यूपी बजट : शहरों की सहर

up-budget 2013-2-19

लखनऊ। यह शहरों के लिए एक नई सहर (सुबह) सी थी। शहरवासियों को बेहतर बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए अखिलेश सरकार द्वारा अपने पहले बजट में नगर विकास, आवास एवं शहरी नियोजन तथा नगरीय रोजगार व गरीबी उन्मूलन विभाग के तहत पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की व्यवस्था कर नगरों में बुनियादी जन सुविधाओं के विकास व शहरी गरीबों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी की जहां कुछ पुरानी योजनाओं को नए नाम से बनाए रखा गया था, वहीं रिक्शा चालकों को मुफ्त मोटर चलित रिक्शा देने जैसी अभिनव योजना को भी बजट में जगह दी गई थी।

नई सरकार के जोश को देखते हुए बदलाव की खासी उम्मीद थी। समाजवादी सरकार का दूसरा बजट आने के मौके पर उम्मीदों को हकीकत की कसौटी पर देख रहे हैं अजय जायसवाल :-

गरीय विकास व शहरी गरीबों की बेहतरी के लिए पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रखे जाने पर उम्मीद जगी थी कि सूबे के शहरों की बदतर बुनियादी जन सुविधाओं में सुधार होगा। मेहनतकश शहरी गरीबों का भला होगा लेकिन नौकरशाहों की हीला-हवाली के चलते योजनाओं की लेट-लतीफी का आलम यह है बजट में रखी गई धनराशि का बड़ा हिस्सा अभी जारी ही नहीं हो सका है। जोर-शोर से बजट में जो अभिनव योजनाएं प्रस्तावित की गई थी वे अभी कागजी कार्रवाई व ट्रायल के दौर में ही हैं।

समाजवादी विचारधारा का सिर शर्म से न झुके इसके लिए सपा द्वारा किए गए चुनावी वादे को पूरा करने के मद्देनजर अखिलेश सरकार ने रिवायती रिक्शे को समाप्त कर शहरी गरीब रिक्शा चालकों को मुफ्त में मोटर चलित रिक्शा देने की अभिनव योजना को पहले बजट में जगह देते हुए 100 करोड़ रुपये रखे थे। तकरीबन 2.48 लाख रिक्शा चालकों को बेसब्री से मोटर रिक्शा मिलने का इंतजार है, लेकिन अभी रिक्शों का ट्रायल ही शुरू हो सका है।

शहरी गरीबों को आवास मुहैया कराने के लिए आसरा आवासीय भवन योजना शुरू करते हुए बजट में 100 करोड़ की व्यवस्था की गई थी। गौर करने की बात यह है कि योजना के तहत बनने वाले आवासों के निर्माण व आवंटन संबंधी दिशा-निर्देश ही अभी जारी हो सके हैं। ऐसे में सपा सरकार बनने की बाद से मकान की आस लगाए गरीबों को अभी मायूसी ही मिल रही है।

शहरी क्षेत्रों की अल्पसंख्यक बाहुल्य व मलिन बस्तियों में सीसी रोड या इंटरलाकिंग, नाली, जल निकासी व अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए भी बजट में 100 करोड़ रुपये रखे गए थे, लेकिन 16 जनवरी को तो संबंधित शासनादेश जारी हो सका है। ऐसे में अभी काम होना तो दूर, प्रस्ताव का ही इंतजार किया जा रहा है।

केंद्र सरकार की जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन योजना के तहत सूबे में विकास कार्यो व गरीबों के मकानों के लिए बजट में 21 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा रखे गए थे, लेकिन इसमें से आधी धनराशि अभी जारी ही नहीं हुई है। विकास कार्यो के 1600 करोड़ में से अभी तकरीबन 544 करोड़ रुपये जारी होने हैं। शहरी गरीबों के मकान के लिए बजट में 590 रुपये रखे गए थे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि इस योजना के तहत मकान ही नहीं बनाए जाएंगे क्योंकि केंद्र सरकार मकान की बढ़ी लागत के हिसाब से अतिरिक्त धनराशि देने को तैयार नहीं है। योजना के तहत पिछले वित्तीय वर्ष से बन रहे मकानों का निर्माण पूरा करने के लिए ही धनराशि दी गई है।

शहरों की समस्या बनते कूड़े के ढेरों के निस्तारण के लिए बजट में पीपीपी मोड पर नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना अपनाए जाने की घोषणा की गई थी। सरकार ने 176 नगरीय निकायों में से पहले चरण में 17 निकायों में उक्त योजना के क्रियान्वयन के लिए बजट में 75 करोड़ रुपये की व्यवस्था भी की थी, लेकिन अब तक न एक रुपया जारी हुआ है और न ही योजना परवान चढ़ी है।

निकायों में जनहित से जुड़ी तात्कालिक आवश्यकताओं तथा अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए बजट में नया सवेरा नगर विकास योजना के तहत 241 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। योजना के तहत ब्याज रहित ऋण के तौर पर अब तक 233.40 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं, लेकिन ज्यादातर धनराशि कुछ खास शहरों तक ही पहुंची है। योजना की धनराशि से नए विकास कार्य कराए जाने के बजाय केंद्रीय विकास परियोजनाओं में निकाय अंश के तौर पर भी खूब धन दिया गया है।

एक लाख से कम आबादी वाले नगरों में विकास कार्यो के लिए आदर्श नगर योजना के तहत बजट में 76 करोड़ रुपये रखे गए थे जिसमें से हाल ही में अधिकांश धनराशि जारी की गई है। ऐसे में निकायों द्वारा अभी योजना के तहत औपचारिकताएं ही पूरी किए जाने से ज्यादातर संबंधी नगरों में मौके पर काम नहीं हो सका है।

