पिछले 5 वर्षों में किसानों की आय में हुई महज 59 रूपए की वृद्धि- बीपीपी अध्यक्ष नरेश यादव

— देश के 76 फीसदी किसान किसी भी प्रकार के बीमा से वंछित….
— राज्य स्तर पर किसानों की आय में बड़ी असमानता
— देशभर में करीब 10.07 करोड़ परिवार सिर्फ कृषि पर निर्भर
— 52.5 फीसदी किसान कर्जे में डूबे

यदि आप विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार भारत का असली चेहरा देखना चाहते हैं, तो यहां के किसानों की आर्थिक स्थिति पर गौर करिए, आपके सामने सारी कहानी साफ हो जाएगी. अगस्त 2018 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने ‘नफीस’ शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट जारी की थी. ‘एनएएफआईएस’ (नाबार्ड अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17) के मुताबिक साल 2017 में देश के एक किसान परिवार की मासिक आय 8 हजार 931 रूपए थी. इनमें से एक परिवार की औसत सदस्य संख्या 4.9 बताई गई हैं. इस हिसाब से प्रति सदस्य आय 61 रूपए प्रतिदिन होती है. श्नफीसश् में राज्यों के हिसाब से भी किसानों की आय में गंभीर असमानता देखने को मिली है. इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में किसानों की सबसे कम मासिक आय, मध्यप्रदेश (7,919), बिहार (7,175), आंध्र प्रदेश (6,920), झारखंड (6,991), ओडिशा (7,731) और उत्तर प्रदेश (6,668) राज्यों की है. वहीं पंजाब और हरियाणा के किसान परिवारों की मासिक आय क्रमशः 23 हजार 133 रूपए व 18 हजार 496 रुपए दर्ज की गई है. पंजाब-हरियाणा को छोड़ दें तो उपरोक्त आंकड़े किसी वन टाइम पासवर्ड की तरह नजर आते है. जबकि यह असमानता केंद्र सरकार के उस वादे पर भी सवालिया निशान लगाती है जो 2022 तक किसानों की आय दो गुनी करने की बात करती है. सरकार को तो सबसे पहले इस बात का जवाब देना चाहिए कि वह आखिर किस योजना के तहत पंजाब और यूपी के किसानों की आय के बीच बने साढ़े तीन गुना के अंतर को कम करने वाली है? क्योंकि जिस 2022 का लक्ष्य रखा गया है तब तक तो इस असमानता में और भी बड़ा अंतर देखने को मिल सकता है.

साल 2012-13 में नेशनल सैंपल सर्वे ओर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उस वक्त तक भारत में एक किसान की औसत मासिक आय 6 हजार 426 रूपए थी. जिसमे 48 फीसदी हिस्सा यानी लगभग 3,081 रूपए की कमाई फसल से होती थी. वहीं 2016-17 में जारी हुई नाबार्ड की रिपोर्ट में यह आय 35 प्रतिशत पर आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि अध्यन के साल किसान परिवार की कुल मासिक आय 8 हजार 931 रूपए थी, जिसमे केवल 3,140 रूपए (35 फीसदी) की आय फसल से हुई. इस लिहाज से पिछले पांच सालों में किसानों की आय में केवल 59 रूपए की वृद्धि ही दर्ज की गई. वहीं आंकड़े यह भी बताते है कि पिछले पांच सालों में किसान की मासिक आय में खेती, उत्पादन और पशुधन से होने वाली आय का हिस्सा अनुपातिक रूप से बहुत कम हुआ है.

नाबार्ड की रिपोर्ट इस बात का खुलासा भी करती है कि देशभर में करीब 10.07 करोड़ परिवार सिर्फ कृषि पर ही निर्भर करते हैं. जिसमे 52.5 फीसदी किसान कर्जे में डूबे हुए है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के एक किसान के पास औसतन 1.1 हेक्टेयर जमीन है, जिसमे से 60 फीसदी जमीन सिंचित नहीं होती है. ऐसे में हर कर्जदार किसान के सिर पर 1.046 लाख रूपए का कर्ज बना हुआ है. नाबार्ड की रिपोर्ट अन्य कई मुख्य बिंदुओं को भी रेखांकित करती है. रिपोर्ट के अनुसार, देश में 76 फीसदी किसान ऐसे हैं जिनके पास किसी भी प्रकार का कोई भी बीमा नही है. इसके अलावा कुल 83 प्रतिशत किसानों के पास जीवन बीमा नही है. वहीं महज 95 फीसदी किसान बगैर किसी स्वास्थ बीमा के जी रहे हैं. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि देश के 66.8 फीसदी किसानों का कहना है कि उनके पास इतना पैसा ही नहीं है कि वह बीमा करा सके. जबकि 32.3 फीसदी किसान अनियमित आय होने की वजह से बीमा नहीं करा पाने की बात कहते है. ऐसे में इन आंकड़ों की तरफ हमारे प्रधानसेवक और उनके नीतिकारों को ध्यान देने की जरूरत है, ताकि खोखले वादों को धरातल पर लाने में सहायता मिल सके और आंदोलन व आत्महत्या करने पर मजबूर अन्नदाताओं को कर्ज के बोझ और अनियमित आय से छुटकारा दिलाया जा सक

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