नई दिल्ली। सीबीआइ के किस मेन्युअल में लिखा है कि उसकी रिपोर्ट कानून मंत्री देखेंगे? इस मामले में हमें अंधेरे में क्यों रखा गया? सीबीआइ निदेशक के हलफनामे में रिपोर्ट में बदलाव को लेकर साफगोई क्यों नहीं है? रिपोर्ट में क्या-क्या और किसके कहने पर बदलाव किए गए हैं? कोयला घोटाले की प्रगति रिपोर्ट को कानून मंत्रालय और पीएमओ से साझा करने पर सुप्रीम कोर्ट के ये तल्ख सवाल न केवल सीबीआइ की साख को रसातल में पहुंचाने के लिए काफी हैं बल्कि अपनी टिप्पणियों में शीर्ष अदालत ने सरकार को भी फटकार लगाते हुए कहा है कि सरकार ने हमारा भरोसा तोड़ा है। कोयला घोटाले की परत दर परत पर पेश है एक नजर:
ब्लॉक आवंटन:
कोयला ब्लॉक:
-ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य एवं दक्षिण भारत के हिस्सों में पाए जाने वाले कोयले को ब्लॉक में विभाजित कर उनके खनन को लीज पर दिया जाता है।
आवंटन की प्रक्रिया:
-1973 में सरकार ने कोयला खनन पर अधिकार किया। 1976 में निजी स्टील निर्माताओं को कोयले की खदानें खरीदने की अनुमति दी गई। 1993 में बिजली कंपनियों को भी कैप्टिव माइनिंग की अनुमति दी गई।
-1993-2005 : 41 निजी और 29 सरकारी कंपनियों को कोयला खनन के लाइसेंस दिए गए।
-सरकार ने महसूस किया कि बढ़ती मांग को कोल इंडिया पूरा नहीं कर पा रहा है, लिहाजा 2006-09 के बीच 75 ब्लॉक निजी क्षेत्र और 70 सरकारी कंपनियों को दिए गए।
आवंटन में गड़बड़ी:
-1992 में गठित स्क्रीनिंग कमेटी के आधार पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कोयला मंत्रालय सरकारी और निजी कंपनियों को लाइसेंस देता रहा।
-2005, 2006 और 2008 में लाइसेंस देने के नियमों में परिवर्तन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सीबीआई से पूछे ये सवाल..करें क्लिक
मामला: एक नजर में:
-17 अगस्त, 2012 को नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने कोयला ब्लॉक आवंटन पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। कैग के मुताबिक, आवंटन के तरीके में पारदर्शिता नहीं बरती गई। नियमों में फेरबदल किए गए। मूल्यांकन प्रणाली में खामियां पाई गई। कोयला संपन्न राज्यों के मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों ने निजी कंपनियों के लिए लॉबिंग की। इससे निजी कंपनियों को लाभ मिला।
कब, क्या हुआ:
-रिपोर्ट के बाद 21 अगस्त को भाजपा ने संसद में हंगामा करते हुए प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगा।
-27 अगस्त को प्रधानमंत्री ने सरकार का बचाव करते हुए सदन में बयान दिया।
-तीन सितंबर को अंतर-मंत्रालयी समूह ने 58 ब्लॉकों से संबंधित कंपनियों से खनन में देरी की वजह पूछी।
-चार सितंबर को सीबीआइ ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता समेत 10 शहरों के 30 ठिकानों पर छापा मारा।
सुप्रीम कोर्ट में मामला:
-सितंबर में आवंटित कोल ब्लॉकों को रद करने की मांग करती हुए एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई।
-12 मार्च, 2013 को कोर्ट ने सीबीआइ से कहा कि वह अपनी रिपोर्ट सीधे कोर्ट में पेश करें। साथ ही सीबीआइ निदेशक से 26 अप्रैल तक इस बात का हलफनामा दाखिल करने को भी कहा कि उन्होंने कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट को राजनीतिक आकाओं से साझा नहीं किया है।
-26 अप्रैल को सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में माना कि मांगे जाने पर मामले की प्रगति रिपोर्ट कानून मंत्री अश्विनी कुमार, पीएमओ और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों को दिखाई गई थी।
कोल ब्लॉक:
किसे, कितना मिला
कंपनी का नाम: आवंटित
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड: 11
अभिजीत ग्रुप: 8
टाटा: 6
आधुनिक ग्रुप: 5
मोनेट इस्पात: 5
भूषण समूह: 4
रुंगटा माइंस लिमिटेड: 4
एसकेएस इस्पात: 3
जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड: 3
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज: 3
एस्सार: 3
जीवीके पावर: 2
ऊषा मार्टिन लिमिटेड: 2
आर्सेलर मित्तल इंडिया लिमिटेड: 1
लेंको समूह: 1
बिड़ला कारपोरेशन लिमिटेड: 1
स्ट्रेटेजिक एनर्जी टेक्नोलॉजी
सिस्टम्स लिमिटेड: 1
ब्लॉकों की बंदरबांट:
नरसिंह राव सरकार: पांच ब्लॉक
देवगौड़ा सरकार: चार ब्लॉक
राजग सरकार: 32 ब्लॉक
संप्रग एक व दो सरकार: 175 ब्लॉक
सीबीआइ का सच:
गठन:
1941 में स्थापित विशेष पुलिस संस्थापन के तहत एक अप्रैल, 1963 को इस एजेंसी का गठन किया गया। यह शीर्ष एजेंसी कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन काम करती है। प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन होने के चलते इस एजेंसी के प्रति आम जनता की यह धारणा होती जा रही है कि सत्ताधारी दल के किसी मंत्री या नेता पर लगे आरोप की जांच निष्पक्ष रूप से नहीं होती है।
बदलती जवाबदेही:
2003 में राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को गृह मंत्रालय के मातहत कर दिया गया था। लिहाजा सीबीआइ भी एक तरह से गृह मंत्रालय के तहत काम करने लगी थी। जब लालकृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री बने तो वाजपेयी सरकार ने सीबीआइ को इस विभाग से हटाकर केंद्रीय सचिवालय के साथ जोड़ दिया। केंद्रीय सचिवालय प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट करता था। इससे यह संस्था अब इसके प्रति जवाबदेह हो चुकी थी। जून, 2004 में इसे फिर से कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के नियंत्रण में लाया गया।
स्वायत्ता पर सवाल:
संस्था की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को लेकर 1978 में एलपी सिंह कमेटी ने एक विस्तृत अधिनियम की आवश्यकता पर बल दिया था। 1997 में जैन हवाला मामले में मशहूर फैसला सुनाते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस वर्मा ने सीबीआइ की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को लेकर करीब एक दर्जन दिशानिर्देश दिए थे।
2007 में संसद की स्थायी समिति ने अपनी 19वीं रिपोर्ट में इसके लिए एक अलग एक्ट बनाने की सिफारिश की। 2008 में पुन: इसी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इसे वैधानिक अधिकार और संसाधनों की दृष्टि से सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
इन तमाम सिफारिशों के बावजूद किसी भी सरकार ने उन्हें गंभीरता से लागू करने की जरूरत नहीं समझी। इससे सरकार द्वारा सीबीआइ के दुरुपयोग और इस संस्था को लेकर उसकी मंशा पर समय समय पर सवाल उठते रहे हैं।