वीरता को सलाम

Babu kunwar singhनई दिल्ली। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में एक ऐसा भी शेर था, जिसकी 80 साल की दहाड़ से भी अंग्रेजों के छक्के छूट जाते थे। ये नायक थे बिहार के बाबू कुंवर सिंह। दुनिया के इतिहास में यह पहला उदाहरण है, जब इतने वृद्ध योद्धा ने इस तरह तलवार उठाकर किसी सेना को युद्ध के लिए ललकारा।

जन्म:

बाबू कुंवर सिंह का जन्म सन् 1777 में बिहार के शाहाबाद (अब भोजपुर) जिले के जगदीशपुर के उज्जैनी क्षत्रिय (परमार) राज परिवार में हुआ था। पिता राजा साहबजादा सिंह थे और मां रानी पंचरत्न देवी थीं। ये परिवार राजा विक्रमादित्य और राजा भोज का वंशज माना जाता है।

बिहार में विद्रोहियों का किया नेतृत्व:

पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में जुलाई 1857 को दानापुर में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। वीर कुंवर सिंह ने इनका नेतृत्व संभाल लिया। दो दिन के जोरदार संघर्ष के बाद सेनानियों ने आरा जिला मुख्यालय पर कब्जा कर लिया। इससे गुस्साई अंग्रेजी फौज ने कुंवर सिंह के पैतृक गांव जगदीशपुर और उनके निवास स्थान को तहस-नहस कर दिया।

उत्तर प्रदेश में भी दिखाए हाथ:

कुंवर सिंह दिसंबर 1857 में बिहार छोड़कर लखनऊ चले गए। वहां उन्होंने अपनी युद्ध कला से एक बार फिर हलचल मचा दी। मार्च 1858 में आजमगढ़ जिले पर कब्जा कर लिया। हालांकि ब्रिगेडियर डगलस की सेना ने जल्द कार्रवाई कर उन्हें पीछे हटा दिया।

फिर लौटे बिहार:

आजमगढ़ संघर्ष के बाद फिर आरा लौटे। अपने साथियों के साथ जगदीशपुर के निकट कैप्टन ली ग्रांड की फौज से घायलावस्था में भी जमकर लोहा लेते हुए धूल चटा दी। जगदीशपुर किले से ब्रिटिश झंडा हटाकर अपना झंडा फहरा दिया। तीन दिन बाद 26 अप्रैल, 1858 को कुंवर सिंह की मौत हो गई। उनके भाई अमर सिंह ने अंग्रेज सेना के खिलाफ कमान संभाली। भारी मुश्किलों के बावजूद वह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे।

गुरिल्ला युद्ध में थी महारत:

वीर शिवाजी के बाद वह पहले ऐसे भारतीय योद्धा थे, जो गुरिल्ला लड़ाई में सिद्धहस्त थे।

हाथ काटकर बहा दिया:

कुंवर सिंह एक बार अपने दस्ते के साथ गंगा नदी पार कर रहे थे, तभी डगलस के सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। एक गोली उनकी कलाई पर लगी। संक्रमण फैलने के खतरे से अपना हाथ काटकर नदी को समर्पित कर दिया।

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