नेशनल अर्बन सेनीटेशन पॉलिसी के तहत सभी नगर निगमों व प्रथम श्रेणी की नगर पालिका परिषदों को साफ-सुथरा रखने के लिए उनका सिटी सेनीटेशन प्लान (नगरीय स्वच्छता नीति) बनाए जाने को बजट में 47 लाख रुपये रखे गए थे। धनराशि तो पूरी जारी कर दी गई है, लेकिन अब तक संबंधित शहरों में से ज्यादातर के प्लान नहीं तैयार हुए हैं।

बजट में जिला योजना, व्यापार विकास निधि के तहत पेयजल, सीवरेज व जल निकासी के लिए दो सौ करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी लेकिन गौर करने की बात यह है कि इसमें से भी 11 फरवरी तक 124 करोड़ रुपये नहीं जारी हुए थे। शहरों में पेयजल का संकट है, लेकिन बजट में रखे गए 100 करोड़ में से भी 33.40 करोड़ की स्वीकृतियां ही जारी गई हैं। सीवरेज कार्यक्रम के तहत रखे गए 60 करोड़ रुपये में से 23.39 करोड़ तथा जल निकासी योजना के लिए बजट में रखे गए 40 करोड़ में से 34.09 करोड़ रुपये अभी जारी होने हैं। नदियों के प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों के तहत भी बजट में 90 करोड़ रखे गए थे लेकिन उसमें से भी अभी 24 करोड़ नहीं जारी हुए हैं। शहरी नियोजन के तहत बजट में 576 करोड़ रुपये रखे गए थे लेकिन उसमें से भी 95 करोड़ अभी जारी होने हैं।

जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम तथा जनेश्वर मिश्र लखनऊ पार्क के संबंध में अभी कागजी कार्यवाही ही चल रही है। लखनऊ में मेट्रो या बीआरटीएस चलाए जाने पर भी अभी निर्णय नहीं हो सका है। राजधानी में विकास कार्यो के लिए बजट में 100 करोड़ की व्यवस्था भी की गई जिसमें से 42.81 करोड़ रुपये अभी जारी होने हैं।

शहरों के सुनियोजित विकास के लिए जरूरी है कि 25 वर्षो का डेवलपमेंट प्लान बनाया जाए। पेयजल, सीवरेज, ड्रेनेज, रोड, ट्रांसपोर्ट, गरीबों के आवास आदि को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक प्लान बने। सरकार दीर्घकालिक प्लान के मुताबिक ही चरणबद्ध तरीके से प्रतिवर्ष बजट व्यवस्था कर कार्य कराए तभी शहरवासियों को बेहतर बुनियादी जन सुविधाएं मिल सकती हैं। बढ़ती गाड़ियों से सड़क-चौराहों पर लगने वाले जाम से लोगों को निजात दिलाने के लिए डबल डेकर सड़कों के साथ ही ज्यादा से ज्यादा फ्लाईओवर बनाए जाएं। -दिवाकर त्रिपाठी, सेवानिवृत आइएएस, पूर्व नगर आयुक्त व विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष

केंद्र सरकार के निर्देश पर शहरों में बुनियादी जन सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए बेंचमार्क बनाए गए हैं। बेंचमार्क के मुताबिक कार्य होने पर सूबे के शहरों की स्थिति बदल सकती है। शहरी क्षेत्र में इधर-उधर टुकड़े में कहीं भी विकास के कार्य कराए जाने के बजाय सिटी डेवलपमेंट प्लान बनाकर एक तरफ से कार्य कराए जाएं। तय अवधि में कार्यो को पूरा किया जाए ताकि शहरवासियों को समय रहते उसका लाभ भी मिलने लगे। -रेखा गुप्ता, पूर्व स्थानीय निकाय निदेशक

जो नए नगरीय क्षेत्र विकसित हो रहे हैं या पुराने शहरों का विस्तार हो रहा है, उनमें सामुदायिक सुविधाओं की कमी महसूस की जाती है। इस कमी को दूर करने के लिए नए बजट में नगरीय विकास के लिए सामुदायिक सुविधाओं से युक्त सेंट्रल काम्प्लेक्सों के लिए विशेष तौर पर प्रावधान होना चाहिए। नगरीय विकास में अन्य सेवादायी विभागों की भूमिका भी होती है लेकिन शहरों में इन विभागों की सेवाओं का अकाल होता है। लिहाजा ऐसे विभागों के बजट में नगरीय विकास की दृष्टि से विशेष आवंटन होना चाहिए ताकि जब नगर बसाए जाएं तो उनमें इन विभागों की सेवाएं भी स्थान पाएं। -एके पचौरी, सेवानिवृत्त मुख्य वास्तुविद नियोजक, उप्र आवास एवं विकास परिषद

सरकारी योजनाओं में दुर्बल वर्ग और गरीबों के लिए बनाये जाने वाले मकानों की कीमत इन वर्गो की हैसियत से ज्यादा साबित हो रही है। इन वर्गो के मकानों की कीमत कम करने के लिए शोध और अनुसंधान की जरूरत है। बजट में इसके लिए भी प्रावधान हो। दुर्बल वर्गो के लिए बहुमंजिला आवासीय भवन बनाने का चलन बढ़ा है लेकिन मल्टीस्टोरी बिल्डिंग इन वर्गो की जीवनशैली के मुताबिक नहीं होती। बजट में इस पर भी ध्यान दिया जाए। -प्रो. सुबोध शंकर, सेवानिवृत्त मुख्य वास्तुविद नियोजक, उप्र आवास एवं विकास परिषद

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