प्रधानमंत्री घोटाले की जिम्मेदारी लें, त्यागपत्र दें-किरण माहेश्वरी

संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करती किरण माहेश्वरी

जम्मु। भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव व विधायक किरण माहेश्वरी ने कहा कि केन्द्र की वर्तमान यूपीए सरकार आजादी के बाद अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। आज घोटाले, शर्मनाक अनैतिक आचरण, गबन और भ्रष्टाचार ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की छवि का पयार्य बन गया है, जो लोकतंत्र को शर्मसार कर रहा है। हर दिन उसकी यह भ्रष्ट छवि एक नए घोटाले के साथ सामने आ रही है। पहले राष्ट्रमंडल खेलों में 76,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ तो 2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में यह घोटाला बढ़कर 1.76 लाख करोड़ रुपये हो गया और अब 1.86 लाख करोड़ रुपये के कोयला ब्लॉक आबंटन घोटाले ने सभी हदों को पार कर दिया है। वे यहाँ एक पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रही थी।
किरण माहेश्वरी ने कहा कि सारे भारत में कांग्रेस के विरुद्ध जनरोष चरम पर है। कांग्रेस की नीतियाँ भ्रष्टाचार को संरक्षण एवं महंगाई बढ़ाने वाली रही है। कथनी और करनी में अंतर कांग्रेस की संस्कृति रही है। डीजल के मूल्यों में वृद्धि, रसोई गेस पर 6 सिलेण्डरों की सीमा और खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश काँग्रेस की जन विरोधी नीतियों का प्रमाण है।

कोयला खानों के आवंटन में भ्रष्टाचार के प्रत्यक्ष प्रमाण
किरण माहेश्वरी ने कहा कि जहां तक कोल ब्लॉक आबंटन के भ्रष्टाचार का मामला है, भारत के इतिहास में यह भ्रष्टाचार का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। संसद में प्रस्तुत की गई कोयला ब्लॉक के आवंटन और कोयला उत्पादन बढ़ाने के बारे में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यूपीए सरकार की नीतिगत विफलता और भ्रष्टाचार के लिये मिलीभगत का उल्लेख किया गया है। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार इसी मिलीभगत के कारण सरकारी खजाने को 1,86,000 करोड़ रूपये की चपत लगी। सरकार ने प्रतिस्पर्धा बोली की व्यवस्था के जरिये कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए नीतिगत फैसला लिया, इस नीति को लागू करने में संदेहास्पद तरीके से देरी की और स्क्रीनिंग कमेटी के जरिये आवंटन के लिए विवेकाधीन और भ्रष्ट तरीकों को अपनाया और निजी तौर पर लोगों को फायदा पहुंचा।

कोयला ब्लॉकों का आवंटन राष्ट्रीय लूट
कैग रिपोर्ट आने के पश्चात् कोल ब्लॉक आबंटन से संबंधित अलग-अलग मामलों को लेकर जिस तरह से मीडिया में जानकारियां आ रही हैं, उनसे निश्चित तौर पर इस तथ्य की पुष्टि होती है कि कोयला ब्लॉकों का आवंटन राष्ट्रीय लूट था। ये भाई-भतीजावाद का ज्वलंत उदाहरण है। इस आवंटन से बड़ी संख्या में यूपीए के नजदीकी राजनीतिज्ञों और व्यवसायियों ने लाभ कमाया। इनमें से बहुत से लोगों का इस्पात या ऊर्जा क्षेत्र से कुछ भी लेना देना नहीं था। कुछ लोगों को ऐसे ही जुड़कर आर्थिक फायदा उठाने का मौका मिल गया। अपने नाम पर या संयुक्त उद्यम के नाम पर आवंटन के लिए उन लोगों ने अपने राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल किया और अप्रत्याशित फायदा उठाने के बाद वे बाहर हो गए। ये सभी कुछ प्रधानमंत्री की नाक के नीचे हुआ, जो उस समय कोयला मंत्री भी थे। भारतीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय एक सम्मानजनक संस्था है। अन्य मंत्रालयों की तुलना में इसके उच्च मानक होने चाहिए। प्रधानमंत्री अपने शासन में एक के बाद एक घोटाले की अनदेखी कर रहे हैं। यूपीए सरकार के इस 8 वर्ष के कार्यकाल के दौरान लगभग 5 वर्ष डॉ. मनमोहन सिंह स्वयं कोयला मंत्री रहे। और उनके कार्यकाल के दौरान बड़ी संख्या में कोल ब्लॉक आबंटन में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ।

