दो माह में बनाई जाएं विशेष सीबीआइ अदालतें : सुप्रीम कोर्ट

भ्रष्टाचार के मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए कई बार आदेश दिए जाने के बावजूद विशेष सीबीआई अदालतों के गठन में केंद्र सरकार की सुस्ती पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नाखुशी जाहिर की। सरकार की दलीलों से असहमति जताते हुए कोर्ट ने सरकार को दो महीने के भीतर देशभर में 22 विशेष सीबीआई अदालतें गठित करने का निर्देश दिया है।

शीर्ष अदालत का यह निर्देश देश की विभिन्न अदालतों में कई राजनेताओं और नौकरशाहों के खिलाफ लंबे समय से लंबित भ्रष्टाचार के मुकदमों को देखते हुए काफी अहम माना जा रहा है। जस्टिस जीएस सिंघवी एवं जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीलुल्ला की पीठ ने सीबीआई में रिक्तियां भरने और मुकदमों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर देश में सीबीआई की विशेष अदालतों की संख्या बढ़ाए जाने के मामले में सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए।

विशेष सीबीआई अदालतों के गठन में देरी और केंद्र सरकार की दलीलों और स्पष्टीकरण से असंतुष्ट पीठ ने अपने 27 जनवरी 2011 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वे तब से सरकार को विशेष अदालतें गठित करने के लिए कदम उठाने को कह रहे हैं। पीठ के अनुसार अदालत ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 24 जुलाई 2009 को राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अतिरिक्त विशेष अदालतों के गठन के बारे में लिखे गए पत्र पर संज्ञान लिया था। सरकार ने 2009 में विशेष तौर पर सीबीआई के मुकदमों के ट्रायल के लिए देश भर में 71 अतिरिक्त विशेष अदालतें गठित करने का फैसला किया था। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि 71 विशेष अदालतें गठित हो चुकी हैं।

सरकार ने 22 और विशेष अदालतें गठित करने का फैसला किया है। 22 अतिरिक्त विशेष अदालतें गठित करने का प्रस्ताव गत सप्ताह पीएमओ से मंजूर हो चुका है। प्रस्ताव व्यय विभाग के पास लंबित है। इसके बाद इस पर राज्य के मुख्यमंत्रियों से सहमति ली जाएगी जिसमें अभी कुछ समय लग सकता है। पीठ ने कहा कि वे नहीं जानते कि प्रस्ताव कहां लंबित है। वे इतना जानते हैं कि सरकार चार सप्ताह में इन विशेष अदालतों का गठन करे। लेकिन जब लूथरा ने बार-बार समय बढ़ाने का अनुरोध किया तो कोर्ट ने सरकार को आठ सप्ताह का समय दे दिया। लेकिन पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इससे ज्यादा समय नहीं मिलेगा।

पीठ ने ढांचागत सुविधाओं और मानव संसाधन के साथ अदालतें गठित करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने लिखित आदेश में तो नहीं, लेकिन मौखिक तौर पर यह भी कहा कि सरकार लोक अभियोजकों को संविदा पर न रखे। कोर्ट ने ये बात केंद्र के उस प्रस्ताव पर कही जिसमें लोक अभियोजकों को संविदा पर रखने की बात कही गई थी

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