नई दिल्ली। उन्नीस सौ तिरसठ में शांत आकाश देश के पहले वास्तविक सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग-21 की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तब से लगातार भारतीय वायुसेना का हिस्सा रहे इन विमानों की स्वर्ण जयंती वर्ष पर वायुसेनाध्यक्ष एनएके ब्राउनी ने एक किताब ‘फर्स्ट टू द लास्ट : 50 ईयर्स ऑफ मिग-21′ जारी की है।
मिग (मिकोयान-गुरेविच):
-1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के पहले ही पाकिस्तान के एफ-104 स्टारफाइटर का विकल्प खोजने के लिए भारत सुपरसोनिक इंटरसेप्टर’ की तलाश में था। विकल्प के रूप में फ्रांसीसी मिराज-थ्री, द स्टारफाइटर और मिग-21 थे। पहला विकल्प बहुत महंगा था और स्टारफाइटर के मसले पर अमेरिका की अड़ंगेबाजी थी।
-सोवियत संघ के मिग-21 का आकर्षक ऑफर हमारी जरूरतों के हिसाब से बेहतर था, क्योंकि उसमें टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के साथ स्थानीय स्तर पर निर्माण के लाइसेंस का भी प्रावधान था। उस समझौते के साथ-साथ शीत युद्ध के उस दौर में भारत का झुकाव भी सोवियत ब्लॉक की तरफ बढ़ता गया।
खूबी:
-इसकी निर्माण लागत कम थी। नौवें दशक में एक मिग-21 का निर्माण 3.5 करोड़ रुपये में हो जाता था, जबकि इसकी तुलना में मिराज-2000 या जगुआर लड़ाकू विमान की निर्माण लागत कम से कम 10 गुना ज्यादा थी।
भारत-पाक युद्ध:
-1965 में दोनों देशों के बीच युद्ध के दौरान मिग-21 की सफलता के चलते इन पर निवेश को बढ़ाया गया।
-1971 के युद्ध में पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप में सुपरसोनिक विमानों के बीच जंग देखी गई। इस मुकाबले में मिग-21 ने निर्णायक भूमिका निभाई और पाकिस्तानी साबरीज एवं स्टारफाइटर का मुंहतोड़ जवाब दिया। 14 दिसंबर, 1971 को इन्होंने ही ढाका सरकारी हाउस पर हमला बोला था। नतीजतन पाकिस्तानी सेना को हथियार डालने पड़े।
बेड़ा:
-मिग-21 के साथ शुरुआत करने के बाद वायुसेना ने मिग-23, मिग-25 (टोह लेने में माहिर), मिग-27 (मीडियम रेंज स्ट्राइक) और मिग-29 (एयर डिफेंस) को शामिल किया। वायुसेना के लड़ाकू बेड़े में 75 प्रतिशत योगदान मिग लड़ाकू विमानों का है।
-कुल मिलाकर विभिन्न संस्करणों के 1200 मिग विमान वायुसेना के बेड़े में शामिल किए गए। इनमें मिग-21 की संख्या दो तिहाई से भी अधिक यानी 874 थी। उनमें से अभी भी 264 सक्रिय रूप से सेना में शामिल हैं।
ताजा स्थिति:
-2017 तक मिग विमानों को पूर्ण रूप से रिटायर होना था लेकिन रक्षा मंत्रालय के संकेतों के अनुसार इनको एक बार फिर दो वर्षो का सेवा विस्तार दिया जा सकता है। ऐसी दशा में ये 2019 तक बेड़े में रहेंगे। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि इनका स्थान स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों (एलसीए) को लेना था, लेकिन उसकी ऑपरेशनल दक्षता में देरी के चलते फ्रांसीसी राफेल का चुनाव किया गया है। इस समझौते को भी फलीभूत में होने वाले अभी चार साल का वक्त लगने की संभावना है।
दुर्घटनाएं:
-पिछले दशकों में मिग-21 में बढ़ती दुर्घटनाओं के कारण इसको रिटायर करने की मांग उठी। 1971-72 से लेकर अब तक 380 मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं।
-1970 से लेकर अब तक 1050 वायु दुर्घटनाओं में से 480 मिग के विभिन्न संस्करणों में हुई हैं, जिनमें 180 पायलट मारे गए। इसीलिए इसको ‘उड़ता ताबूत’ भी कहा गया।