मरमंस्क में आर्कटिक महासागर के समुद्रों में जलमग्न एवं खतरनाक वस्तुओं के बढ़ते स्तर पर हुई चर्चा

नई दिल्ली, 5 अगस्त 2022: मरमंस्क में 25-26 जुलाई, 2022 को ‘रेजिंग सबमर्ज्ड एंड डेंजरस ऑब्जेक्ट्स इन द सीज ऑफ द आर्कटिक ओसिएन (आर्कटिक महासागर के समुद्रों में जलमग्न एवं खतरनाक वस्तुओं के बढ़ते स्तर पर)’ पर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया । इसके तहत एक बिजनेस प्रोग्राम का आयोजन हुआ। इसके साथ-ही-साथ कोला खाड़ी में B-159 परमाणु पनडुब्बी के डूबने की जगह पर एक्सपीडिशन किया गया । 2021-23 के दौरान आर्कटिक काउंसिल की रूस की चेयरमैनशिप के दौरान आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के तहत इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ । इस कार्यक्रम का संचालन रॉसकांग्रेस फाउंडेशन द्वारा किया गया । वहीं कार्यक्रम का आयोजन मिनिस्ट्री फॉर द डेवलपमेंट ऑफ द रशियन फार ईस्ट एंड द आर्कटिक एवं रोसाटम स्टेट कॉरपोरेशन द्वारा किया गया ।
परमाणु ऊर्जा विकसित करने वाले कई देश रेडियोएक्टिव वेस्ट आर्कटिक में डालते रहे हैं । सोवियत यूनियन ने भी 1957 और 1989 में ऐसा किया था । पर्यावरण से संबंधित जोखिम के आकलन को लेकर रूस के रुख और सामानों के ढेर को लेकर अतीत में किए गए फैसलों को लेकर अब उत्तरी समुद्री मार्ग के ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है । इसकी वजह से आज के समय में सबसे अहम मुद्दा परमाणु पनडुब्बियों में इजाफा है, जिसके रिएक्टर्स में इस्तेमाल में लाए गए परमाणु ईंधन होते हैं ।
सीनियर आर्कटिक ऑफिशियल्स के चेयरपर्सन और रूस के विदेश मंत्रालय के तहत काम करने वाले आर्कटिक को-ऑपरेशन के अम्बैस्डर-ऐट-लार्ज निकोलेय कोरचुनोव ने कहा, “पर्यावरण को होने वाले समूचे नुकसान को खत्म करना हमेशा से हमारी प्राथमिकता रही है और इनमें बढ़ते रेडियोएक्टिव एवं खतरनाक वस्तुओं का खात्म करना शामिल रहा है । हर गुजरते साल के साथ यह मुद्दा और अहम बनता जा रहा है क्योंकि रूसी फेडरेशन के तहत आने वाले आर्कटिक जोन का आर्थिक विकास जारी है। इनमें नॉर्दर्न सी रूट शामिल है, जिसका सामानों की शिपिंग के लिए इस्तेमाल बढ़ने ही वाला है ।”
अम्बैस्डर कोरचुनोव ने इस बात को लेकर भी खेद व्यक्त किया कि पर्यावरण संरक्षण और रेडिएशन सेफ्टी (विकिरण सुरक्षा) से जुड़े मुद्दे अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से एक जगह पर आकर रूक गए हैं । क्षेत्र में पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूस अपनी ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत करने के लिए तैयार है ।
कोरचुनोव ने कहा, “यह स्पष्ट है कि वर्तमान जलवायु परिस्थितियों में हमें अपनी क्षमताओं में भरोसा करना होगा, उन्हें विकसित और बेहतर करना होगा । इससे 2035 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और रूसी आर्कटिक जोन को विकसित करने के रूस के राष्ट्रपति द्वारा तय लक्ष्य को हासिल करने से जुड़ी हमारी रणनीति को मदद मिलेगी ।”
स्टेट डुमा कमिटी ऑन इंडस्ट्री एंड ट्रेड के डिप्टी चेयरमैन गेन्नेडी स्काईलार के अनुसार, डूबी हुईं परमाणु पनडुब्बियों को रिकवर करना और आर्कटिक क्षेत्र की कई अन्य समस्याओं को सुलझाना नॉर्दर्न सी रूट के विकास और ग्लोबल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के रूप में इसे बदलने के लक्ष्य के लिहाज से अहम है ।
स्काईलार इन जोर देकर कहा, “मौजूदा परिस्थितियों में आर्कटिक महासागर के समुद्रों में बढ़ते खतरनाक वस्तुओं के मुद्दों को सुलझाने के लिए हमें अपने पास मौजूद सभी संसाधनों को एकसाथ लाना होगा । इसके साथ ही साथ हमें अपने मित्र देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी विकसित करना चाहिए । यह एक रणनीतिक कार्य है और हमें आर्कटिक एवं नॉर्दर्न सी रूट के विकास को लेकर इच्छुक कंपनियों के साथ चर्चा करनी चाहिए । हम संघीय बजट संसाधनों और संघीय कार्यक्रमों की बात कर रहे हैं। इसके साथ-ही-साथ इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार की मदद करने में सक्षम साझीदार की तलाश करनी चाहिए ।”
