियों को अपने चार ज़िलों में नहीं रहने देंगे.

‘मुसलामानों के पक्ष में भेदभाव’

कोकराझार के राहत शिविरों में रहने वाले मुसलमान हाग्रामा के पुराने चरमपंथी संगठन बीएलटी पर आरोप लगाते हैं कि उनके लोगों ने मुसलमानों पर हमले किए और उनके घर जलाए. बीपीएफ़ के एक विधायक प्रदीप कुमार ब्रह्म के खिलाफ़ दंगों में भाग लेने के लिए एफ़आईआर भी है.

बीच-बीच में अपने तीन मोबाइल फ़ोनों पर निगाह गड़ाए हाग्रामा इत्तेफ़ाक से इंटरव्यू के वक़्त एक ऐसी सफ़ेद प्रिंट वाली शर्ट पहने थे जिस पर कंधे के ठीक ऊपर एक दाढ़ी टोपी वाले मुसलमान की तस्वीर साफ़ खिंची हुई थी.

अपने लोगों के खिलाफ़ दर्ज एफ़आईआर की बात करते हुए हाग्रामा आरोप लगते हैं, “पुलिस मुसलामानों के पक्ष में भेदभाव कर रही है. हमने कितने मुसलामानों के खिलाफ़ एफ़आईआर लिखाई लेकिन वो गिरफ़्तार नहीं हुए.”

असम में गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री तरुण कुमार गोगोई के पास है जिनके हाग्रामा से अच्छे ताल्लुकात माने जाते हैं.

हाग्रामा गोगोई को क्लीन चिट देते हैं और कहते हैं कि यह कोकराझार की स्थानीय पुलिस का काम है.

राज्य सरकार हाग्रामा और उनकी परिषद् को विश्वास में लेकर उन लाखों मुसलामानों के पुनर्वास की कोशिश कर रही है जो कैम्पों में पड़े हुए हैं. लेकिन हाग्रामा कहते हैं वो पहले चरण में केवल उन्हीं लोगों का पुनर्वास करेगें जिनके पास ज़मीन के मालिकाना हक़ के कागज़ हैं.

‘बांग्लादेशियों को जाना होगा’

जिनके पास ज़मीन के कागज़ नहीं हैं, उनमें से केवल उन्ही लोगों का पुनर्वास होगा जिनका या उनके पिता का नाम 1971 की वोटर-लिस्ट में होगा अन्य सभी लोगों को “असम सरकार या भारत सरकार चाहे जहाँ ले जाए.”

साल 2008 में भी इस इलाके में बोडो और मुसलमानों के बीच हुए दंगों में कम से कम 50 लोग मारे गए थे.

अपने इलाके में मुख्यमंत्री सी हैसियत रखने वाले हाग्रामा जोर दे कर कहते हैं, “इस इलाके में शांति तभी स्थायी तौर पर आ सकती हैं जब यहाँ से बांग्लादेशी मुसलमानों को निकाल दिया जाए.”

पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम की निर्णय लेने की क्षमता के मुरीद हाग्रामा कहते हैं “हम तो बांग्लादेशियों को रहने नहीं देंगे. मुसलामानों को छोड़ कर बोडो स्वायत्त इलाके में रहने वाले सभी लोग इस बात पर एक हैं कि बांग्लादेशियों को यहाँ से से जाना ही होगा.”

 

error: Content is protected !!