मार्फत प्रधानमंत्री कार्यालय, नई दिल्ली 110011
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी आप बड़े गर्व से कहते रहे हैं कि आप बचपन में अपने पूज्य पिताश्री की चाय की दुकान पर टी-वेण्डर रहे हैं। कल्पना कीजिए कि आप अपने पिताश्री के स्थान पर अन्य किसी की चाय की दुकान में नौकरी करते होते और उस दुकानदार की शर्त होती कि आपको महीने की तनख्वाह तब मिलेगी जब आप महीने भर में विभिन्न कार्यालयों आदि में उधार सप्लाय की गई चाय की उधारी वसूल कर लाएंगे। जाहिर है कि आप उधारी वसूलने अपना बिल लेकर कार्यालयों में गए होते और वहां आपसे कहा जाता कि नकद अथवा चेक द्वारा भुगतान के स्थान पर ई-पेमेन्ट किया जाएगा और ऐसे पेमेन्ट के लिए आपसे आपका आधार नम्बर, टिन नम्बर, पेन नम्बर, जीएसटी नम्बर, बैंक खाता नम्बर आदि दस्तावेजी सबूत के साथ प्रस्तुत करने को कहा जाता तो क्या होता ? यही होता कि अनेक नम्बरों के ऐसे मकड़जाल में फंसाने वाली 10 नम्बरी सरकार को कोस रहे होते, क्योंकि आपको वेतन के लाले पड़ने के साथ दुकानदार की दुकान ठप हो गई होती। ऐसे ‘‘नम्बरी‘‘ दस्तावेज कई महीनों में बनते और उन्हें बनवाने में आपके दुकानदार तथा आपको तमाम काम-काज छोड़कर संबंधित कार्यालयों के चक्कर लगाने मजबूर होना पड़ता। नतीजे में चाय की दुकान और आपकी नौकरी चोपट हो गई होती।
आपकी जो हालत हो गई होती, कमोवेष वैसी ही हालत इन दिनों उन अखबारी हॉकरों की भी है, जो घरों, दुकानों के साथ विभिन्न कार्यालयों, वाचनालयों आदि में अखबार सप्लाय करते हैं। ये कार्यालय, वाचनालय भुगतान करने इन हॉकरों से ऊपर लिखे नम्बरी दस्तावेज माँग रहे हैं। कहा जा रहा है कि ई-पेमेन्ट अनिवार्य है और बैंक अकाउण्ट नम्बर पर कम्प्यूटर तब तक पेमेन्ट नहीं भेजता है, जब तक उस पर नम्बरी खानापूरी नहीं होती। इनमें भी पेन नम्बर अनिवार्य है।
इन नम्बरी औपचारिकताओं की पूर्ति लम्बे अरसे में भी नहीं हो पा रही है और हॉकरों को खाने के भी लाले पड़ रहे हैं। थोड़ी सी तनख्वाह अथवा कमीषन राषि भी इनके लिए बड़ी भारी मुसीबत बन गई है। बड़े शहरों में जहां हॉकरों को एजेन्टो से वेतन मिलता है, वहां सारी मुसीबतें एजेन्टों को झेलनी पड़ रही है, और वे भी अपने हॉकरों को उधारी वसूली के अभाव में समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैं। छोटे नगरों, कस्बों आदि में तो आमतौर पर हॉकर ही एजेन्ट भी होते हैं। उधारी की वसूली हो या नहीं हो, उन्हें अखबारी बण्डलों का पेमेन्ट तो समय पर अखबार के मुख्यालय भिजवाना ही पड़ता है। उन्हें तो कमीषन ही मिलता है। अखबार का मासिक शुल्क कितना अत्यल्प होता है, यह बताने की आवष्यकता नहीं है। लेकिन हॉकर को तो इसमें से भी कुछ कमीषन ही मिल पाता है। भुगतान में देरी तो बण्डलों की सप्लाय बंद हो जाती है। चारों तरफ से बस संकट ही संकट। परिवार के पालन और रोजी-रोटी पर भारी मुसीबत। ऐसे में यदि कुछ हॉकर कर सलाहकार वकीलों को मोटी फीस देकर उपर्युक्त नम्बर हांसिल कर लेते हैं तो रूकी हुई उधारी की वसूली की उम्मीद बंधती है। वहीं, ई-पेमेन्ट कब तक होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। नम्बर प्राप्त करने से ही संकट समाप्त नहीं होता है। इसके बाद उन नम्बरों की रिटर्न भरनी है। अति कम पढ़े लिखे, यहां तक कि निरक्षर हॉकर ये रिटर्न वकीलों की सहायता से ही भर पाते हैं और कमाई का एक बड़ा हिस्सा वकीलों की सेवा में लगातार लगाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्रीजी, एक अखबारी हॉकर के स्थान पर खुद को देखिए और इस ई-पेमेन्ट की मुसीबतों को समझकर हॉकरों जैसे कम आय वाले गरीब लोगों को भीषण संकट से बचाइए।
