तो हमारा देश हिंदूवादी निरंकुश देश बन जाएगा

bhargavदेश में बढ़ती असहिष्णुता और नागरिक अधिकारों के दमन के विरोध में मशहूर वैज्ञानिक डॉक्टर पुष्प एम भार्गव ने पद्म भूषण सम्मान वापस करने की घोषणा की है. पीएम भार्गव को 1986 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. भार्गव को फ़्रांस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से भी नवाज़ा गया है लेकिन भार्गव पद्म भूषण को सबसे ज़्यादा महत्व देते रहे हैं. इससे पहले बढ़ती असहिष्णुता और साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में क़रीब 50 साहित्यकार साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं.
गुरुवार को दिवाकर बनर्जी और आनंद पटवर्धन समेत 12 फ़िल्मकारों ने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस लौटाने की घोषणा की थी.
बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य से पीएम भार्गव से बात की जिसमें उन्होंने अपने इस क़दम के कारण, समय, तरीके़ पर बात की.
वजहें
पहला कारण है कि यह सरकार लोकतंत्र के रास्ते पर नहीं चल रही है. अगर यह इसी पर चलती रही तो हमारा देश पाकिस्तान की तरह एक हिंदूवादी निरंकुश देश बन जाएगा.
दूसरा, हमारा संविधान वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा देने की बात कहता है न कि धार्मिक कट्टरता की. लेकिन ऐसा लगता है कि मौजूदा केंद्र सरकार में वैज्ञानिक चेतना नहीं है. वह बहुत से अतार्किक काम कर रही है.
इसका एक उदाहरण यह है कि हमारी मौज़ूदा सरकार हमें यह बताती है कि आप को क्या खाना है, क्या पहनना है और क्या बोलना है. वह हमें नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती है. यह बात हमें मंज़ूर नहीं है.
तीसरा कारण यह है कि केंद्र सरकार चलाने वाली भाजपा अपने फ़ैसले ख़ुद नहीं ले पाती है. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा है. फ़ैसले आरएसएस लेता है, भाजपा उस पर अमल करती है.
आरएसएस एक कट्टरपंथी हिंदू संगठन है. मुझे लगता है कि सरकार का आरएसएस के रास्ते पर चलना देश के लिए बहुत नुक़सानदायक होगा.
तरीक़ा
किसी ऑनलाइन याचिका पर दस्तख़त करना छोटी बात होती है. लेकिन पुरस्कार वापस करना कहीं बड़ी बात है.
इस सरकार से हमारी नाराज़गी इस हद तक बढ़ गई है कि हमने विरोध के सबसे उच्च स्तर पर जाने का फ़ैसला किया.
इसी वजह से हमने पद्म भूषण पुरस्कार वापस करने का फ़ैसला किया. मुझे लगता है कि इससे ज्यादा विरोध मैं नहीं कर सकता था.
जब मुझे यह पुरस्कार मिला था तो मुझे इस पर बहुत गर्व था कि मेरी सरकार ने मुझे इस पुरस्कार से नवाज़ा है. लेकिन पुरस्कार लौटाते हुए मुझे ज़रा सा भी अफसोस नहीं है. बहुत आसानी से मैंने यह फ़ैसला ले लिया.
फ़ैसला लेने से पहले मैंने केवल अपनी पत्नी, अपनी बेटी और एक क़रीबी मित्र चंद्रनाथ चक्रवर्ती से सलाह ली. तीनों की राय थी कि पुरस्कार वापस कर दिया जाए.
पुरस्कार वापस करने पर मुझे कोई संकोच नहीं हुआ. मैंने पुरस्कार को अपनी संतुष्टि के लिए वापस किया है. मुझे लगता है कि सरकार इसको लेकर कुछ नहीं करेगी. लेकिन अगर मैं ग़लत साबित होऊं तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी.
समय
आज देश में जो वातावरण बना है, वह आज से पहले नहीं था. अपराध छोटा भी होता है और बड़ा भी. हर अपराध की एक डिग्री होती है.
इसे ऐसे समझा जा सकता है, अगर आपके पास कोई व्यक्ति काम कर रहा है और उससे कोई छोटी-मोटी ग़लती हो जाए तो उसे काम से नहीं निकालते हैं. लेकिन जब वह कोई बड़ी ग़लती कर देता है तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता था.
आज देश में जिस तरह का वातावरण है, वैसा पहले नहीं था. ऐसा वातावरण न तो 1993 में था और न 2002 में. लेकिन उस समय भी हमने विरोध किया था.
केंद्र की यूपीए सरकार की नीतियों के विरोध में मैंने पिछले साल ‘एजेंडा फॉर दि नेशन’ के नाम से किताब लिखी थी, जो अभी बाज़ार में उपलब्ध है. इसलिए यह कहना बेकार है कि हमने पहले पुरस्कार क्यों नहीं लौटाए.
उस वक्त जो कार्रवाई हम कर सकते थे, की. उस समय सरकार किसी धार्मिक संगठन के सहारे नहीं चलती थी, जैसा कि अभी चल रही है.

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