उत्तरप्रदेश में ‘मेरी गंगा मेरी डॉल्फिन’

उत्तर प्रदेश में गंगा और उसकी सहायक नदियों में डॉल्फिन के सर्वेक्षण और उसके महत्त्व के बारे में लोगों को जागरूक करने का अभियान ‘मेरी गंगा मेरी डॉल्फिन’ शुक्रवार से शुरू हो गया.

डॉल्फिन को स्थानीय भाषा में सूंस भी कहा जाता है जिसे दिखाई नहीं देता है.

राज्य के परिवहन मंत्री राजा अरि दमन सिंह ने वन विभाग के मुख्यालय अरण्य भवन में प्रतीकात्मक रूप से झंडी दिखाकर अभियान का शुभारंभ किया जिसके बाद विभिन्न जिलों में अठारह टीमें नदियों में सर्वेक्षण के लिए निकल पड़ीं.

यह टीमें सात अक्टूबर को वापस आएँगी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उस दिन उत्तर प्रदेश में डॉल्फिन की संख्या की घोषणा करेंगी.

लुप्तप्राय घोषित डॉल्फिन भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है. यह गंगा और उसकी सहायक नदियों के अलावा ब्रह्मपुत्र में पाया जाता है.

गहरा और साफ़ पानी उसके जीवन के मुख्य आधार हैं. जैसे जंगल के लिए टाइगर वैसे ही नदी के लिए डॉल्फिन महत्वपूर्ण मानी जाती है.

उत्तर प्रदेश के मुख्य वन्य जीव संरक्षक रूपक डे का कहते हैं, ”डॉल्फिन की आबादी से नदी की सेहत का भी पता चलता है, वैसे ही जैसे शेर की आबादी से जंगल की सेहत का.”

रूपक डे उदाहरण देते हैं कि यमुना में दिल्ली से इटावा तक डॉल्फिन नही बची हैं क्योंकि नदी जैविक दृष्टि से मर चुकी है. इटावा के आगे पन्च नदा का पानी मिलने के बाद यमुना की सेहत सुधरते ही फिर डॉल्फिन मिलने लग जाती है.

घटता जलस्तर और प्रदूषित जल

उत्तर प्रदेश वन विभाग यह अभियान विश्व प्रकृति निधि और अठारह अन्य स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से कर रहा है और इसके लिए धन की व्यवस्था एक अंतरराष्ट्रीय बैंक एचएसबीसी कर रहा है.

वर्ष 2005 में हुई पिछली गिनती में गंगा और ब्रह्मपुत्र दोनों में मिलाकर 800 से कम डॉल्फिन बची थीं. उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या लगभग छह सौ आंकी गयी थी.

बनारस के घाटों पर पहले बड़ी तादाद में डॉल्फिन दिखायी देती थीं . लेकिन अब बड़े गौर से देखने पर इक्का-दुक्का डॉल्फिन ही दिखती हैं.

इनकी गिरती आबादी को देखते हुए वर्ष 2010 में भारत सरकार ने डॉल्फिन को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत लुप्तप्राय मानते हुए राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया था.

विश्व प्रकृति निधि के प्रतिनिधि संदीप बेहेरा ने बताया, ”नदियों में जलस्तर का कम होना, प्रदूषण और शिकार के नये तरीके डॉल्फिन की आबादी कम होने के मुख्य कारण हैं.”

सर्वेक्षण का तरीका

उत्तर प्रदेश में जिन नदियों में सर्वेक्षण का कम होना है उनमे सबसे प्रमुख है गंगा. विभिन्न टीमें गंगा में बिजनौर से बनारस तक सर्वेक्षण करेंगी.

यमुना में मध्य प्रदेश के राज घाट से इलाहाबाद तक, सरयू-घाघरा-राप्ती में गिरिजापुरी बैराज से दोहरीघाट तक सर्वेक्षण होगा. नेपाल से आने वाली गेरुआ नदी में भी सर्वेक्षण का काम होगा.

सर्वेक्षण के साथ-साथ नदियों के किनारे जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा. लेकिन डॉल्फिन के संरक्षण के लिए सबसे ज्यादा जरूरी कदम है नदियों में पर्याप्त जल उपलब्ध कराना और प्रदूषण की रोकथाम, जिसमे सबसे बड़ी भूमिका सरकार की है.

विश्व प्रकृति निधि के प्रतिनिधि संदीप बेहेरा ने बताया कि नदी में डॉल्फिन की गिनती के लिए सर्वे टीम के लोग नाव से दस किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चलते हैं, जबकि डॉल्फिन की औसत गति चार से पांच किलोमीटर प्रति घंटा होती है.

उन्होंने बताया कि बोट में बैठे चार लोग एक बार में नदी में करीब सौ मीटर की रेंज में दिखायी देने वाली डॉल्फिन गिनते हैं. फिर इनके औसत के आधार पर अनुमानित संख्या लिखी जाती है.

उनका कहना है कि पिछला सर्वे टुकड़ों टुकड़ों में अलग-अलग समय पर हुआ था, जबकि इस बार यह एक साथ और ज्यादा व्यवस्थित तरीके से होगा.

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