वृक्षारोपण या फोटो खैंच अभियान……?

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
इस बार के वृक्षारोपण कार्यक्रम का औपचारिक शुभारम्भ अगस्त क्रान्ति (9 अगस्त) को किया गया। हालांकि पौधरोपण जैसा कार्य जुलाई महीने से ही चल रहा है। अगस्त क्रान्ति क्या है थोड़ा इसके बारे में भी जान लें….. द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बावजूद जब अंग्रेज भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आजादी की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया जिससे ब्रितानिया हुकूमत में दहशत फैल गई। इस आंदोलन की शुरुआत नौ अगस्त 1942 को हुई थी इसीलिए इतिहास में नौ अगस्त के दिन को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है।

वृक्षारोपण कार्यक्रम के अवसर पर हमने जिज्ञासु बनकर हर वर्ग के लोगों से उनका मन्तब्य जानना चाहा इसी क्रम में हमने आरामशीन वाले खान भाई इस बारे में उनकी राय पूछी तो उन्होंने जवाब दिया कि भाई जी पौधरोपण, वृक्षारोपण का लाभ दूसरे को भले न मिले परन्तु दो-चार, दस साल में यदि आज के लगाए गए पौधे हरे-भरे वृक्ष का रूप ले लेंगे तब हमारा धन्धा काफी लाभ में रहेगा। आप जानते ही हैं कि मैं यहाँ के पेड़ कटवों का सरदार हूँ और इस कार्य के एवज में जंगलात महकमा के ओहदेदारों को अच्छी खासी रकम देता हूँ। हरा, भरा वृक्ष आक्सीजन दे या न दे, लकड़ी तो दे ही रहा है, इनको तो लकड़ी से ही मतलब है। जब पूछा गया कि आक्सीजन के बारे में कुछ बताएँ तो उन्होंने स्पष्ट जवाब दिया कि यह क्या होता………? इसे किसी जानकार से पूंछे…..। तखतें, बेंच, कुर्सियाँ, दरवाजे एवं फर्नीचर के बारे में बता सकता हूँ कि उनमें किस तरह की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ। उन्होंने सरकार द्वारा चलाए जा रहे इस वृक्षारोपण अभियान की सफलता के लिए अल्लाह ताला से दुआँ की। वह तो अपने व्यवसाय में लाभ के दृष्टिगत दूरगामी परिणाम सोचकर वृक्षारोपण को काफी महत्व दे रहे थे।

