समर्पण सिखाती है गीता- आचार्य रामदयालजी महाराज

पंचदिवसीय गीता जयंती महोत्सव का हुआ समापन
img-20161229-wa0023मन्दसौर। गीता अकमर्ण्य, आलसी, प्रमादी होकर बैठने की नहीं बल्कि आलस्य त्याग कर निष्काम होकर निष्ठापूर्वक कर्तव्य कर्म करते हुए समाज एवं राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर सेवा करने का संदेश देती है। भगवान श्री कृष्ण ने समाज तथा राष्ट्र की भलाई के लिये ही युद्ध से उपराम होने वाले अर्जुन को युद्ध में आरूढ़ करने के लिये जो गीता का उपदेश दिया वह हमारे लिये भी उतना ही आवश्यक है जितना उस समय अर्जुन के लिये था।
धर्मधाम गीता भवन में पंच दिवसीय गीता ज्ञान प्रवचन माला के समापन पर 28 दिसम्बर को उक्त उद्गार प्रकट करते हुए रामस्नेही शाहपुराधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरू पू. श्री रामदयालजी महाराज ने कहे। आपने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के 2 विशिष्ट पात्र जिन्हें उन्होंने समयानुकुल ज्ञान प्रदान किया वे है गीता के अर्जुन व श्रीमद् भागवत के उद्धव, कर्तव्यपथ से विमुख अर्जुन को कर्मयोग और उद्धव को ज्ञानी होने के अहंकार से छुड़ाकर गोपीकाओं के माध्यम से भक्ति मार्ग का उपदेश दिया।
गीता दिग्भ्रमित-भटके हुए को सही दिशा-सही मार्ग प्रदान करती है। चार वेद-शास्त्र-18 पुराण-उपनिषद आदि समस्त ग्रंथों का अन्तिम सार केवल 2 अक्षर का राम नाम-भावन्नाम है।
आग पर रखी बरलोई में खिचड़ी तभी तक खद-बद(आवाज) करती रहती है जब तक वह पक नहीं जाती। परिपक्व होने पर जैसे खिचड़ी आवाज करना बन्द कर देती है उसी प्रकार संसार रूपी अनेक कामनाओं की खिचड़ी भी तभी तक मन में उबलती रहती है जब तक भगवान की भक्ति-रामनाम में हमारा मन परिपक्व नहीं हो जाता।
सन्तों और श्रोताओं का परस्पर संयोग आनन्द का श्रृजन करता है।
राम नाम की महिमा का बखान स्वयं पराम भी करना चाहे तो वे भी नहीं कर सकते।
वर्तमान राष्ट्रीय संदर्भ में आचार्य श्री ने कहा कि राष्ट्र में जो कुछ घटित हो रहा है वह सब हमारा मनमोहन भगवान श्री कृष्ण ही कर रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार नहीं हुई हैं लाखों वर्ष पहले हनुमानजी ने भारत से बाहर जाकर लंका में जाकर की थी।
आचार्य श्री ने संस्था सदस्यों (न्यासीगणों) को सचेत करते हुए कहा कि ट्रस्टीयों को केवल शो पीस (दिखावटी) नहीं होकर कर्तव्य परायणता का परिचय देना चाहिए। आपने कहा कि गीता कर्म करने का संदेश देती है और यदि कर्म नहीं करेंगे तो फिर गीता जयन्ती मनाने का क्या महत्व है।
पू. महन्त श्री देवकीनन्दनदासजी- वेदान्ती अपने आप को जीव से उपर ब्रह्ममान कर ‘‘अहं ब्रह्मास्मिी’’ मैं ब्रह्म हूॅ- रटता रहता है परन्तु एक मच्छर का हमला भी सहन नही कर पाता। ऐसे ब्रह्म से जीव बने रहना ही श्रेष्ठ है। ब्रह्म बनकर उदासीन रहने में नहीं जीव बनकर अपने को भगवान का दास बनाकर उनकी प्रेम भक्ति रस पान में जो सुख है वह शुष्क वेदान्त में कहा।
शबरी ने कोई वेद नहीं पढ़े-यज्ञ -जप-तप कुछ नहीं किया। केवल गुरू के उपदेश और वचन पर विश्वास करके प्रतिदिन भगवान के आने की बाट जोहती रहती और बुहारी से भगवान के आने के रास्ते को बुहारती (स्वच्छ) करती रहती। दृढ़ निष्ठा, विश्वास और सच्चा प्रेम होने से अन्त में भगवान को उसकी कुटिया पर आना ही पड़ा बल्कि प्रेम से दिये झूंठे बेर बड़े चख से खाये।
