चमकी बुखार से बिहार में हाहाकार

बिहार में चमकी बुखार से हुई मौतों का आंकड़ा 150 से उपर पहुंच गया है, जबकि 800 से ज़्यादा बीमार बच्चों को अस्पतालों में भरती कराया गया हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन, अश्विनी चैबे और बिहार सरकार के मंत्री मंगल पांडेय अस्पतालों का दौराकर रहे हैं।बैठकों का दौर जारी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बयान देकर इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। ऐसे में सवाल उठता है कि मासूमों को मृत्युदंड देने वाला कौन है? क्या सिर्फ एक मच्छर इन मौतों का जिम्मेदार है या फिर सरकार और प्रशासन?

अस्पताल से बच्चों की लाशें निकल रही हैं और जो बिस्तर पर पड़े हैं वो भी एक-एक सांस के लिए जूझ रहे हैं।जहाँ एक तरफ बच्चों के परिजन परेशान हैं वहीं दूसरी ओर डॉक्टर मरीज़ों की बढ़ती संख्या के बावजूद जीजान से अपने काम में लगे हैं। मगर, हालात हैं कि काब में आही नहीं रहे और बद से बदतर होते जा रहे हैं।बिहार में अब तक 150 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि सैकड़ों की तादाद में ऐसे हैं जो आईसीयू के बंद कमरों में जिंदगी की जंग लड़ रह हैं।

चमकी बुखार से बिहार में जो हाहाकार मचा है उस का सबसे ज़्यादा शोर सुनाई दे रहा है चार जिलों में।न्यूज़18 इंडिया की एक खास रिपोर्ट के मुताबिक एन्सेफलाइटिस से बिहार का मुज्फ्फरपुर जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है।इसके बाद सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी और वैशाली जिलों मेंभी एन्सेफलाइटिस ने कोहराम मचा रखा है।

मंत्रियों की गंभीरता भी मासूमों को मौत से नहीं बचा पा रही।इस जानलेवा बीमारी की चपेट में बच्चे लगातार आर हे हैं। मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती जार ही है। नए मरीजों का भर्ती होना भी जारी है।लोगों का आरोप है कि उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जो बच्चा इलाज के लिए लाया जा रहा है, वो जिंदा घर वापस नहीं लौट रहा।

बताया जा रहा है कि गर्मी के मौसम में बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाके में गरीब परिवार के बच्चे जो पहले से कुपोषण का शिकार होते हैं व रातका खाना नहीं खाते और सुबह का नाश्ता करने की बजाए खाली पेट लीची खा लेतेहैं। इससे भी शरीर का ब्लड शुगर लेवल अचानक बहुत ज्यादा लो हो जाता है और बीमारी का खतरा रहता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने लोगों को सलाह दी है कि वो बच्चों को खाली पेट लीची बिलकुल न खिलाएं।

ऐसे में सवाल ये कि जिस चमकी बुखार ने बिहार में मौत का तांडव मचा रखा है, वो चमकी बुखार क्या है? कैसे ये मस्तिष्क ज्वर मासूमों पहले अस्पताल पहुंचाता है और फिर धीरे-धीरे उनकी सांसे थम जाती हैं।दरअसल, जापानी बुखार यानि के एंसेफलाइटिस का वायरस शरीर के संपर्क म आते ही सबस पहले सीधे दिमाग पर असर करता है। दिमाग में इस वायरस के पहुंचते ही ये रोगी के सोचने, समझने, देखने और सुनने की क्षमता को प्रभावित कर देता है। इस वायरस में ज्यादातर 1 से 14 साल के बच्चे और 65 साल से ज्यादा के लोग ही चपेट में आते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इस बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा साल के तीन महीनों में अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में ही रहता है।

फिलहाल, मासूमों की मौत से सिर्फ एक प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरा हिंदुस्तान सकते में है. वही हिंदुस्तान जो विकास के नए पैमाने गढ़ने में लगाहै।मगर, अपने ही बच्चों को मौत से नहीं बचा पा रहा।

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