वृक्ष लगाओ……….पौध रोपण करो……….फोटो खैंच कार्यक्रम……….सेल्फी लेना कभी मत भूलो। वृक्षारोपण के क्या लाभ-हानि हैं इस पर मगजमारी क्यों…….? सरकार ने एक लक्ष्य दे दिया है, उसे तो येन-केन-प्रकारेण सरकारी अहलकारों को पूरा ही करना है। फोटो खैंच, खबर छपवा, सेल्फी मार………….बोल दे कुछ भी जो मन में आये। सरकारी मुलाजिमों होशियार यदि जरा भी चूक गए तो शायद पगार रूकने का अंदेशा। रोपण कर, पानी डाल, चेहरे पर स्माइल लाकर फोटो खिंचा, भेज दे मीडिया को, सोशल मीडिया में अपलोड कर दे और भूल जा कि रोपा गया पौधा वृक्ष बन पाएगा कि नहीं……….बस नाम दर्ज हो जाएगा कि अमुक ने बड़ा परिश्रम करके वृक्षारोपण जैसा पुनीत कार्य किया।
मुझे सरकारी मशीनरी की आपाधापी, भागमभाग, रेलमपेल देखकर वह दिन याद आ रहा है जब हमारे देश में आपातकाल (25 जून 1975 से 1977) लगा हुआ था। दो वर्षीय इस अवधि में परिवार नियोजन पर सरकार का ध्यान केन्द्रित था। प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापक/अध्यापिकाएँ नसबन्दी के लिए शिकार ढूंढते थें, क्योंकि जिसको जितना अधिक केस मिलता था वह उतना ही कर्मठ सरकारी कारिन्दा माना जाता था। बहरहाल! इस समय आपातकाल तो नहीं लागू है लेकिन सरकारी अलकारों की भाग-दौड़ से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि उनमें से कोई चूक गया तो खामियाजा भुगत सकता है।
इस समय जज, कलेक्टर, पुलिस कप्तान से लेकर अर्दली, लेखपाल, चौकीदार तक पौधरोपण में जुट गए हैं। कहीं-कहीं सफेदपोशों द्वारा इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। माफ करियेगा गलती से समाजसेवी व जनसेवकों को सफेदपोश कह दिया। आश्चर्य तो इस बात का है कि सभी अपने-अपने तरीके से वृक्षारोपण के फायदे गिना रहे हैं। कोई कहता है कि एक वृक्ष सौ पुत्रों के समान होता है, हो सकता है ऐसा होता हो, पुत्र यदि कंस, दुर्योधन, औरंगजेब सा हो गया हो तो बात दीगर है। लेकिन हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि वृक्ष कभी भी उपरोक्त पुत्रों की तरह नहीं हो सकता। यदि इसकी परवरिश की जाए तो जीवन के लिए सर्वप्रमुख आवश्यक प्राणवायु आक्सीजन तो देगा ही। वृक्ष कभी भी भेदभाव नहीं करता।
आओ वृक्षारोपण महाकुम्भ में डुबकी लगाओ। गलत नहीं कह रहा हूँ। सरकार द्वारा इस कार्य में अकूत पैसा खर्च किया जा रहा है। राम नाम की लूट है, लूट सको तो लूट………..यह क्यों कहूँ कि आप न समझ हैं। हो सकता है कि हमीं अज्ञानी हों। तो क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात………..आप बड़े और हम अज्ञानी छोटे।
एक ठू बहिन जी थीं, शायद थोड़ा-बहुत पढ़ी-लिखी रहीं। लगभग 25 साल पहले वृक्षारोपण कार्यक्रम में उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण के जरिए उपस्थित जिज्ञासु जनों से कहा था कि पेड़ मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु और अन्तिम संस्कार तक काम आता है। यहाँ बहिन जी ने प्राणवायु आक्सीजन का जिक्र ही नहीं किया था।
किसी वी.आई.पी. ने वृक्षारोपण महाकुम्भ की शुरूआत करते हुए कहा कि पौधे लगाने से ज्यादा जरूरी है पौधों की सुरक्षा……….आनन्द आया, खुशी हुई और यह जानकर अच्छा लगा कि वी.आई.पी. को इस बात का इल्म है कि पौधे लगाने से ज्यादा पौधों की सुरक्षा जरूरी होती है, तभी वे जीवित रहकर हमारे काम आ सकेंगे। इसके लिए उन्होंने ट्री गार्ड लगाये जाने और नियमित रूप से पौधों की देखभाल किए जाने पर जोर दिया। शिक्षित सरकारी अहलकारों का यह कहना कि- प्रदूषण से आच्छादित वातावरण को पौधरोपण से ही शुद्ध किया जा सकता है……….अच्छा लगा।
महिलाओं की पौधरोपण करने वाली अदाएँ पसन्द आईं। इस अवसर पर खींची गई सेल्फी में सुगठित बॉडी फिगर वालियों ने पौधों को इस कदर पकड़ रखा था जैसे……….खैर! क्या कहूँ…….क्या न कहूँ………बस इतना जान लो कि मुझे ऐसा लगा जैसे वृक्षारोपण कोई पुनीत एवं अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम न होकर मौज-मस्ती करने वाला कोई वैकेशन सेलीब्रेशन हो…………अच्छा लगता है। पौधा, बिरवा, वृक्ष, पेड़ इन सबसे क्या लेना-देना। पौधरोपण करने वालियों का जीवन्त, खुशनुमा अन्दाज देखकर ही हमारा हार्ट गार्डेन-गार्डेन हो जाता है। छोड़िए………दिल है कि मानता नहीं……….जो समझ में आया लिखकर परोसना शुरू कर दिया।

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी,
वरिष्ठ नागरिक/स्तम्भकार,
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.),
9125977768, 9454908400

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