चूंकि रूस की सरकार का 28 मई, 1998 का डिक्री नंबर 518 प्रभावी हो चुका हैं, ऐसे में सेवा से हटाए गए 120 परमाणु पनडुब्बियों का निस्तारण किया गया है । इतना ही नहीं 1004 रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर्स को भी काम से हटाया गया है । इसके अलावा इस्तेमाल किए गए 50 टन से ज्यादा परमाणु ईंधन को हटा दिया गया है, जिसकी प्रोसेसिंग मयक प्रोडक्शन एसोसिएशन में होगी ।
रोसाटॉम स्टेट न्यूक्लियर एनर्जी कॉरपोरेशन की योजना 2035 तक आर्कटिक महासागर के समुद्रों में बढ़ते खतरनाक वस्तुओं को लेकर काम पूरा करने की है । कंपनी के इंटरनेशनल टेक्निकल असिस्टेंस प्रोजेक्ट के प्रमुख अनातोली ग्रिगोरीव ने यह जानकारी दी।
ग्रिगोरीव ने कहा, “हमने सरकार के समक्ष जो योजना पेश की है, उसमें 2035 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। रोसाटॉम स्टेट एनर्जी कॉरपोरेशन द्वारा तैयार बजट प्रस्ताव और आज के कॉन्फ्रेंस में शामिल कुछ तैयारी वाली गतिविधियों में दो साल का वक्त लगेगा । क्षेत्र में अगले तीन साल के लिए 2.5 अरब रूबल के लिए अनुरोध किया गया है। 22 अरब रूबल के लक्षित स्टेट प्रोग्राम से यह फंड मिलेगा ।”
कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वालों ने महासागरों में फेंके गए वस्तुओं को लेकर 2021 में हुए सर्वे के नतीजों, कारा सागर में नोवाया जेमलया आर्किपेलागो की खाड़ी में रेडिएशन की स्थिति, डूबे हुए पोतों को लेकर अंतरराष्ट्रीय अनुभव और नॉर्दर्न सी रूट में रेडिएशन की स्थिति की निगरानी पर चर्चा की ।
कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन इसमें हिस्सा लेने वालों ने क्लावदिया एलांस्काया के जरिए कोला की खाड़ी में उस जगह का दौरा किया जहां B-159 परमाणु पनडुब्बी डूब गया था । यह वाकया 2003 में हुआ था जब उस पनडुब्बी को निस्तारण के लिए लाया जा रहा था । एक्सपीडिशन के दौरान एक्सपर्ट्स ने नॉर्दर्न सी रूट पर ऑपरेशन को सुनिश्चित करने के लिए FSUE Atomflot की रिपोर्ट्स का अध्ययन किया है। इसके साथ ही साथ इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वालों के B-159 के मलबे को ऊपर लाने वाले विभिन्न विकल्प सुझाए गए ।
2035 तक रूसी फेडरेशन की सरकारी नीति के मूल सिद्धांतों के अनुरूप जहरीली वस्तुओं, संक्रामक रोग उत्पन्न करने वाले रोगजनकों एवं आर्कटिक जोन में रेडियोएक्टिव तत्वों के प्रवेश को रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं । दूसरी ओर, 2035 तक रूस के इलाके में आने वाले आर्कटिक क्षेत्र के विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे क्षेत्रों के रिहैबिलिटेशन से जुड़ा कार्यों के लिए समयसारणी बनाई गई है जहां परमाणु कचरों का ढेर है और इस्तेमाल में लाए गए परमाणु ईंधन हैं और इसके साथ ही साथ रेडियोधर्मी यानी रेडियोएक्टिव कचरा है। ये कार्य 2025 से 2030 के मध्य किए जाएंगे ।
जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों सहित पर्यावरण संरक्षण 2021-2023 के मध्य आर्कटिक काउंसिल की रूस की चेयरमैनशिप के प्राथमिकताओं में शामिल है । पर्माफ्रॉस्ट के डिग्रेडेशन और गैस हाइड्रेट्स और कई अन्य चीजों से आर्कटिक में जलवायु में हो रहे तेजी से बदलाव का बदलाव का पता चलता है। रूसी पक्ष मुख्य रूप से इन कार्यों को करना चाहता हैः जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक असर को कम करना, लाइफ-सस्टेनिंग एक्टिविटी में सुधार को सुनिश्चित करना और इसके नतीजों को लेकर लचीलता रखना, पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों के तर्कसंगत इस्तेमाल को सुनिश्चित करना, समुद्री पर्यावरण सहित आर्कटिक इकोसिस्टम की सेहत को बनाए रखना और जैवविविधता का संरक्षण; खास तौर पर प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों का ।

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