गैंगरेप पीड़ित की मौत पर सभी को देना होगा जवाब

गैंगरेप पीड़ित को बचाने के लिए की जा रही करोड़ों लोगों की दुआएं मानो खाली चली गईं। 28-29 दिसंबर की रात 2:15 बजे जब पीड़ित ने अंतिम सांस ली उस वक्त सभी की उम्मीदों को तोड़कर वह सभी से विदा ले गई। लेकिन अपने पीछे वह कई सवाल छोड़ गई जिनके जवाब इस समाज में रहने वाले हर किसी इंसान को देना होगा। इसका जवाब उन्हें भी देना होगा जो सिर्फ संसद में बहस के नाम पर इस घटना पर अपनी कोरी संवेदना व्यक्त कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और इसका जवाब उन्हें भी देना होगा जो कानून के रखवाले बताए जाते हैं।

16 दिसंबर को जब देश की राजधानी के लोगों का इस घटना और इस खबर से सामना हुआ तो सभी का दिल धक से रह गया था। इस घटना को अंजाम देने वालों ने मेडिकल छात्रा से बारी-बारी से दुष्कर्म करने के बाद उसके पेट में लोहे की रॉड डाल दी थी। रौंगटे खड़े कर देने वाले इस घटना से सभी की रुह कांप उठी थी।

सदन में भी इस मुद्दे पर लगभग सभी दलों के नेताओं ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की। लेकिन जब दिल्ली की सड़कों पर इस पीड़ित को इंसाफ दिलाने के लिए स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राएं और अन्य लोग उतरे तो उनका साथ देने के लिए कोई राजनेता नहीं था। अलबत्ता उन्हें दंगाई कहने में किसी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। भाजपा की सुषमा स्वराज जिन्होंने इस मामले को सदन में उठाया लेकिन उन्होंने एक बार भी इसके लिए इंसाफ मांग रहे प्रदर्शनकारियों का साथ देने की कोशिश नहीं की बल्कि महज एक टवीट कर अपनी कवायद करती रहीं। ऐसा सिर्फ सुषमा स्वराज के ही साथ नहीं था बल्कि हर उस राजनेता के साथ दिखाई दिया जिन्होंने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।

आज जब गैंगरेप पीड़ित की मौत हो गई तब भी नेताओं के रवैये में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता है। नेताओं के इस मसले पर आई बेहुदा टिप्पणियां सबूत हैं इस बात का कि आखिर वह कितने संवेदनशील हैं। फिर चाहे वह राष्ट्रपति के पुत्र हो या महिलाओं और युवतियों को सही कपड़े पहनने की नसीहत देने वाले।

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