महज एक हजार में बच्चों की हसरतों का सौदा

child 2013-3-15आगरा। ‘खेतों की मिट्टी में उनके पसीने का नमकीन स्वाद था, कारखाने व इमारतों की नींव में उनके रक्त की गंध। वे इस दुनिया में नए वक्त के सबसे पुराने खानाबदोश हैं, उनके कंधे और माथे पर जो गठरियां और टिन के बक्से हैं, दरअसल वही हैं उनका घर-संसार।’ कवि प्रभात मिलिंद की यह पंक्तियां सौदागर के हाथों एक हजार में अपनी हसरतों का सौदा करके घर से निकले बिहार, छत्तीसगढ़ व झारखंड के बाल श्रमिकों पर सही साबित होती हैं।

आगरा फोर्ट स्टेशन पर जीआरपी द्वारा मुक्त कराने के बाद एक सप्ताह से घर वापसी की राह ताकते बच्चों के मन में उत्साह तो है, लेकिन माथे पर चिंता की लकीरें भी, कि घर का खर्च कैसे चलेगा। स्थानीय पंचशील आश्रम में घर वापसी की बाट जोह रहे के सोई, इमरान, धर्मेद्र, शाहनवाज, शमशाद व शमशेर समेत इन सभी बच्चों की उम्र आठ से पंद्रह साल के बीच है। इन सब की कहानी एक जैसी है। बच्चों ने बताया कि ठेकेदार उनको यहां पर मां-बाप को एक हजार रुपये पेशगी देकर लाया था। कारखानों में उनको सुबह सात से रात 11 बजे तक लगातार काम करना पड़ता था। इस दौरान उनको सिर्फ एक घंटे की छूट मिलती थी, जिसमें सुबह की चाय से लेकर दोपहर का खाना व शौचालय जाना होता था।

चाइल्ड लाइन व जीआरपी कंट्रोल रूम के माध्यम से सूचना मिलने के बाद अब तक कई बच्चों के मां-बाप पंचशील आश्रम पहुंच चुके हैं। परिजनों का कहना था कि उन्होंने आर्थिक तंगी के चलते बच्चों को अपने से दूर करने का फैसला लिया, लेकिन अब अपने से दूर नहीं करेंगे।

आश्रम में हंगामा, पुलिस तैनात :-

पंचशील आश्रम में कई अभिभावक ऐसे भी पहुंचे, जो संदिग्ध थे। वह अपने को बच्चों का रिश्तेदार बता रहे थे। जबकि बच्चों ने उनको अभिभावक मानने से इन्कार कर दिया। इसे लेकर बाल कल्याण समिति और उन लोगों में नोक-झोंक हुई। इसके बाद आश्रम की सुरक्षा में प्रशासन ने पुलिस तैनात कर दी।

हाथ तोड़ हिसाब में इलाज की रकम :-

बच्चों से बंधुआ मजदूरों की तरह काम लेने की कहानी इसी से समझी जा सकती है कि ठेकेदार ने एक बाल श्रमिक की पिटाई करके हाथ तोड़ दिया। उसके इलाज में छह सौ रुपये का खर्च आया। उसे उक्त बच्चे के खाते में डाल दिया। इलाज में खर्च हुई रकम उसके वेतन से काट ली।

नहीं झपकते पलक :-

बच्चों से बातचीत करने के दौरान वह आम लोगों की तरह अपनी पलक नहीं झपकाते। जिन कारखानों में कड़े में लॉक लगाने का काम करते थे, वहां पर पलक झपकते ही गलती होना तय थी। इसके लिए उनको मार पड़ती थी। चाइल्ड लाइन व बाल कल्याण समिति के सदस्य बच्चों में आये इस असामान्य बदलाव से हैरान थे।

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