रबर स्टॉम्प पर अक्षर उल्टे होते है परन्तु कागज पर लगाने से सीधे हो जाते है उसी प्रकार चाहे भाग्य की रेखाएं उल्टी क्यों ना हो परन्तु सन्तों के आशीर्वाद से बदल जाती है।
वेद-पुराण, उपनिषद श्रुती आदि ग्रंथों का स्वाध्याय हम कर नहीं पाते इसलिये व्यासजी ने सभी का सार महाभारत में लिख दिया इसलिये महाभारत को पांचवा वेद कहा गया है।
वेदों का प्राण राम नाम है यदि वेदों से रामनाम को अलग कर दिया जाये तो वेद निस्तेज-निष्प्राण हो जावेंगे।
पूज्य स्वामिनी परमानन्ददेवी सरस्वतीजी ने कहा कि गीता ज्ञान भक्ति और कर्मयोग तीनों का त्रिवेणी संगम है। गीता मात्र भारत अथवा किसी एक राष्ट्र सम्प्रदाय विशेष का ग्रंथ नहीं होकर वैश्वीक ग्रंथ है।
पूज्या ज्योतिषज्ञ सुश्री लाड़कुंवर भाणेज ने कहा कि विचारों का जीवन में बड़ा महत्व है। अच्छे विचारों से जीवन कृतार्थ धन्य हो जाता है। अच्छे विचारवान व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है। एक क्षण का बुरा विचार जीवन को बर्बाद कर देता हैै। इसलिये प्रतिक्षण सावधान रहकर मन में गलत विचारों को कतई स्थान नहीं देना चाहिए।
निःशुल्क नैत्र शिविर आयोजक श्री शिव फरक्या का पूज्य आचार्य श्री ने बहुमान कर आशीर्वाद प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि नैत्र शिविर में 125 महिला-पुरूषों का नैत्र परीक्षण होकर 65 के ऑपरेशन करवाये गये। शिविर पर्यन्त भोजन सुभाष अग्रवाल का भी सम्मान किया गया।
इस दौरान गीता भवन अध्यक्ष प.पू. श्री रामनिवासजी महाराज सहित अन्य संतों का भी सानिध्य व आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
समापन पर पूज्य आचार्य श्री ने पू. शास्त्री भागवताचार्य श्री भीमाशंकरजी के साथ सड़क हादसे में असामयिक मृत्यु होने पर धर्मसेवी श्री दिनेश सेठिया, म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सुन्दरलाल पटवा के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त कर मृतात्माओं की शान्ति तथा परिजनों के धैर्य के लिये 2 मिनिट राम नाम का जप कर श्रोताओं के साथ हार्दिक श्रद्धांजली प्रदान की।
संतों से आर्शीवाद ग्रहण किया- धर्मधाम गीता भवन संरक्षक नरेन्द्र नाहटा, निर्माण समिति अध्यक्ष मोहनलाल मरच्या, स्वागताध्यक्ष डॉ. घनश्याम बटवाल, गीता भवन उपाध्यक्ष जगदीश चौधरी, ओम चौधरी, शिव फरक्या, सत्यनारायण पलोड़, नरेन्द्र धनोतिया, अशोक खिची, मुकेश पोरवाल नीमच, गोविन्द पोरवाल, नरेन्द्र उदिया, रमेशचन्द्र चन्द्रेे, सूरजमल मेड़तवाल, पुरूषोत्तम बड़सोलिया, लेखराज पुरस्वानी, रामदयाल मास्टर सा., लक्ष्मीनारायण कोठारी, डॉ. दिनेश तिवारी, सुमन अकोलकर, सुमित्रा चौधरी, कलादेवी पोरवाल, अनुपमा बैरागी, निर्मला माली, विमला वेद, गीताबाई कौशल्या शर्मा, तारा पुरोहित, रक्षा जैन, बिन्दु चन्द्रे, पुष्पा पाटीदार, विद्या उपाध्याय, लीलाबाई पाटीदार, लता गर्ग, राजेन्द्र तिवारी, राव विजयसिंह, रजनीश पुरोहित, आदित्य मारोठिया, कैलाश मारोठिया, जगदीश पुजारी आदि।
बंशीलाल टांक
मो.नं.ः 7697872264

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