निष्पक्ष जांच के लिए प्रधानमंत्री अपने पद से त्यागपत्र दें
भारतीय जनता पार्टी यह मांग करती है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कोयला घोटाले की नैतिक और राजनैतिक जिम्मेदारी लें और निष्पक्ष जांच के लिए अपने पद से त्यागपत्र दें, साथ ही निजी कंपनियों को आबंटित किए गए सभी कोयला ब्लॉक रद्द किए जाएं और ताजा निलामी की जाए। साथ ही साथ एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित कर इस घोटाले की स्वंतत्र जांच कराई जाए।

मूल्यों में होने वाली निरंतर वृद्धि के विरूद्ध आम आदमी की राष्ट्रव्यापी चिंता
किरण माहेश्वरी ने कहा कि कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार के कार्यकाल में इतने व्यापक रूप से भ्रष्टाचार तब हो रहा है, जब गत 8 वर्षों से आम जनता महंगाई की मार से कराह रही है। श्कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथश् का नारा देकर सत्ता में आई कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था का संचालन पूर्णतः लापरवाही भरा रहा है। परिणामस्वरूप देश में रोजमर्रा के इस्तेमाल की आवश्यक वस्तुओं की मूल्यवृद्धि को नियंत्रित करने में यह केन्द्र सरकार घोर रूप से विफल रही है। सरकार का कहीं पर भी नियंत्रण दिखाई नहीं देता। महंगाई की मार से आम जनता का हाल बेहाल है। दुधमुहे बच्चों का निवाला छिन गया है, गरीब मजदूर, किसान, मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग, व्यापारी, नौकरीपेशा आदि सभी वर्ग के लोग बेलगाम बढ़ती महंगाई से बुरी तरह प्रभावित हैं। ऐसी विकट आर्थिक आतंक की स्थिति में यूपीए सरकार का डीज़ल की कीमत में 5 रूपए की वृद्धि तथा रसोई गैस के वितरण में (कैप सिस्टम) वर्षभर में केवल 6 सिलेंडर सब्सिडी रेट में उपलब्ध कराने एवं बाकी सिलेंडरों की पूरी कीमत की अदायगी का जन-विरोधी निर्णय आम जनता पर एक कुठाराघात है। डीज़ल की कीमत में की गई वृद्धि का चौतरफा कुप्रभाव पड़ेगा। चरम सीमा पर पहुंची महंगाई अब सारी सीमाएं लांघ जाएंगी। यह दयनीय स्थिति केन्द्र की कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार की जन-विरोधी, गरीब-विरोधी, किसान विरोधी तथा मध्यम वर्ग विरोधी नीतियों और गलत आर्थिक नीतियों के कारण करोड़ों लोगों की व्यथा के प्रति संवेदनहीनता, भावशून्यता तथा निर्ममता भरे रवैये के कारण पैदा हुई है। यही नहीं संप्रग सरकार की गलत आर्थिक नीतियांरू कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार की आयात-निर्यात, कृषि, उपभोक्ता मामले, त्रुटिपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्य और सिविल सप्लाई गड़बड़ी, खराब भंडारण सुविधाएं, विŸाीय नीतियां तथा केन्द्रीय सरकार का कुप्रबंधन तथा जोड़-तोड़, भ्रष्टाचार यह सभी कारक वर्तमान महंगाई के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। भाजपा मांग करती है कि केन्द्र की यूपीए सरकार डीज़ल में 5 रूपए की मूल्य वृद्धि के निर्णय को वापस ले, रसोई गैस की सब्सिडी को वर्षभर जारी रखे ताकि महंगाई पर अंकुश लग सके।

