आत्मा में ही परमात्मा का अस्तित्व है

नई दिल्ली. मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य आत्मा का साक्षात्कार करना है और जिस व्यक्ति का आत्मा से साक्षात्कार हो गया तो उसे परमात्मा के भी दर्शन हो जाते हैं। जब तक आत्मा में विकार है तब तक वह आत्मा है और आत्मा के विकार खत्म हो जाएं तो वही परमात्मा है। आत्मा के विकार नष्ट हो जाएं तो वही परमात्मा है. यह विचार अनेक विद्वानों एवं धर्म गुरुओं आदि ने यहां आयोजित आध्यात्मिक विज्ञान सम्मेलन में व्यक्त किये.
जैन डॉक्टरस फोरम, एनीमल वैलफेयर सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए आचार्य श्री अनेकांत सागर जी ने कहा कि जिसने स्वयं को जान लिया वह स्वयंभू हो जाता है. आत्मा में लीन हो जाता है. उन्होंने कहा कि आत्मा में ही परमात्मा का अस्तित्व है लेकिन आत्मा का वर्चस्व अहिंसा से ही कायम हो सकता है.
आचार्य श्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल स्वरुप आध्यात्मिकता और धार्मिकता है. आज अहिंसा परमो धर्म की स्थापना करके ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है.
अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष उमर अहमद इलियासी ने इस अवसर पर कहा कि इस देश में जातियां व धर्म अलग अलग हो सकते हैं पूजा पद्धति और इबादत का तरिका भले ही अलग हो सकता है लेकिन हमारे भीतर का इंसान और इंसानियत एक ही है. उन्होंने इस अवसर पर एक मार्मिक भजन भी सुनाया. साथ ही उन्होंने अपील की कि दुनिया में जिस तरह से हिंसा का माहौल है उसको रोकने के हम और कुछ नहीं तो कम से कम दुआ तो कर सकते हैं.
भारत में यहूदी समुदाय के प्रमुख ईजेकील इसहाक मालेकर ने इस अवसर पर अात्मा के प्रति अपने विचार रखते हुए कहा कि ईश्वर करुणा में है और करुणा आत्मा से पैदा होती है जब तक हम अपनी आत्मा से साक्षात्कार नहीं करेंगे हमें परमात्मा नहीं मिल सकता. उन्होंने कहा कि हमारा मुंह ब्रह्मांड और शब्द ब्रह्मास्त्र हैं इसलिए हमें हमेशा ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे किसी को दुख न पहूंचे.
निरंकारी संत हरपाल सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक इंसान के अंदर परमात्मा का एक अंश होता है जिसे हम आत्मा कहते हैं.
आर्य समाज के आचार्य चंद्रदेव ने कहा कि जिसने अपनी आत्मा को जान लिया तो उसने अपने जीवन को जान लिया. वहीं बौद्ध धर्म गुरु येशी फुंंटशोक ने शरीर को गाड़ी और आत्मा को ड्राइवर बताते हुए कहा कि यदि आत्मा शक्तिशाली है तो शरीर भलीभांती चलता है.
आचार्य श्री लोकेश मुनि ने अपने संबोधन में कहा कि आत्मा को परमात्मा और नर को नारायण तभी बनाया जा सकता है जब हम अपने अंदर के कषाय को दूर करेंगे. उन्होंने कहा कि यदि हमारी आत्मा निर्मल और स्वस्थ है तो हम परमपद को भी प्राप्त कर सकते हैं.
आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ डी. सी. जैन ने इस अवसर पर कहा कि विज्ञान ने बहुत प्रगति की है लेकिन फिर भी आत्मा के स्वरूप को नकारा नहीं गया उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा में फिजिकल, मेंटल, सोशल हेल्थ के साथ स्पिरिचुअल हेल्थ को भी जोड़ा था। 1998 तक स्पिरिचुअल हेल्थ स्वास्थ्य की परिभाषा में मौजूद थी। लेकिन इसके बाद इसे हटा दिया गया। इस कॉन्फ्रेंस के जरिए हम दुनिया भर में राय उत्पन्न कर रहे हैं कि मनुष्य की आत्मा और चेतना एक ही है। मनुष्य की चेतना लगातार बदलती रहती है और अपग्रेड होती रहती है। दयालु भाव से हम एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं।
इस कॉन्फ्रेंस के जरिए लोगों में जीवों के प्रति एक संवेदनशील नजरिया अपनाने पर भी जोर दिया गया है। हर प्राणी के अंदर आत्मा होती है, जिससे सुख की अनुभूति होती है। ऐसे में हमारा उद्देश्य यह भी है कि जीवों को मारने व उनका भोजन करना समाज का कर्तव्य नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जानवरों के स्वास्थ्य के लिए वन हेल्थ अप्रोच की शुरुआत की है। इस पर भारत सरकार ने भी सेल बनाया है। इस हेल्थ अप्रोच के जरिए जानवरों और मनुष्यों के हेल्थ प्लेटफॉर्म पर विस्तार से कार्य किया जा रहा है। जिससे की जानवरों से फैलने वाली बीमारी मनुष्य तक न पहुंचे और कोई बड़ी महामारी न सामने आए। कोरोना वायरस और निपाह वायरस जैसी महामारी व बीमारियां जानवरों में मौजूद वायरस की बदौलत ही दुनिया में फैली हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम इस दिशा में सक्रिय तौर पर काम करें।

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