वे गरीब भी ऐसे ही संकटग्रस्त हैं, जिन्हें विभिन्न कार्यालयों से आर्थिक सहायता, सामाजिक सुरक्षा पेंषन आदि की राषि प्राप्त होती है। उन्हें यह राषि प्राप्त नहीं हो पा रही है। इनके लिए तो आपकी सरकार भीषण अभिषाप बन गई है। अतएव, ई-पेमेन्ट के स्थान पर पूर्ववत् नकद अथवा चेक द्वारा शासकीय भुगतान की प्रणाली लागू करने से आपकी सरकार तथा पार्टी की सेहत सुधारेगी, जो कि इस समय ठीक नहीं है।
प्रधानमंत्रीजी आपकी सरकार ने हालही जीएसटी में कुछ राहत की घोषणा की है। इस राहत में केवल कुछ वस्तुओं के टेक्स कम किए गए हैं, ‘‘नम्बरी‘‘ मुसीबत से कोई छुटकारा नहीं मिला है। जहां तक दी गई राहत का प्रष्न है, आपकी सरकार द्वारा मजबूरी में ही यह राहत दी गई प्रतीत होती है, क्योंकि आपकी सरकार और पार्टी को समझ में आ गया था कि वर्ष 2018 और 2019 में होने वाले विधानसभाओं तथा लोकसभा के चुनावों में भाजपा की पराजय के आसार बेहद तेजी से बनते जा रहे हैं।
आपने इस राहत को 15 दिन पूर्व दीपावली निरूपित किया है। यह आपके लिए ‘‘दिल बहलाने को गालिब खयाल अच्छा है‘‘ ही है, क्योंकि इस राहत से आम लोगों का विषेष हित नहीं हुआ है। ना केवल सोषल मीडिया, बल्कि आपके तथा आपकी पार्टी के समर्थक न्यूज चैनलों तक ने इस राहत को चुनावी मजबूरी और सरकारी छलावा करार दिया है। इस राहत से भाजपा की चुनावी सेहत कतई सुधरने वाली नहीं है।
मैं मध्यप्रदेष के विदिषा जिले का साहित्य तथा पत्रकारिता से निकट से जुड़ा एक पेंषनर हूं। मध्यप्रदेष के वित्त मंत्रालय द्वारा प्रदेष के पेंषनरों के साथ घोर अन्याय किया गया है। पेंषन के 32 माह के एरीयर की राषि सरकार गजट नोटिफिकेषन के बाद भी डकार गई है। पेंषनरों को 7वें वेतन आयोग की सिफारिषों के अनुरूप अब तक कोई लाभ नहीं दिया गया है। वयोवृद्ध पेंषनर मध्यप्रदेष सरकार से अत्याधिक त्रस्त है। बड़ी संख्या में पेंषनरों ने इस संबंध में पीएमओ के दरवाजे भी खटखटाए हैं, पर मध्यप्रदेष के वित्त मंत्रालय ने फिर भी अब तक राहत नहीं दी है। ना केवल पेंषनर, बल्कि यहां के किसान और विभिन्न वर्गों के गरीब लोग भी अत्याधिक पीड़ित-प्रताड़ित तथा आक्रोषित हैं। मध्यप्रदेष में भी आगामी वर्ष विधानसभा के चुनाव है और यहां भी नोटबंदी, जीएसटी से प्रायः सभी बेहद परेषान होने के साथ व्यापम जैसे घोटालों से भी भारी कुपित हैं। मध्यप्रदेष के किसान और बुजुर्ग पेंषनर तो भाजपा को किसी भी चुनाव में वोट नहीं देने की प्रतिज्ञाएं कर रहे हैं। यह अलग बात है कि आपकी पार्टी सत्ताबल तथा साम-दाम-दण्ड-भेद से येन-केन प्रकारेण कुछ तिकड़म लगाकर किसी तरह चुनाव चाहे जीत जाए, पर जनता में उमड़-घुमड़ रहे रोष-आक्रोष से आपकी सरकार और पार्टी कैसे बचेगी ? याद रखिए ‘‘जासुराज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवष्य नर्क अधिकारी‘‘।
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अखबारी हॉकर की ओर से प्रस्तुतकर्ता
(जगदीष प्रसाद शर्मा)
श्री जगतधात्री माता मंदिर के सामने,
झांकी वाली गली, निकासा,
विदिषा (म.प्र.) 464-001