खुदरा व्यापार के क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति राष्ट्रविरोधी निर्णय
किरण माहेश्वरी ने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा खुदरा व्यापार के क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दिया जाना पूर्णतया राष्ट्रविरोधी है। स्मरण रहे कि 17 नवम्बर, 2011 को संसद के दोनों सदनों में यूपीए सरकार ने आश्वासन दिया था कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर सभी मुख्यमंत्रियों और सभी राजनीतिक दलों से चर्चा और सहमति के बिना लागू नहीं होगा। फिर बिना सहमति लिए यूपीए सरकार ने किस के दबाव में आकर इतनी जल्दबाजी में यह निर्णय किया? डॉ. मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अपने अस्तित्व के लिए एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। स्मरण रहे कि हाल ही में यूपीए सरकार को भ्रष्टाचार और नीतिगत पंगुता के कारण गंभीर आलोचना झेलनी पड़ी है। कॉमनवेल्थ घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और उसके बाद कोल ब्लॉक आबंटन के घोटाले से वर्तमान सरकार की विश्वसनीयता राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। ऐसा लगता है कि पिछले दिनों देशी और विदेशी मीडिया में प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत रूप से हो रही आलोचना को यह सरकार सहन नहीं कर पा रही है। ऐसी अफसोसजनक स्थिति में हड़बड़ी में विदेशी कंपनियों के दबाव तथा विदेशी मीडिया में छवि सुधारने के लिए लिया गया यह एक जन-विरोधी निर्णय है।

5 करोड़ व्यक्तियों का छीन जाएगा रोजगार
इससे भारत के किसानों और लगभग 5 करोड़ खुदरा व्यापारी जोकि अपना जीवनयापन खुदरा व्यापार के माध्यम से करते हैं, इस सरकार की गलत नीतियों की वजह से पहले से ही अपना अस्तित्व बचाने में संघर्षरत हैं, का समूल नाश हो जाएगा। मल्टी ब्रांड क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति सरकार का एकतरफा निर्णय है। गौर करने की बात है कि पूर्व में ही संसद की दो स्थायी समितियों ने भी इसके विरोध में अपने विचार व्यक्त किए थे, परंतु इस विवेकहीन सरकार ने उनके विरोध को भी दरकिनार कर अपना एकतरफा निर्णय ले लिया तथा खुदरा व्यापारियों के लिए संकट के द्वार खोल दिए। पूरे विश्व से इसका उदाहरण लिया जा सकता है कि अब तक जहां-जहां इसे लागू किया गया वहां आज खुदरा व्यापारी नहीं पाए जाते हैं यानि उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।
आज पूरे भारत की जीडीपी का 58 प्रतिशत भाग खुदरा व्यापार के क्षेत्र से ही आता है। गौर करने की बात है कि इस खुदरा व्यापार के माध्यम से स्वरोजगार द्वारा भारत में बेरोजगारी पर काबू पाना एक महत्वपूर्ण साधन है। ऐसे में इस नीति के लागू होने से आर्थिक विकास तो अवरूद्ध होगा ही समाज का बुनियादी ढांचा भी चरमरा जाएगा। भारतीय अर्थव्यवस्था का चरित्र ऐसा है कि मल्टी ब्रांड में विदेशी निवेश निश्चित ही अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाएगा। भारत में केवल 18 प्रतिशत श्रम संगठित अवस्था में हैं। 30 प्रतिशत या तो बेरोजगार हैं या आकस्मिक श्रमिक की श्रेणी में आते हैं, जबकि 51 प्रतिशत स्व-व्यवसाय में हैं। स्व-रोजगार की श्रेणी में सबसे बड़ा योगदान कृषि का है। पांच करोड़ से अधिक भारतीय रिटेल कारोबार में लगे हुए हैं। साफ है कि रिटेल कारोबार अपने देश में रोजगार देने वाले सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है। संगठित अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मौजूदा रिटेल सेक्टर में लगे लोगों की आजीविका छीन लेगा। यह कड़वी सच्चाई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी देखी जा रही है। यही कारण है कि अमेरिका सरीखा विकसित देश भी वालमार्ट सरीखी कंपनियों को अपने रिटेल सेक्टर में उतरने की अनुमति नहीं दे रहा है।

