फांसी की दया याचिका पर फैसला लेने को लेकर छिड़ी बहस

pranab 2013-2-9संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के साथ ही कई स्तरों पर यह बहस शुरू हो गई है कि आखिर लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने के दोषी को इतने वर्षो तक जिंदा क्यों रखा गया। हालांकि इस मुद्दे पर जानकारों का मानना है कि यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत राष्ट्रपति दोषी की दया याचिका पर कोई निर्णय लेते हैं।

फांसी की सजा पाए दोषियों पर सजा को लागू करने में कितना समय लगे इस पर चर्चा चल रही है। दया याचिका पर राष्ट्रपति कितने समय में फैसला लिया जाए इसकी मियाद अभी तक तय नहीं है, इस वजह से कई दोषी इससे बचे रह जाते हैं। दरअसल मौजूदा कानून के तहत इस फैसले में गु्रप ऑफ मिनिस्टर की राय भी शामिल की जाती है। कई कानून के जानकार इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि आर्टिकल 17 में अब बदलाव की जरुरत है। इस नियम के तहत राष्ट्रपति फांसी की सजा पाए किसी दोषी की दया याचिका पर निर्णय लेते हैं। इससे पहले मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब की फांसी में देरी पर भी सरकार पर सवाल उठते रहे थे कि आखिर कितने दिनों तक उसको जिंदा रखा जाएगा।

देश में फांसी देने के लिए चार या पांच ही जेल ऐसी हैं जहां फांसी दी जाती है। आजाद भारत में पहली फांसी लुधियाना के जेल में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को दी गई थी। पिछले वर्ष ही केंद्र सरकार ने मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब को पुणे की जेल में फांसी दी गई थी। इसके बाद ही अफजल गुरु को फांसी देने की मांग ने जोर पकड़ लिया था।

मौजूदा समय में सौ से ज्यादा अपराधी ऐसे हैं जो फांसी की सजा पाए हुए हैं। वहीं पिछले वर्ष करीब तीस फांसी के दोषियों की सजा को पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उम्रकैद में तबदील कर दिया था।

error: Content is protected !!