हौसले का दमन करती वर्दी की गुंडागर्दी

रविवार को राजधानी के राजपथ पर उतरा युवाओं का हुजूम इंसाफ की मांग करने वालों का था। ये हुजूम था उस जनता का जिसने दिल्ली पुलिस की मुस्तैदी को खूब जाना, समझा और महसूस किया है। पुलिस और जनता के बीच हुए इस संघर्ष की एक ठोस वजह है। आपके लिए, आपके साथ, सदैव रहने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस, उस वक्त कहां थी जब देश की राजधानी की सड़कों पर दौड़ती एक बस में छात्रा के साथ गैंगरेप हो रहा था? कहां थे शहर के कोतवाल जो आज लोगों से शांत रहने की अपील कर रहे हैं? कहां थे ये आंसू गैस के गोले दागकर अपनी मुस्तैदी का मेडल लेने वाले?

सरकार के खिलाफ यह गुस्सा देश के उन नौजवानों का है जो हर रोज दिल्ली पुलिस की मुस्तैदी से रूबरु होता है। नौजवान, आधी आबादी

शहर के कोतवालों से पूछना चाहती है कि उनके मुस्तैद रहते कैसे राजधानी की सड़कों पर 40 मिनट तक चल रही उस बस में होता रहा हैवानियत का नंगा नाच, कैसे एक छात्रा की इज्जत को तार-तार करते रहे दरिंदे? लेकिन जवाब में मिली तो बस आंसू गैस और लाठियां। वाह रे मेरे रक्षक तुझसे ऐसी ही उम्मीद थी मुझे..। मुझसे ज्यादा तुझे भला कौन जानता है।

रविवार को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीचे हुए इस संघर्ष में पहले पुलिस ने विजय चौक से प्रदर्शनकारियों को खदेड़ा। लेकिन वह फिर वहां जमा हो गए। इस बीच भीड़ का फायदा कुछ उत्पाती लोगों ने उठाया। गृह मंत्रालय की गाड़ी को रोक लिया और उसके साथ क्या सलूक किया ये आप खुद देख लें(गाडी क विजुअल)। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नौजवानों को शांत कराने की कोशिश भी की, लेकिन गुस्साई भीड़ ने दिल्ली पुलिस की गाड़ी को भी नहीं बख्शा। एक और विजय चौक जल रहा था तो दूसरी और इंडिया गेट पर शांत प्रदर्शन हो रहे थे, कहीं नुक्कड़ नाटक तो कहीं पोस्टरों द्वारा शांति पूर्ण प्रदर्शन जारी थे। शाम के पांच बजे के बाद लोग इंडिया गेट पर घूमने भी आ रहे थे। महिलाएं बच्चे मीडिया के लोग, सब इंडिया गेट पर हो रहे शांत प्रदर्शन को देख रहे थे। तभी अचानक लोगों का हुजूम इंडिया गेट कैनोपी और इंडिया गेट के बीच भागता हुआ आया..मानों कोई भारी विपदा आई हो..तभी पास के पाकरें से भारी संख्या में लाठियों से लैस पुलिस बल ने इंडिया गेट पर चारों तरफ से धावा बोल दिया, क्या महिलाएं क्या बच्चे, क्या मीडियाकर्मी..सब पर जमकर लाठियां बरसाई। लोगों को भागने के लिए कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। राजपथ की ओर से पुलिस का हमला हुआ था और इंडिया गेट कैनोपी के बाईं से लेकर नेशनेल स्टेडियम के सामने तक पुलिस मुस्तैद थी। यानि भागने के लिए न तो अशोका रोड़ था, न कोपर्निकस मार्ग और न तिलक मार्ग सभी रास्तों पर पुलिस के लठैत अपनी मुस्तैदी का परिचय देते नज़र आ रहे थे। यानि इंडिया गेट के गोल चक्कर को चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया था। पुलिस का इरादा किसी भी तरह से भीड़ को खदेड़ने का नहीं था, क्योंकि पुलिस ने भागने के लिए कोई जगह कहीं पर भी नहीं छोड़ी थी। इस घेराव में एक भी आंसू गैस नहीं छोड़ी गई थी..पुलिस की मंशा साफ थी। हज़ारों की भीड़ खुद को बचाने और भागने का कोई रास्ता न पाकर एक के उपर एक गिरती गई और शहर कोतवाल जमकर जनता को पीटते रहे। कई जगह लो इंटेंसिटी बम के धमाके किए गए, दिन ढलने को था शाम के करीब छ बजने को थे आधे घंटे तक लोग अपनी जान बचाने के लिए पुलिस के आगे गिड़गिड़ाते रहे। लेकिन हर जगह पुलिस थी। मुश्किल से लोगों ने इंडिया गेट गोल चक्कर की बाहरी सड़क पर सरकारी आवास की दीवार फांदना शुरू किया और सब लोग उसमें कूदने लगे। जान बचाने के लिए कहां कौन जा रहा था पता नहीं। लेकिन रास्ता मिल गया था और जान बच गई थी। इस बीच ध्यान आया कि किसको कितनी चोट आई है। 30 वर्षीय सचिन कुमार को बाएं पैर में लो इंटेंसिटी बम लगा था, जिससे उसकी बाईं टांग में छेद हो गया था और खून निकल रहा था। 31 साल के इंजीनियर मयूर का पुलिस वालों ने सिर खोल दिया था, खून इतना बह रहा था कि कई रुमाल लाल हो गए थे। एक ओर प्रदर्शनकारी लो इंटेंसिटी ब्लास्ट का शिकार हुआ था उसके हाथ पर पुलिस का बम लगा था। घायलों के जख्मों को बांध कर लोग उस सरकारी कॉलोनी से बाहर निकल रहे थे कहीं कोई नारे नहीं लग रहे थे। सब दहशत में थे, सभी बस अपनी जान बच जाने शुक्र मना रहे थे और घायलों के जख्मों के लिए रास्ते में डॉक्टर के बारे में लोगों से पूछ रहे थे। रास्ता लंबा था। जहां से हमने घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए कई गाड़ियों को रुकवाया, एक गाड़ी वाला मान गया। हम 6 लोग एलएनजेपी अस्पताल में घायलों को लेकर पहुंचे। इमरजेंसी में भर्ती कराते समय पुलिस के जवान ने हमसे पूछा कि तुम लोग इंडिया गेट पर हुए लाठीचार्ज में घायल हुए हो? मयूर और सचिन की हालत गंभीर थी, दोनों के शरीर से खून लगातार निकल रहा था। सचिन को पैर में चार टांके आए और मयूर का सीटी स्कैन कराया गया और उसके सिर में दिया दिल्ली पुलिस का घाव दस से ज्यादा टांकों से सिल दिया गया। अस्पताल के सीएमओ ने इंडिया गेट पर चोटिल लोगों की संख्या बताने से इनकार कर दिया। बस इतना बताया की अस्पताल में 6 बजे के बाद आई एमएलसी(मेडिकल लीगल केस) की संख्या 14 थी। सभी घायलों को उपचार के बाद तो छुट्टी मिल गई, लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा दिए गए इन जख्मों के लिए किसकी जवाबदेही बनती है ये सवाल अभी जस का तस है?

नवीन कुमार

जागरण न्यूज़ नेटवर्क दिल्ली।

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