जब सरबजीत ने लिखा, मेरी लाश वी तैनूं नसीब नहीं होणी

sarabjit-singh-letter-from-prison-to-his-wifeतरनतारन। मेरी प्यारी सुखप्रीत। तैनूं की दस्सां, जदों दा मैनूं फांसी लगाऊण दा हुकम होया उदों तों मेरी तड़फ आउण लई वद्ध गई है। मैं आपणीआं धीआं नूं प्यार नहीं दे सकदा। लगदा है कि जिवें मेरी लाश वी तैनूं नसीब नहीं होणी..। [मेरी प्यारी सुखप्रीत, तुझे क्या बताऊं। जबसे मुझे फांसी देने का हुक्म हुआ है, तबसे मेरी घर आने की इच्छा बढ़ गई है। मैं अपनी बेटियों को प्यार नहीं दे सका। जीते जी तो आ नहीं पाया, लगता है कि मेरी लाश भी तुझे नहीं नसीब होगी।]

यह चंद लाइनें उस खत का हिस्सा हैं, जिसे सरबजीत सिंह ने 1991 में फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कोट लखपत जेल से अपनी पत्नी को लिखा था। खत को पढ़कर उस समय सुखप्रीत के पैरों तले जमीन निकल गई थी। फिर एक दिन ऐसा खत आया, जिसे पढ़कर परिवार फूला न समाया। पत्र में सरबजीत ने अपनी बहन दलबीर कौर को संबोधित करते हुए लिखा था-माई डियर सिस्टर, असलाम वालेकुम। मैं कुशलपूर्वक हूं और आपकी कुशलता परमात्मा से नेक मतलूब हूं। आगे समाचार ये है कि मुझे दूतावास के लोग मिलने आए हैं और मैं उनके सामने बैठ कर खत लिख रहा हूं। मेरे लिए दुआ करना कि मैं जल्द से जल्द आपके पास आ जाऊं और अपनी प्यारी व मां जैसी बहन की सेवा करूं। मेरी तरफ से सुखप्रीत और बेटियों पूनम, स्वप्नदीप को प्यार। सरबजीत की मौत के बाद अब यही खत परिवार के लिए यादें बनकर रह गए हैं।

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