इंदिरा इज़ इंडिया – फिर से?

इंदिरा गाँधी की 28 वीं पुण्यतिथि के दिन दिल्ली से छपने वाले तमाम अखबार उनकी तस्वीरों के बड़े बड़े विज्ञापनों से भरे हुए हैं.

पर दिल्ली सरकार की ओर से छपवाया गया एक विज्ञापन सबसे अलग है.

इस विज्ञापन में तो इमरजंसी के दौरान बदनाम हुए एक नारे को फिर से उछाल दिया गया है.

काँग्रेसी नेता देवकांत बरुआ ने इमरजंसी में ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ का नारा दिया था, जिसे चाटुकारिता की इंतिहा माना गया था.

दिल्ली सरकार की ओर से छपवाए गए विज्ञापन में इंदिरा लिख कर आर को काला कर दिया गया है जिससे ये शब्द इंडिया बन जाता है.

इंदिरा गाँधी की हत्या 31 अक्तूबर 1984 को दिल्ली में उनके 1, सफ़दरजंग रोड वाले निवास पर उन्हीं के सुरक्षा गार्डों ने कर दी थी.

इसी पुण्यतिथि को मनाने के लिए भारत सरकार के तमाम मंत्रालयों ने अपने बजट से पैसा निकाल कर अखबारों में आधे आधे पन्ने के महँगे विज्ञापन छपवाए हैं.

सिख विरोधी दंगे

इंदिगा गाँधी की हत्या के बाद दिल्ली शहर सहित देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे भड़क उठे.

काँग्रेस के कई नेताओं पर दंगाइयों का नेतृत्व करने के आरोप हैं और तत्कालीन केंद्र सरकार पर दंगाइयों को पुलिस के ज़रिए मदद करने का आरोप भी लगा.

दिवंगत नेताओं के जन्मदिन और पुण्यतिथियों के दिन अखबारों में विज्ञापन देने के मुद्दे पर पहले भी विवाद हो चुके हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के जन्मदिन यानी 20 अगस्त को भी इसी तरह के विज्ञापनों की बाढ़ आ गई थी.

तब प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने सत्ताधारी कांग्रेस को ‘सीमित ख़र्च’ या समझदारी के साथ ख़र्च की बात याद दिलाई है.

पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा था, “अगर समझदारी से ख़र्च करने की बात की जाती है तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देना एक बेहतर तरीक़े से किया जा सकता था. सब मिलकर श्रद्धांजलिस्वरूप एक विज्ञापन देते न कि सभी अख़बारों के सभी पन्नों पर सार्वजनिक क्षेत्र के सभी उपक्रम विज्ञापनों की बाढ़ के साथ श्रद्धांजलि दे रहे हैं.”

इस बार इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि पर मंत्रालयों और विभागों के साथ साथ काँग्रेस शासन वाले राज्यों की ओर से भी विज्ञापन जारी किए गए हैं.

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