भारत सस्ते चीनी वस्तुओं का मात्र बाजार बन कर रह जाएगा
रिटेल में विदेशी निवेश आने का एक अन्य बड़ा प्रभाव उत्पादन क्षेत्र पर पडे़गा। हमारे मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में अब तक सुधार नहीं हो सके हैं। हमारी ब्याज दरें बहुत ऊंची हैं, बुनियादी ढांचा खराब हालत में है, बिजली सरीखी जरूरतें महंगी हैं और व्यापार की सुविधाएं भी अस्त-व्यस्त हालत में हैं। जब तक हम इन क्षेत्रों में सुधार नहीं करते हैं तब तक हम चीन के समान कम लागत वाला उत्पादन नहीं कर सकते हैं। विदेश की बड़ी बड़ी कम्पनियां दुनिया के बाजार से सस्ता माल लेती हैं और उन्हें मंहगे दामों पर बेचती हैं। भारत में यह माल बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैण्ड आदि देशों से खरीद कर यह कम्पनियां लायेंगी और भारत के बाजार में बेचेंगी। उपभोक्ता वे उत्पाद खरीदेंगे जो सस्ते हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अपने उत्पादों की बिक्री की संभवनाएं अच्छी होंगी। इसका असर हमारे उत्पादन क्षेत्र पर पड़ेगा।

किसानों का होगा शोषण
यह तर्क भी वास्तविक प्रतीत नहीं होता है कि रिटेल कारोबार में एफडीआई आने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हो जाएगी और खेत से स्टोर तक उत्पादों के पहुंचने में आने वाली लागत भी कम हो जाएगी तथा इसका फायदा भी किसानों को मिलेगा। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है कि गन्ना किसान अपने उत्पाद खेतों से चीनी मिलों तक स्वयं ही पहुंचाते हैं और इसमें बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं होती। यदि सरकार समर्थन मूल्य के रूप में उन्हें उनके उत्पादों के लिए सुरक्षा न दे तो बाजार की शक्तियां उनके शोषण में पीछे नहीं रहतीं। सवाल यह भी है कि यदि सरकार की दलील सही है तो बड़े रिटेल चेन वाले देश अपने किसानों को सब्सिडी क्यों दे रहे हैं ? यूरोप और अमेरिका अपने किसानों को भारी सब्सिडी दे रहे हैं। क्यों रिटेल चेन अकेले ही उनका कल्याण नहीं कर पा रहे हैं? रिटेल में एफडीआई के संदर्भ में यह जो उदाहरण दिया जा रहा है कि चीन को इससे लाभ हुआ है वह भी पूरी तरह सही नहीं है। चीन ने रिटेल में एफडीआई की अनुमति देने के पहले खुद को सस्ते मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के रूप में स्थापित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय रिटेलरों के लिए चीनी उत्पादों की बिक्री करना जरूरी हो गया।
जब केन्द्र में राजग की सरकार थी तब भी पश्चिमी शक्तियों की इस मांग का सामना करना पड़ा था कि रिटेल सेक्टर को विदेशी निवेश के लिए खोला जाए। लेकिन हमने दबाव का सामना किया और यह निर्णय लिया कि खुदरा व्यापार के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश हित में नही है।

यह सुधार नहीं आत्मघात है
खुदरा व्यापार के क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बिना सोच-विचार किए जल्दबाजी में लागू किया गया हैं जबकि वर्तमान यूपीए सरकार ने तमाम आर्थिक सुधारों को लगभग त्याग दिया है। हम न तो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अवधारणा के विरोधी हैं और न ही आर्थिक क्षेत्र में सुधार संबंधी कार्यक्रमों पर अधिक जोर देने के खिलाफ हैं। लेकिन, जिन परिर्वतनों से भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज व्यवस्था पर कुप्रभाव पड़ता है। छोटे व्यापारी, छोटे उद्योग, किसान, युवा, बेरोजगार लोग प्रभावित होते हैं, उन्हें सुधार कतई नहीं कहा जा सकता।

संसद एवं संविधान का अपमान
खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश का 450 से अधिक सांसद विरोध कर रहे हैं। सरकार नें संसद सत्र में विदेशी निवेश के बारे में कोई घोषणा नहीं की थी। सरकार नें सभी मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक दलों की सहमति नहीं होने तक विदेशी निवेश की अनुमति नहीं देने का संसद में आश्वासन दिया था। सत्र समाप्ति के तुरंत बाद संसद की बहुमत वाली भावना के विपरीत विदेशी निवेश का निर्णय संसद और संविधान का अपमान है।
अतः भाजपा की मांग है कि कि वर्तमान केन्द्र सरकार खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के निर्णय को तत्काल वापस ले।

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