जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव खारिज

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष की ओर से पेश किए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया। विपक्ष ने उपराष्ट्रपति के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। लेकिन नायडू ने प्रस्ताव खारिज करने की 10 वजहें बताई हैं।

1. ऐसा प्रस्ताव लाने के लिए संसदीय परंपरा है। राज्यसभा के सदस्यों की हैंडबुक के पैरा 2.2 में इसका जिक्र किया गया है। यह पैरा ऐसे नोटिस को सार्वजनिक करने से रोकता है। यह नोटिस सौंपने के तुरंत बाद 20 अप्रैल को सदस्यों ने आरोपों को सार्वजनिक कर दिया। यह संसदीय गरिमा के खिलाफ है। ये अनुचित है और सीजेआई के पद की अहमियत कम करने वाला कदम है। मीडिया में बयानबाजी से माहौल खराब होता है।

2. आरोपों के पक्ष में ठोस साक्ष्य या तथ्य की जगह, हो सकता है, ऐसा लगता है, ऐसी कल्पना है जैसे शब्दों का प्रयोग।

3. सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने अपने आदेश में साफ कहा है की सीजेआई ही ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ हैं। साथ ही कहा था कि सीजेआई तय कर सकते हैं कि किस मुकदमे को किस पीठ के पास भेजा जा सकता है। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ठेस पहुंचती है।

4. संविधान विशेषज्ञ, राज्यसभा-लोकसभा के पूर्व महासचिवों, लॉ अधिकारियों, लॉ कमीशन के सदस्य, प्रसिद्घ न्यायविदों की भी नोटिस खारिज करने की राय।

5. बारीकी से सोचे बगैर महाभियोग के प्रस्ताव से न्यायपालिका में भरोसा कम होता है।

6. मेरे सामने पेश की गई जानकारियां विश्वसनीय और सत्यापन योग्य नहीं हैं जिससे ‘दुर्व्यवहार’ या ‘अक्षमता’ का संकेत मिलता हो, ऐसे में कम अनुभव वाले हल्के बयान स्वीकार करना एक अनुचित और गैर जिम्मेदाराना कार्य होगा।

7. संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों से बातचीत कर उन पर व्यापक रूप से भरोसा किया गया है, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय के धारक के खिलाफ कोई सबूत नहीं हो सकते। सीजेआई की अक्षमता या पद के दुरुपयोग के आरोप को साबित करने के लिए ठोस जानकारी होनी चाहिए।

8. किसी के विचारों के आधार पर हम शासन के किसी भी स्तंभ को कमजोर नहीं होने दे सकते।

9. एक सावधानीपूर्वक विश्लेषण और सोच विचार के बादे मुझे लगता है कि यह कोई ठोस सत्यापन योग्य आरोप नहीं है। सांसदों ने जो आरोप लगाए हैं उनमें कोई ठोस सबूत और बयान नहीं हैं।

10. प्रस्ताव के सभी पहलुओं के व्यक्तिगत अध्ययन के बाद मेरी भी यही राय है कि सीजेआई दुर्व्यवहार के दोषी नहीं करार दिए जा सकते। आरोप न्यायपालिका की अंदरूनी कार्यप्रणाली से जुड़े हैं। ऐसे में इन पर आगे जांच की जरूरत नहीं है।

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